अदालतें सेना को संचालित नहीं कर सकतीं, सुप्रीम कोर्ट ने महिला कर्नल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा-हम अब सेना के कामकाज को संचालित नहीं कर सकते, जानें पूरा मामला
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 23, 2023 11:59 AM2023-09-23T11:59:06+5:302023-09-23T11:59:53+5:30
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ तीन मामलों की संयुक्त सुनवाई कर रही थी, जिनमें दो याचिकाएं थलसेना की महिला अधिकारियों और एक याचिका नौसेना की महिला अधिकारियों की ओर से दायर की गयी थी। इन याचिकाओं में पदोन्नति सहित कई मुद्दे उठाये गये हैं।

file photo
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने एक महिला कर्नल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतें सेना को संचालित नहीं कर सकतीं। महिला कर्नल को सैनिकों की एक कंपनी का प्रभार सौंपा गया था, जिसकी कमान आमतौर पर दो रैंक कनिष्ठ मेजर के पास होती है।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ तीन मामलों की संयुक्त सुनवाई कर रही थी, जिनमें दो याचिकाएं थलसेना की महिला अधिकारियों और एक याचिका नौसेना की महिला अधिकारियों की ओर से दायर की गयी थी। इन याचिकाओं में पदोन्नति सहित कई मुद्दे उठाये गये हैं। पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने जब न्यायालय को अवगत कराया कि महिला कर्नल को एक कंपनी का प्रभार सौंप दिया गया है, जबकि इसका नेतृत्व आमतौर पर मेजर रैंक का अधिकारी करता है। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम अब सेना के कामकाज को संचालित नहीं कर सकते।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम विधि संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करते हैं।’’
इसने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर हम सेना की कमांड संरचना को संचालित करना शुरू नहीं कर सकते हैं।’’ अधिकारी ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जहां एक महिला अधिकारी को स्थायी कमीशन दिया गया है और वह सेना में एक कर्नल है। अरोड़ा ने कहा कि यह उस महिला अधिकारी का "घोर अपमान" है, जो अब कर्नल है।
पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, "आपने अब शिकायत सुन ली है।" शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को तय करते हुए कहा कि कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें निश्चित रूप से अधिकारी स्वयं ही सुलझा सकते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे दो पृष्ठों का एक नोट जारी करें, जिसमें उनकी शिकायतें बताई गई हों।
इसने कहा कि प्रतिवादी अधिकारी उठाए गए मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए स्वतंत्र होंगे। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि इन कार्यवाहियों के लंबित रहने से सेना और नौसेना अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर गौर करने और उनके निवारण से नहीं रोका जाएगा।