निजी स्वतंत्रता के मामलों से निपटने में उच्चतम न्यायालय का रूख रहा है उदार, न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा
By भाषा | Published: November 20, 2020 09:46 PM2020-11-20T21:46:34+5:302020-11-20T21:46:34+5:30
नयी दिल्ली 20 नवंबर न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मदन बी लोकुर ने शुक्रवार को कहा कि निजी स्वतंत्रता से संबंधित मामलों की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय का रवैया उदार रहा है और इसे ऐसा ही होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं महत्वपूर्ण हैं और उदारता से सुनवाई होनी चाहिए क्योंकि जब आप किसी व्यक्ति को हिरासत में लेते हैं तो आप उस व्यक्ति को बिना मुकदमे के बंधक बनाते हैं। गैर कानूनी तरीके से रोककर रखे गए व्यक्ति के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की जाती है ।
दिल्ली हाई कोर्ट वुमन लॉयर्स फोरम और वुमन इन क्रिमनल लॉ एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘आजादी की रक्षा’ विषय पर वेबिनार में लोकुर ने विशेष कानूनों के तहत मुकदमों की रोजाना सुनवाई का समर्थन किया और कानूनी पेशे की राह में आड़े आने वाली विचाराधारा के प्रति आगाह किया।
उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व में आपको कुछ ही ऐसे मामले मिलेंगे जहां बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में लोगों को राहत नहीं मिली हो। अदालतों ने यह भी कहा है कि एक याचिका खारिज होने पर दूसरी दाखिल की जा सकती है। इसलिए ऐसा नहीं है कि एक रिट याचिका खारिज होने से राह बंद हो जाती है। ’’
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय का रूख उदार रहा है और ऐसा होना भी चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि अगर कोई व्यक्ति याचिका दाखिल नहीं कर सकता तो पोस्टकार्ड से ही शिकायत कर सकता है।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि जब वह गौहाटी उच्च न्यायालय में थे तो उन्होंने एक एसएमएस के आधार पर, जेल में अवैध हिरासत के आरोपों को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तौर पर संज्ञान लिया था।
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