सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी केस में केंद्र को फिर से क्लीयर किया, "हम नोटबंदी के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की जांच कर सकते हैं"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 6, 2022 10:02 PM2022-12-06T22:02:44+5:302022-12-06T22:07:04+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्ट शब्दों में कहा कि नोटबंदी में लागू की गई नीतियों को ठीक तरीके से लागू किया गया कि नहीं, इसकी जांच करना अदालत का उत्तरदायित्व है और हम बेशक इसकी जांच कर सकते हैं।
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा की गई नोटबंदी के मामले में सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा कि हम इस मसले को केवल इसलिए नहीं छोड़ सकते हैं क्योंकि यह आर्थिक नीतियों से संबंधित है, चूंकि इससे आम जनता का सीधा जुड़ाव है। इसलिए हम हमेशा इसकी जांच कर सकते हैं कि नोटबंदी का फैसला किस तरह से लिया गया।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्ट शब्दों में कहा कि नोटबंदी में लागू की गई नीतियों को ठीक तरीके से लागू किया गया कि नहीं, इसकी जांच करना अदालत का उत्तरदायित्व है। 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली दलीलों में आरबीआई के विवाद को खारिज करते हुए कि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, "अदालत नोटबंदी के फैसले के गुणों पर नहीं जाएगी। लेकिन सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक फैसला है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम हाथ बांधकर बैठे रहेंगे। हम हमेशा इस बात की जांच कर सकते हैं कि आखिर उस फैसले को किस तरह से लिया गया।"
रिजर्व बैंक की ओर से नोटबंदी के निर्णय का बचाव करते हुए वकील जयदीप गुप्ता ने जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के सामने कहा कि न्यायिक समीक्षा केवल तभी होगी जब कोई "प्रक्रियात्मक चूक" हो और इस मामले में इस तरह की कोई चूक नहीं हुई है। इस कारण फैसले की न्यायिक समीक्षा सही नहीं है।
उन्होंने मामले में दलील देते हुए कहा कि धारा 26 (2) के तहत नोटबंदी को लागू करने में सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया था और कोई भी निर्णय असंवैधानिक होने पर ही न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। इसलिए नोटबंदी को न्यायिक समीक्षा के दूर रखा जाना चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट के सामने यह भी तर्क दिया कि रिजर्व बैंक ने फैसले को लागू करते समय इस बात का ध्यान रखा गया था कि इसे लागू करने से किसी का पैसा अनावश्यक रूप से बर्बाद न हो। उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी के बाद लोगों को उचित अवसर दिए गए थे, ताकि वो दिये गये अन्य वैकल्पिक व्यवस्था कर लें और उसके बाद भी कोई समस्या उत्पन्न हुई तो सरकार ने फौरन उसका संज्ञान लिया है।
वकील जयदीप गुप्ता ने कहा, "अब यदि सरकार नोटबंदी के निर्णय से निपटने के लिए इतनी तत्पर थी, तो उसे बिना सोचे-समझे फैसला लागू करने का आरोप लगाने का कोई मतलब नहीं बनता है। सरकार ने नोटबंदी लागू होने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का निराकरण किया और इसके लिए सरकार ने बाकायदा एक नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किया था।
वहीं केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कोर्ट के सामने दलील रखते हुए कहा कि नोटबंदी का फैसला सामाजिक नीति से जुड़ी तीन बुराइयों को दूर करने के लिए लिया गया था। अदालतें कभी भी आर्थिक नीति के मामले में हस्तक्षेप नहीं करती हैं। हम जब भी एक ढांचे से दूसरे ढांचे में जाते हैं, तो राज्य को संतुलन बनाना होता है और उसमें कई तरह की कठिनाइयां भी आती हैं।
वहीं सरकार और आरबीआई की दलीलों के उलट वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंहरम ने कोर्ट से कहा कि केंद्र इस तरह के किसी भी फैसले के संबंध में केवल रिजर्व बैंक की सिफारिशों के अनुसार ही कार्य कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा, "नोटबंदी का मौद्रिक नीति से कोई लेना-देना नहीं है। मौद्रिक नीति और आर्थिक नीति जैसे जुमले अदालत को बता रहे हैं कि वे विशेषज्ञ नहीं हैं। हममें से कोई भी विशेषज्ञ नहीं है।"