CAA मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- केंद्र सरकार का पक्ष सुने बगैर रोक नहीं, चार सप्ताह में उससे मांगा जवाब

By भाषा | Published: January 22, 2020 03:43 PM2020-01-22T15:43:36+5:302020-01-22T15:43:36+5:30

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से फिलहाल सीएए पर अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) कार्यक्रम स्थगित करने का अनुरोध किया।

Supreme Court refuses to stay CAA, gives four weeks to Narendra Modi govt to respond | CAA मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- केंद्र सरकार का पक्ष सुने बगैर रोक नहीं, चार सप्ताह में उससे मांगा जवाब

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Highlightsउच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वह केन्द्र का पक्ष सुने बगैर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर रोक नहीं लगायेगा। न्यायालय ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिये केन्द्र को चार सप्ताह का वक्त दिया।

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वह केन्द्र का पक्ष सुने बगैर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर रोक नहीं लगायेगा। न्यायालय ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिये केन्द्र को चार सप्ताह का वक्त दिया और कहा कि इस मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस कानून को चुनौती देने वाली 143 याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया और सभी उच्च न्यायालयों को इस मामले पर फैसला होने तक सीएए को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने से रोक दिया। पीठ ने कहा कि असम और त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं पर अलग से विचार किया जायेगा क्योंकि इन दो राज्यों की सीएए को लेकर परेशानी देश के अन्य हिस्से से अलग है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी के दिमाग में यह मामला सर्वोपरि है। हम पांच न्यायाधीशों की पीठ गठित करेंगे और फिर मामला सूचीबद्ध करेंगे।’’ शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सीएए के अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के कार्यक्रम पर रोक लगाने के मुद्दे पर केन्द्र का पक्ष सुने बगैर एक पक्षीय आदेश नहीं दिया जायेगा। पीठ ने कहा, ‘‘हम सीएए का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देने के बारे में चार सप्ताह बाद ही कोई आदेश पारित करेंगे।’’

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता संशोधन कानून पर क्रियान्वयन और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिये केन्द्र को सुने बगैर वह एकपक्षीय आदेश नहीं देगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि असम में नागरिकता के लिये पहले कटऑफ की तारीख 24 मार्च, 1971 थी और सीएए के तहत इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2014 तक कर दिया गया है। पीठ ने कहा कि त्रिपुरा और असम से संबंधित याचिकाएं तथा नियम तैयार हुये बगैर ही सीएए को लागू कर रहे उप्र से संबंधित मामले पर अलग से विचार किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि सीएए को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के तरीके पर वह चैंबर में निर्णय करेगी और हो सकता है कि चार सप्ताह बाद रोजाना सुनवाई का निश्चय करे। इससे पहले, केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि सरकार को 143 में सिर्फ करीब 60 याचिकाओं की प्रतियां मिली हैं। वह सारी याचिकाओं पर जवाब देने के लिये समय चाहते थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से फिलहाल सीएए पर अमल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) कार्यक्रम स्थगित करने का अनुरोध किया। नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 तक देश में आये हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को 12 दिसंबर को अपनी संस्तुति प्रदान की थी।

राष्ट्रपति की संस्तुति के साथ ही यह कानून बन गया था और यह 10 जनवरी को जारी अधिसूचना के बाद देश में लागू हो गया है। सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की गयी हैं। याचिका दायर करने वालों में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश, तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद के नेता मनोज झा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, आसू, पीस पार्टी, अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के अनेक छात्र शामिल हैं।

केरल की माकपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुये संशोधित नागरिकता कानून, 2019 को चुनौती दी है। आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा है कि सीएए समता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक वर्ग को अलग रखते हुये अन्य गैरकानूनी शरणार्णियों को नागरिकता प्रदान करना है। याचिका में यह भी दलील दी गयी है कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है। 

Web Title: Supreme Court refuses to stay CAA, gives four weeks to Narendra Modi govt to respond

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