सुप्रीम कोर्ट का आदेश, राज्य सरकारें देंगी प्रवासी मजदूरों का किराया और खाना

By स्वाति सिंह | Published: May 28, 2020 04:23 PM2020-05-28T16:23:08+5:302020-05-28T16:37:05+5:30

कोविड-19 महामारी की वजह से चार घंटे की नोटिस पर 25 मार्च से देश में लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों भूखे प्यासे श्रमिक विभिन्न जगहों पर फंस गये। उनके पास ठहरने की भी सुविधा नहीं थी। इन श्रमिकों ने आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पैदल ही अपने अपने घर की ओर कूच कर दिया था। शीर्ष अदालत ने 26 मई को इन कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया था अैर उसने केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा था।

Supreme court order, state governments will pay rent and food for migrant laborers | सुप्रीम कोर्ट का आदेश, राज्य सरकारें देंगी प्रवासी मजदूरों का किराया और खाना

SC ने कहा कि विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए सभी प्रवासी कामगारों को संबंधित राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा उन स्थानों पर भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।

Highlightsप्रवासी मज़दूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई की सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन या बस का कोई किराया नहीं लिया जाएगा।

नई दिल्ली: प्रवासी मज़दूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि मजदूरों से ट्रेन या बस का कोई किराया न लिया जाए, राज्य सरकार किराया दे। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि जो जहां फंसा है उसे वहां की राज्य सरकार भोजन दे। उन तक जानकारी पहुंचाई जाए कि मदद कहां उपलब्ध है।' 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन या बस का कोई किराया नहीं लिया जाएगा। अदालत ने कहा कि विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए सभी प्रवासी कामगारों को संबंधित राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा उन स्थानों पर भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। इसके अलावा मजदूरों को ट्रेन या बसों में चढ़ने का समय भी बताया जाएगा। 

साथ ही कोर्ट ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से कहा फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए जगह और अवधि को प्रचारित करें।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इन कामगारों की वेदनाओं का स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से विभिन्न जगहों पर फंसे हुए इन श्रमिकों की यात्रा के किराये के भुगतान को लेकर व्याप्त भ्रम के बारे में जानकारी चाही। पीठ ने कहा कि इन श्रमिकों को अपनी घर वापसी की यात्रा के लिये किराये का भुगतान करने के लिये नहीं कहना चाहिए।

पीठ ने मेहता से सवाल किया, ‘‘सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जायेगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।’’

पीठ ने इन कामगारों की यात्रा के भाड़े के बारे में सवाल किये और कहा, ‘‘हमारे देश में बिचौलिया हमेशा ही रहता है। लेकिन हम नहीं चाहते कि जब भाड़े के भुगतान का सवाल हो तो इसमें बिचौलिया हो। इस बारे में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि उनकी यात्रा का खर्च कौन वहन करेगा।’’ इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने केन्द्र की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की और कहा कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिये कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलायी गयी और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि बुधवार तक करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि केन्द्र और राज्यों ने राहत के लिये कदम उठाये हैं लेकिन वे अपर्याप्त हैं और इनमें कमियां हैं। साथ ही उसने केन्द्र और राज्यों से कहा था कि वे श्रमिकों को तत्काल नि:शुल्क भोजन, ठहरने की सुविधा उपलब्ध करायें तथा उनके अपने-अपने घर जाने के लिये परिवहन सुविधा की व्यवस्था करें।

Web Title: Supreme court order, state governments will pay rent and food for migrant laborers

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