Covid-19: कोरोना पर आई एम्स की नई स्टडी, गठिया रोगियों को लेकर हुआ चौंकाने वाला खुलासा
By एसके गुप्ता | Published: October 11, 2020 11:31 AM2020-10-11T11:31:40+5:302020-10-11T12:05:05+5:30
एम्स की नई स्टडी में पता चला है कि ऑर्थराइटिस के मरीजों को कोरोना से मधुमेह और उच्च रक्तचापरोगियों की तुलना में कम खतरा है।
ऑर्थराइटिस (गठिया) मरीजों की तादाद में रोजाना वृद्धि हो रही है। एम्स रियूमेटोलॉजी विभाग से संबंधित मरीजों की तादाद करीब 25 फीसदी बढ़ गई है। एम्स रियूमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष्ज्ञ प्रो. उमा कुमार कहती हैं कि हाल ही में एम्स ने गठिया रोगियों पर एक अध्ययन किया तो पता चला कि कोरोना और गठिया रोगियों को दी जाने वाली दवा के केमिकल काफी हद तक समान है। इसलिए गठिया रोगियों को आमजन की तरह कोरोना से सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो लोग ऑर्थराइटिस रोग से पीडित हैं, उन्हें नियमित दवा सेवन के साथ योगा भी कराना चाहिए। इससे रोगी की स्थिति में तेजी से सुधार होता है।
1000 गठिया रोगियों पर अध्ययन
प्रो. उमा कुमार ने कहा कि हाल ही में एम्स ने 1000 गठिया रोगियों पर अध्ययन किया। जिससे यह पता चला कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप वाले मरीजों में कोरोना संक्रमण का जितना ज्यादा खतरा है, उतना खतरा गठिया रोगियों को नहीं है। इसकी वजह यह भी है कि गठिया रोगियों को दी जाने वाली दवाओं में हाईड्रोक्सी, एस्ट्रोएड होते हैं। यह कैमिकल कोरोना की दवा में भी दिए जाते हैं। खास बात यह है कि हड्डी रोगियों को विटामिन-डी लेने के लि धूप सेंकने की सलाह भी दी जाती है। विटामिन-डी इम्युनिटी बढ़ाने में काफी कारगर है। ऐसे में लोगों को यही सलाह है कि वह सर्दियों में पार्क में एक से दो घंटे धूप जरूर लें। इससे उनकी इम्युनिटी भी मजबूत होगी। इसके अलावा योगा करें, जिससे बढ़ते प्रदूषण और गिरती इम्युनिटी सुधर सके।
12 अक्टूबर को विश्व ऑर्थराइटिस दिवस
एम्स रियूमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष् प्रो. उमा कुमार ने कहा कि 12 अक्टूबर को विश्व ऑर्थराइटिस दिवस है। मौसम में भी बदलाव आ रहे हैं। ठंड बढ़ने के साथ ही दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील होने लगती है। जिससे गठिया रोगियों की स्थिति गंभीर हो जाती है। प्रो. उमा कहती हैं कि पिछले साल प्रदूषण और गठिया के बीच संबंध जानने के लिए 350 लोगों पर अध्ययन किया गया। ये दिल्ली में 10 वर्ष से भी ज्यादा समय से रह रहे थे। इनमें से करीब 20 फीसदी रोगियों में प्रदूषण से गठिया होने की पुष्टि हुई थी। धूल के महीन कण पीएम 2.5 और उससे सूक्ष्म कण शरीर में पहुंचने के बाद रक्त में मिलकर कई तरह के दुष्प्रभाव सामने लाते हैं। इन्हीं में से कई जहरीले कण इंसान के जोड़ों पर भी वार करते हैं।