महाराष्ट्र की 30 फीसदी आबादी मराठा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-सीमांत वर्ग के साथ तुलना नहीं की जा सकती

By भाषा | Published: September 11, 2020 07:14 PM2020-09-11T19:14:58+5:302020-09-11T19:14:58+5:30

शीर्ष अदालत ने कहा कि पहली नजर में उसका मत है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह नहीं बताया कि शीर्ष अदालत द्वारा 1992 में मंडल प्रकरण में निर्धारित आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा से बाहर मराठों को आरक्षण प्रदान करने के लिये कोई असाधारण स्थिति थी।

Supreme Court Maratha 30% of Maharashtra's population cannot be compared with marginal class | महाराष्ट्र की 30 फीसदी आबादी मराठा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-सीमांत वर्ग के साथ तुलना नहीं की जा सकती

महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून, 2018 में बनाया था।

Highlights न्यायालय ने मराठा समुदाय के लिये राज्य में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने संबंधी कानून के अमल पर रोक लगाते हुये यह टिप्पणी की है।सत्र 2020-21 के दौरान शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश मराठा समुदाय के लिये आरक्षण प्रदान करने वाले कानून पर अमल किये बगैर ही किये जायेंगे।राज्य के 2018 के इस कानून पर अमल से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को अपूर्णीय क्षति हो जायेगी।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि महाराष्ट्र की 30 फीसदी आबादी मराठा है और इसकी तुलना समाज के सीमांत तबके के साथ नहीं की जा सकती। न्यायालय ने मराठा समुदाय के लिये राज्य में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने संबंधी कानून के अमल पर रोक लगाते हुये यह टिप्पणी की है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पहली नजर में उसका मत है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह नहीं बताया कि शीर्ष अदालत द्वारा 1992 में मंडल प्रकरण में निर्धारित आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा से बाहर मराठों को आरक्षण प्रदान करने के लिये कोई असाधारण स्थिति थी।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने कहा कि सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी पदों पर नियुक्तियों और शैक्षणिक सत्र 2020-21 के दौरान शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश मराठा समुदाय के लिये आरक्षण प्रदान करने वाले कानून पर अमल किये बगैर ही किये जायेंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इन अपील के लंबित होने के दौरान राज्य के 2018 के इस कानून पर अमल से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को अपूर्णीय क्षति हो जायेगी। महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून, 2018 में बनाया था।

बंबई उच्च न्यायालय ने पिछले साल जून में इस कानून को वैध ठहराते हुये कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने नौ सितंबर को उच्च न्यायालय के आदेश और इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।

न्यायालय ने कहा कि संविधान के 102वें संशोधन कानून, 2018 से शामिल किये गये प्रावधान की व्याख्या महत्वपूर्ण कानूनी सवाल है और संविधान की व्याख्या से संबंधित है। अत: 2018 के फैसले के खिलाफ इन अपील को वृहद पीठ के सौंपा जायेगा।

न्यायालय ने कहा कि पिछड़े वर्गों के राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिये संविधान के 102वें संशोधन कानून के माध्यम से शामिल प्रावधान का अभी कोई सुविचारित फैसला या व्याख्या नहीं है। ऐसी स्थिति में इन अपीलों पर वृहद पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है।

Web Title: Supreme Court Maratha 30% of Maharashtra's population cannot be compared with marginal class

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