अर्थव्यवस्था में जारी मंदी को खत्म करने के लिए कुछ बड़े कदम उठाने होंगेः पूर्व गवर्नर रघुराम राजन
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 23, 2019 08:25 PM2019-08-23T20:25:39+5:302019-08-23T20:25:39+5:30
देश के अर्थशास्त्री सहित विपक्षी दल के नेता लगातार कह रहे हैं कि नौकरियों के नुकसान को लेकर सभी लोग निजी तौर पर चिंतित है। ‘‘यह गंभीर चिंता का विषय है, विशेषकर वाहन क्षेत्र, कपड़ा क्षेत्र, रीयल एस्टेट और अन्य ऐसे क्षेत्र जिनमें नरमी का असर अधिक है।’’
भारत सहित दुनिया में अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। सरकार को जल्द से जल्द आर्थिक नरमी पर कुछ करना होगा। देश में इन दिनों इकोनॉमी का बुरा हाल हो रहा है। कांग्रेस ने नीति आयोग की रिपोर्ट पर भाजपा सरकार पर हमला बोला है।
देश के अर्थशास्त्री सहित विपक्षी दल के नेता लगातार कह रहे हैं कि नौकरियों के नुकसान को लेकर सभी लोग निजी तौर पर चिंतित है। ‘‘यह गंभीर चिंता का विषय है, विशेषकर वाहन क्षेत्र, कपड़ा क्षेत्र, रीयल एस्टेट और अन्य ऐसे क्षेत्र जिनमें नरमी का असर अधिक है।’’
साल 2008 में अमेरिका से शुरू हुए आर्थिक संकट ने कुछ ही दिनों में पूरी दुनिया को मंदी की चपेट में ले लिया। हफिंग्टन पोस्ट के मुताबिक आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 2005 में ही इस बारे में चेतावनी दी थी। अमेरिका के व्योमिंग में अर्थशास्त्रियों और बैंक प्रमुखों की बैठक में उन्होंने कहा था कि बाजार में भारी जटिलताएं फैली हुई हैं। इसका मतलब है कि जोखिम तेजी से बढ़ रहा है।
पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा- बड़े कदम उठाने की जरूरत
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जारी मंदी को खत्म करने के लिए कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। मोदी सरकार को तुरंत ही एनर्जी सेक्टर और नॉन बैंकिंर फाइनेंशियल कंपनी(NBFC) की समस्या को खत्म करना होगा।
प्राइवेट सेक्टर पर ध्यान देने की जरूरत है। उसमें सरकार को सुधार करनी होगी। इस बाते के संकेत है कि पूरे दुनिया में मंदी गहरा सकती है। आटो सेक्टर का बुरा हास है। यह 20 साल के सबसे खराब दौर में है। लाखों नौकरियों पर संकट है। बाजार को पैकेज की जरूरत है।
वर्ष 2013-16 के बीच गवर्नर रहे राजन ने भारत में जीडीपी की गणना के तरीके पर नये सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया है। इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम के शोध निबंध का हवाला दिया जिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ा चढ़ाकर आंका गया है। राजन ने कहा, 'आप सभी तरफ देख सकते हैं, कि कंपनियां चिंतित हैं और जोर-शोर से कह रही हैं कि उन्हें कुछ न कुछ प्रोत्साहन दिया जाए।'
उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2018-19 में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार 6.8 फीसदी पर रह गई, जो 2014-15 के बाद से सबसे कम रहा। विभिन्न निजी विशेषज्ञों और केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि इस साल जीडीपी वृद्धि सात फीसदी के सरकारी अनुमान से कम रहेगी। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कैलेंडर वर्ष 2019 के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.2 प्रतिशत कर दिया है।
रघुराम राजन ने कहा, पूंजीवाद ‘खतरे’ में
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मंगलवार को चेताया कि समाज में संभावित ‘‘विद्रोह’’ की स्थिति को देखते हुये पूंजीवाद पर " गंभीर खतरा " दिखता है। उन्होंने कहा कि विशेषकर 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के बाद आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था लोगों को बराबर अवसर उपलब्ध नहीं करा पाई है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में प्रोफेसर राजन ने बताया कि अर्थव्यवस्था के बारे में विचार करते समय दुनिया भर की सरकारें सामाजिक असमानता को नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा , " मेरा मानना है कि पूंजीवाद गंभीर खतरे में है क्योंकि इसमें कई लोगों को अवसर नहीं मिल पा रहे हैं और जब ऐसा होता है तो पूंजीवाद के खिलाफ विद्रोह खड़ा हो जाता है।"
राजन ने कहा कि मुझे लगता है कि पूंजीवाद कमजोर पड़ रहा है क्योंकि यह लोगों को बराबर अवसर नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा , " पूंजीवाद लोगों को बराबरी के अवसर नहीं दे रहा है और वास्तव में जो लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं उनकी स्थिति बिगड़ी है।"
राजन ने कहा, "संसाधनों का संतुलन जरूरी है, आप अपनी पसंद से कुछ भी चुन नहीं सकते हैं। वास्तव में जो करने की जरूरत है वह अवसरों में सुधार लाने की जरूरत है।" पूर्व गवर्नर ने कहा कि अतीत में " मामूली शिक्षा " के साथ एक मध्यम वर्ग की नौकरी प्राप्त करना संभव था। लेकिन 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद स्थिति बदली है। अगर आपको सफलता हासिल करनी है तो आपको वास्तव में अच्छी शिक्षा की जरूरत है।'
क्या कहा नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिये प्रोत्साहित हों।
आर्थिक नरमी को लेकर चिंता के बीच उन्होंने यह बात कही। उन्होंने वित्तीय क्षेत्र में बने अप्रत्याशित दबाव से निपटने के लिये लीक से हटकर कदम उठाने पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि निजी निवेश तेजी से बढ़ने से भारत को मध्यम आय के दायरे से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। कुमार ने वित्तीय क्षेत्र में दबाव को अप्रत्याशित बताया।
उन्होंने कहा कि किसी ने भी पिछले 70 साल में ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जब पूरी वित्तीय प्रणाली में जोखिम है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिये प्रोत्साहित हों।’’
उन्होंने यहां एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘कोई भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है ...निजी क्षेत्र के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नकदी लेकर बैठा है...आपको लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। इस बारे में विस्तार से बताते हुए कुमार ने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में दबाव से निपटने और आर्थिक वृद्धि को गति के लिये केंद्रीय बजट में कुछ कदमों की घोषणा पहले ही की जा चुकी है।
वित्त वर्ष 2018-19 में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही जो 5 साल का न्यूनतम स्तर है
वित्तीय क्षेत्र में दबाव से अर्थव्यवस्था में नरमी के बारे में बताते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि पूरी स्थिति 2009-14 के दौरान बिना सोचे-समझे दिये गये कर्ज का नतीजा है। इससे 2014 के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ी है। उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज में वृद्धि से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है। इस कमी की भरपाई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की। इनके कर्ज में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। एनबीएफसी कर्ज में इतनी वृद्धि का प्रबंधन नहीं कर सकती और इससे कुछ बड़ी इकाइयों में भुगतान असफलता की स्थिति उत्पन्न हुई। अंतत: इससे अर्थव्यवस्था में नरमी आयी।
कुमार ने कहा, ‘‘नोटबंदी और माल एवं सेवा कर तथा ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता के कारण खेल की पूरी प्रकृति बदल गयी। पहले 35 प्रतिशत नकदी घूम रही थी, यह अब बहुत कम हो गयी है। इन सब कारणों से एक जटिल स्थिति बन गयी है। इसका कोई आसान उत्तर नहीं है।’’ सरकार और उसके विभागों द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिये भुगतान में देरी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह भी सुस्ती की एक वजह हो सकती है। प्रशासन प्रक्रिया को तेज करने के लिये हर संभव प्रयास कर रहा है।