शोभना जैन का ब्लॉग: उदारता के साथ दृढ़ता की पड़ोस नीति ही बेहतर
By शोभना जैन | Published: December 12, 2020 12:18 PM2020-12-12T12:18:54+5:302020-12-12T12:19:02+5:30
कोरोना काल के बावजूद भारत के विदेश मंत्री, विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने हाल ही में कुछ पड़ोसी देशों की यात्रएं कीं जिनसे आपसी समझबूझ बढ़ी, सहमति के नए बिंदु बने और रिश्तों में नजदीकियां बढ़ीं.
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने हाल ही में अपनी नई पुस्तक ‘द इंडिया वे’ में लिखा है कि पड़ोसियों के साथ ‘उदारता और दृढ़ता’ की नीति का साथ-साथ पालन करना होगा. अपनी इस टिप्पणी के बाबत विदेश मंत्री ने कहा, ‘किसी एक घटना को मापने का इसे पैमाना नहीं बनाया जाना चाहिए. समस्याएं आएंगी ही. हमारे अधिकतर पड़ोसी देशों में लोकतंत्र है. उनकी अपनी राजनीति है, हमारी अपनी. तो मसले तो होंगे ही. ऐसे में सवाल उठता है, तनाव वाले मुद्दों को कम कैसे कम किया जाए.
समान बिंदुओं पर कैसे पहुंचा जाए और जब एक, दो या तीन बरस बाद बादल छंटते हैं तो आप सवाल पूछते हैं क्या हम आगे बढ़े हैं. पड़ोस को देखें तो मुझे लगता है काफी बदलाव आया है.’ बहरहाल विदेश मंत्री के इस बयान के संदर्भ में देखें तो मोदी सरकार ने 2014 में ‘पड़ोसी सबसे पहले’ की विदेश नीति को अपनाना शुरू किया. इस नीति में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले और कई मर्तबा सवालिया निशान भी उठे. नेपाल जैसे परंपरागत प्रगाढ़ मित्र देश के साथ संविधान और सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर तल्खियां आईं. बांग्लादेश के साथ भी ‘सीएए’ के मुद्दे पर असहमति उपजी. लेकिन ‘पड़ोसी सबसे पहले’ नीति के तहत जहां चीन और पाकिस्तान के विश्वासघाती कदमों का ‘दृढ़ता’ से माकूल जवाब दिया जा रहा है, वहीं पिछले कुछ समय से नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, अफगानिस्तान, भूटान जैसे पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में और नजदीकियां लाने की नई पहल हुई.
कोरोना काल के बावजूद भारत के विदेश मंत्री, विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने हाल ही में कुछ पड़ोसी देशों की यात्रएं कीं जिनसे आपसी समझबूझ बढ़ी, सहमति के नए बिंदु बने और रिश्तों में नजदीकियां बढ़ीं. इस क्षेत्र के तेजी से बदलते समीकरणों के चलते इन यात्रओं की कूटनीतिक दृष्टि से काफी अहमियत है. निश्चय ही द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने और संवाद मजबूत करने के इरादे से भारत के इन बढ़े हाथों से मित्र देशों को एक सकारात्मक संदेश गया है.
दरअसल इस क्षेत्र की कूटनीति में भारत के एक ताकतवर पड़ोसी चीन का ‘विस्तारवादी एजेंडा’ सर्वविदित है. क्षेत्र के देशों में विकास सहायता के नाम पर भारी निवेश, आर्थिक, सामरिक रिश्ते बढ़ने के बल पर वह अपनी पैठ इनमें बनाने में जुटा हुआ है और इसमें क्षेत्र का एक अन्य ताकतवर देश यानी भारत उसकी आंख की किरकिरी है.
हाल ही में विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, नौसेनाध्यक्ष के हाल के नेपाल दौरे की बात करें तो निश्चय ही भारत के खिलाफ हवा बनाकर वहां बड़ी तादाद में विकास और आधारभूत परियोजनाओं के नाम पर निवेश कर नेपाल के साथ तेजी से नजदीकियां बढ़ाने में जुटे चीन के लिए यह यात्रएं और उनसे उपजी रिश्तों की सकारात्मकता खराब खबर रही. नेपाल के संविधान और भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को लेकर पिछले कुछ समय के तनावपूर्ण दौर के बाद आखिरकार अब दोनों देशों ने आपसी सहमति से विवादों को सुलझाने के साथ-साथ रिश्तों को पूर्ववत पटरी पर लाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए.
वैसे चीन ने भारत के इन उच्चस्तरीय अहम दौरों से बेचैन होकर, ताबड़तोड़ न केवल अपने रक्षा मंत्री को नेपाल भेजा बल्कि नौ घंटे की अति संक्षिप्त नेपाल यात्र के अगले पड़ाव में उसी दिन पाकिस्तान भी भेज दिया जहां उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक नया रक्षा सहयोग समझौता भी कर डाला. उच्चस्तरीय यात्रओं से रिश्तों को मजबूत करने के इसी क्रम की बात करें तो विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले माह के अंत में हिंद महासागर में सामरिक दृष्टि से खासे अहम सेशेल्स का दौरा किया तथा वहां द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने, आधारभूत परियोजनाओं के लिए निवेश और रक्षा सहयोग बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार किया.
गौरतलब है कि चीन सेशेल्स का अहम रक्षा सहयोगी है और वह उसको विमान व जलपोत जैसी सामग्री देता रहा है. गौरतलब है कि सेशेल्स के नए राष्ट्रपति राम कलावन भारतीय मूल के ही हैं. पिछले माह ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने श्रीलंका में भारत मालदीव और श्रीलंका के बीच त्रिपक्षीय नौवहन सुरक्षा वार्ता में हिस्सा लिया जो कि छह वर्ष बाद हुई. पिछली वार्ता में भारत ने मॉरीशस और सेशेल्स को भी इस त्रिपक्षीय वार्ता में बतौर अतिथि देश शामिल होने का न्यौता दिया था. अगर मालदीव की बात करें तो इससे पूर्व अगस्त में ही भारत ने मालदीव को वहां तीन द्वीपों को जोड़ने के लिए पांच अरब डॉलर की एक आधारभूत परियोजना के लिए राशि देने की घोषणा की थी.
निश्चय ही यह एक अहम फैसला रहा. खास तौर पर इस मायने से कि मालदीव चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक अहम बिंदु बनने को है. हिंद महासागर के किनारे बसे श्रीलंका, मालदीव और सेशेल्स क्वाड के अनौपचारिक ग्रुप के लिए बहुत अहम हैं जो कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर लगाम लगाने में अहम साबित हो सकते हैं. इसी तरह आपसी समझबूझ बढ़ाने के लिए कुछ समय पूर्व विदेश सचिव ने बांग्लादेश का सफल दौरा किया.
भारत को अपनी ‘पड़ोसी सबसे पहले’ यानी ‘नेबरहुड फस्र्ट नीति’ पर इसी सकारात्मकता से ध्यान देना होगा. खास तौर पर पुराने मित्र देशों पर अधिक ध्यान देने और सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की जरूरत है. ‘दृढ़ता और उदारता साथ-साथ’ की नीति ही इस संदर्भ में सही साबित होगी. चीन के ‘आक्रामक तेवर और बेभरोसे वाले रवैये’ की तुलना में क्षेत्र में ‘भारत की छवि भरोसेमंद दोस्त, लोकतांत्रिक मित्र देश’ की है. किसी भी देश की प्रगति और विकास से क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा अहम तौर पर जुड़े रहते हैं और इस क्षेत्र के अधिकतर देश संभवत: यह महसूस भी करते हैं.