शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंचित, कहा- सिर्फ सड़क रोकने की बात नहीं है...ऐसा कब तक चलेगा
By भाषा | Published: February 18, 2020 02:39 AM2020-02-18T02:39:35+5:302020-02-18T02:39:35+5:30
सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के कारण पिछले वर्ष 15 दिसम्बर से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग और ओखला अंडरपास बंद है।
नई दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि शाहीन बाग में सड़क अवरूद्ध किये जाने से वह चिंतित है और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनकारियों को ऐसी जगह जाने का सुझाव दिया, जहां कोई सार्वजनिक स्थान अवरूद्ध नहीं हो। शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से कहा कि वह प्रदर्शन कर रहे लोगों को वैकल्पिक स्थान पर जाने के लिये राजी करने के लिये ‘वार्ताकार के रूप में रचनात्मक भूमिका निभायें।’ न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि लोगों को ‘शांतिपूर्ण और विधिपूर्वक’ विरोध प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है लेकिन सार्वजनिक सड़कों और स्थानों को अवरूद्ध करना चिंता का विषय है क्योंकि इससे ‘अराजक स्थिति’ पैदा हो सकती है।
हमारी चिंता यह है कि अगर हर व्यक्ति सार्वजनिक इलाकों को अवरूद्ध करने लगा, तो यह कहां खत्म होगा- उच्चतम न्यायालय
पीठ ने कहा कि इसमें ‘संतुलन बनाने’ की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति पर चलता है लेकिन इसके लिये भी सीमायें हैं। यह सवाल उठ रहा है कि प्रदर्शन कहां हो।’ शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने और इस क्षेत्र में यातायात सुचारू बनाने के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘‘हमारी चिंता यह है कि अगर हर व्यक्ति सार्वजनिक इलाकों को अवरूद्ध करने लगा, तो यह कहां खत्म होगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इसमें संतुलन बनाया जाना चाहिए। सार्वजनिक सड़क को अवरूद्ध किया जाना हमे परेशान कर रहा है।’’ पीठ ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिये अधिवक्ता साधना रामचंद्रन और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) वजाहत हबीबुल्ला की सहायता ले सकते हैं।
दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि इस स्थान से प्रदर्शनकारियों को हटाना ही समाधान है। मेहता ने कहा, ‘‘हम उस हद तक नहीं जायेंगे, लेकिन समस्या यह है कि प्रदर्शनकारी, बच्चों और महिलाओं को ढाल बना रहे हैं। हमने स्थानीय निवासियों के कल्याण संगठनों, मस्जिदों के इमामों से कई बार बातचीत की है और हम उन्हें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि विरोध प्रदर्शन की आड़ में पूरे शहर को बंधक बनाने का तरीका ठीक नहीं है।
पीठ ने जब हेगड़े से कहा कि वह विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों से बात करें तो मेहता ने कहा, ‘‘यह संदेश नहीं जाने दें कि उन्हें मनाने के लिये प्रत्येक संस्था उनके आगे झुक रही है...मैं नहीं चाहता कि यह संदेश जाये कि हम उन्हें हटाने का अनुरोध कर रहे हैं।’’ हालांकि पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘हम समस्या का समाधान करना चाहते हैं और हमने अपना विकल्प जाहिर कर दिया है। यदि कुछ नहीं हो पाया, तो हम स्थिति से निपटना अधिकारियों पर छोड़ देंगे।’’
मुद्दा यह है कि अगर लोग सार्वजनिक सड़कों और सार्वजनिक स्थनों को अवरूद्ध करने लगे, तो क्या होगा- उच्चतम न्यायालय
पीठ ने मेहता से यह भी जानना चाहा कि क्या विरोध प्रदर्शन करने वालों को कोई वैकल्पिक स्थान दिया जा सकता है। मेहता ने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें धरना प्रदर्शन के लिए जंतर मंतर जैसे स्थान निर्धारित करना पड़ा। हमारे यहां बहुत अधिक पेशेवर प्रदर्शनकारी हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘लोगों को विरोध प्रदर्शन की अनुमति देना जरूरी है। विरोध प्रदर्शन के अधिकार को दुनिया भर में और विशेष रूप से भारत में, मान्यता प्राप्त है। शांतिपूर्ण तरीके से एकत्र होकर प्रदर्शन करना मौलिक अधिकार है।’’
इस मामले पर सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा कि लोगों को या समाज के किसी भी वर्ग को किसी कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने और उसके बारे में अपनी शिकायतों को प्रकट करने का अधिकार है। पीठ ने कहा, ‘‘ यह सवाल नहीं है कि यातायात का यहां या वहां से प्रबंधन किया जा सकता है। आज यह प्रदर्शन एक कानून के खिलाफ है। कल किसी अन्य कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो सकता है। मुद्दा यह है कि अगर लोग सार्वजनिक सड़कों और सार्वजनिक स्थनों को अवरूद्ध करने लगे, तो क्या होगा।’’
पीठ ने इस मामले में हस्तक्षेप के लिए भीम आर्मी के प्रमुख चंद्र शेखर आजाद और हबीबुल्लाह सहित दो अन्य के आवेदनों पर भी विचार किया। उनकी ओर से पेश हुए वकील ने न्यायालय से कहा कि प्रदर्शन जारी है और ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक धर्म के लोग वहां प्रदर्शन कर रहे हैं। पीठ को जब यह बताया गया कि बच्चे प्रदर्शन के चलते स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, इस पर पीठ ने कहा, ‘‘अवश्य ही संतुलन बनाया जाना चाहिए। आप प्रदर्शन कर सकते हैं, कहीं और भी कर सकते हैं। यदि यह (प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक स्थान अवरूद्ध किए जाते हैं) अन्य स्थानों पर होता है तो यह अराजकता की ओर ले जाएगा।
पीठ ने कहा कि सोशल मीडिया के युग में किसी भी व्यक्ति के अत्यधिक उत्साही होने की प्रवृत्ति है। सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के कारण पिछले वर्ष 15 दिसम्बर से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग और ओखला अंडरपास बंद है। न्यायालय वकील अमित साहनी की अपील की सुनवाई कर रहा था। साहनी दिल्ली उच्च न्यायालय भी गये थे और 15 दिसम्बर को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा अवरूद्ध किये गये कालिंदी-शाहीन बाग मार्ग पर यातायात के सुचारू संचालन के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया था।
साहनी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों को कानून एवं व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए स्थिति से निपटने को कहा था। भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने शीर्ष न्यायालय में अलग से एक याचिका दायर की और शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया। अपनी अपील में साहनी ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या दिल्ली उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश से शाहीन बाग में स्थिति की निगरानी कराने का अनुरोध किया था। साहनी ने अपनी याचिका में कहा कि शाहीन बाग में प्रदर्शनों ने अन्य शहरों में भी इसी तरह के प्रदर्शन किये जाने के लिए लोगों को प्रेरित किया और यदि ऐसा होता रहा तो इससे गलत उदाहरण स्थापित होगा।