RSS के सह सरकार्यवाह ने कहा- राजनीतिक स्वार्थ के लिए गांधीजी का नाम भुनाने को कुछ लोग गोडसे का नाम लेते हैं 

By भाषा | Published: January 29, 2020 08:26 PM2020-01-29T20:26:20+5:302020-01-29T20:26:20+5:30

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा, ‘‘अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए गांधीजी के नाम को भुनाने के लिये ऐसे लोग गोडसे का नाम बार बार लेते हैं जिन लोगों का आचरण और उनकी नीतियों का गांधीजी के विचारों से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं दिखता।’’

some people take Nathuram Godse's name to redeem Gandhiji's name for political selfishness says manmohan vaidya | RSS के सह सरकार्यवाह ने कहा- राजनीतिक स्वार्थ के लिए गांधीजी का नाम भुनाने को कुछ लोग गोडसे का नाम लेते हैं 

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा है कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के मकसद से महात्मा गांधी के नाम को भुनाने के लिए ऐसे लोग गोडसे का नाम बार बार लेते हैं जिन लोगों का गांधीजी के आचरण, विचारों और नीतियों से कोई सरोकार नहीं। गांधीजी के विचारों को प्रेरक बताते हुए उन्होंने कहा कि ग्राम विकास, जैविक कृषि, गौ संवर्द्धन, सामाजिक समरसता, मातृ भाषा में शिक्षा और स्वदेशी अर्थव्यवस्था एवं जीवनशैली जैसे गांधीजी के प्रिय आग्रह के क्षेत्रों में आरएसएस स्वयंसेवक पूर्ण मनोयोग से सक्रिय हैं। 

वैद्य ने ‘‘साहित्य अमृत’’ पत्रिका के गांधी विशेषांक में अपने लेख ‘‘संघ और गांधीजी के संबंध ’’ में यह बात कही। आरएसएस के सह सरकार्यवाह ने लिखा, ‘‘सभी दल अपनी अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार चुनावी भाषण दे रहे हैं। एक दल के नेता ने कहा कि इस चुनाव में आपको (लोगों को) गांधी और गोडसे के बीच चुनाव करना है। पर एक बात मैंने देखी है कि जो गांधीजी के असली अनुयायी हैं, वे अपने आचरण पर अधिक ध्यान देते हैं।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए गांधीजी के नाम को भुनाने के लिये ऐसे लोग गोडसे का नाम बार बार लेते हैं जिन लोगों का आचरण और उनकी नीतियों का गांधीजी के विचारों से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं दिखता।’’ मनमोहन वैद्य ने कहा कि ऐसे लोग सरासर असत्य और हिंसा का आश्रय लेने वाले और अपने स्वार्थ के लिये गांधीजी का उपयोग करने वाले ही होते हैं। 

गांधीजी के अनेक विचारों के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा कि आजादी के आंदोलन में सर्व सामान्य लोगों को सहभागी बनाने के लिये उन्होंने (गांधीजी) चरखा जैसे सहज उपलब्ध अमोघ साधन और सत्याग्रह जैसा सहज स्वीकार्य तरीका दिया और यह उनकी महानता है। वैद्य के अनुसार, ग्राम स्वराज, स्वदेशी, गौरक्षा, अस्पृश्यता निर्मूलन आदि उनके आग्रह के विषयों से भारत के मूलभूत हिंदू चिंतन से उनके लगाव के महत्व को कोई नकार नहीं सकता। 

उन्होंने यह भी कहा कि उनके कुछ मतों से असहमत होते हुए भी संघ के उनके साथ कैसे संबंध थे, इस पर उपलब्ध जानकारी पर नजर डालनी चाहिए। संघ के सह सरकार्यवाह ने इस संबंध में सविनय अवज्ञा आंदोलन और डा. हेडगेवार की सहभागिता का जिक्र किया। इसमें उन्होंने ‘‘जस्टिस आन ट्रायल’’ पुस्तक तथा सार्वजनिक व्याख्यान का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि इन सारे तथ्यों को ध्यान में लिये बिना संघ और गांधीजी के संबंध पर टिप्पणी करना असत्य और अनुचित ही कहा जा सकता है।

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