अब तक बेंचे गए 5,850 करोड़ के इलेक्टोरल बांड, सिर्फ तीन शहरों में ही खरीदा गया 70 परसेंट हिस्सा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 12, 2019 04:27 PM2019-07-12T16:27:01+5:302019-07-12T16:27:01+5:30

इलेक्टोरल बांड 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये में उपलब्ध हैं।  इन बांड को खरीदने वाला व्यक्ति या संस्था अपने पसंद के राजनीतिक दल को दे देता है। बाद में पार्टी को 15 दिन के भीतर उन्हें भुनाने के लिए बैंक में जमा करना होता है।

Telling Numbers Electoral bonds worth Rs 5,850 crore sold so far, 70 percent in 3 metros | अब तक बेंचे गए 5,850 करोड़ के इलेक्टोरल बांड, सिर्फ तीन शहरों में ही खरीदा गया 70 परसेंट हिस्सा

फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में एक शब्द और भी है जो काफी चर्चा का विषय रहा जिसे चुनावी बांड या इलेक्टोरल बांड नाम दिया गया था। देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इसको शुरू करने का एलान किया गया था। इस स्कीम के लांच होने से लेकर अब तक कुल बिके 11,681 इलेक्टोरल बांड जिनकी कीमत 5,850.85 करोड़ रुपये है। 

इन कुल बांड में से 4045.81 करोड़ रुपये के बांड मतलब कुल खरीदे गए बांड का 70 परसेंट बांड मुख्य रूप से तीन बड़े शहरों में खरीदे गए। इनमें मुंबई, दिल्ली और कोलकाता हैं।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बांड की बिक्री करता है। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आरटीआई के जरिए मांगी गई जानकारी से पता लगता है कि यह स्कीम अलग-अलग महीनों में 9 चरणों में खोली गई थी। 

मुंबई में 1,782.36 करोड़ के बांड मुंबई में, कोलकाता में 1388.95 करोड़ के बांड और एसबीआई की दिल्ली ब्रांच से 874.50 करोड़ के बांड खरीदे गए।

इलेक्टोरल बांड 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये में उपलब्ध हैं।  इन बांड को खरीदने वाला व्यक्ति या संस्था अपने पसंद के राजनीतिक दल को दे देता है। बाद में पार्टी को 15 दिन के भीतर उन्हें भुनाने के लिए बैंक में जमा करना होता है।

इंडियन एक्सप्रेस ने अपने आरटीआई में ये जानने का प्रयास किया कि अलग-अलग महीनों में किस पार्टी ने चुनावी बांड को इनकैश (भुनाया) किया है तो एसबीआई ने जवाब देने से मना कर दिया।

बांड से जुड़े नियम
कोई भी भारतीय नागरिक, संस्था या फिर कंपनी चुनावी बॉन्ड को खरीद सकती है. 
बॉन्ड खरीदने के लिए KYC फॉर्म भरना होगा. 
जिसने बॉन्ड दिया है उसका नाम गुप्त रखा जाएगा. खरीदने वाले का भी नाम गुप्त रहेगा, लेकिन बैंक खाते की जानकारी रहेगी.
चुनावी बॉन्ड की अवधी 15 दिन के लिए होगी. जिसमें राजनीतिक दलों को दान किया जा सकेगा.
हर पॉलिटिकल पार्टी को चुनाव आयोग को बताना होगा कि बॉन्ड के जरिए उनके कितनी राशी मिली है.  

बांड पर विवाद
पॉलिटिकल फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के तमाम दावों के बीच इलेक्टोरल बांड पर भी अपारदर्शी होने का आरोप लगने लगा। राजनीतिक दलों की फंडिंग में अज्ञात स्नोतों से आने वाले आय की मात्र बहुत ज्यादा होती है। पिछले 15 वर्षो में अज्ञात स्नोतों से मिलने वाले राजनीतिक दलों के चंदे की मात्र काफी ज्यादा रही, लेकिन इलेक्टोरल बांड से भी इसमें ज्यादा बदलाव नहीं आया था।

यह लगता है कि इन बांडों के जरिये चंदे का कानून बनने से हम एक अपारदर्शी व्यवस्था को छोड़कर एक दूसरी अपारदर्शी व्यवस्था के दायरे में आ गए हैं। इसके पूर्व की व्यवस्था में राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से कम चंदे का विवरण न बताने की छूट थी। इसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। चुनावी बांड की व्यवस्था बनने के बाद इस छूट की सीमा 2,000 रुपये कर दी गई।

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