19 साल की उम्र में पहला मुकदमा, पॉलिटिकल साइंस में एमए की डिग्री, कुछ ऐसा रहा शहाबुद्दीन का सफर
By एस पी सिन्हा | Published: May 1, 2021 03:06 PM2021-05-01T15:06:02+5:302021-05-01T15:06:02+5:30
Mohammad Shahabuddin: शहाबुद्दीन का निधन शनिवार को दिल्ली के एक अस्पताल में हो गया। वे कोरोना वायरस से संक्रमित थे और तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे थे।
पटना: बिहार के सीवान से राजद के पूर्व बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन के निधन की खबर से राज्य के राजनीतिक गलियारे में सनसनी फैल गई है. तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे मो. शहाबुद्दीन को बीते 21 अप्रैल को वह कोरोना संक्रमित होने के बाद नई दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था, जहां शनिवार सुबह उनका निधन हो गया. उनके निधन पर राजद की तरफ से गहरी संवेदना जाहिर की गई है.
पूरे बिहार में एक जमाने में खौफ का पर्याय बने पूर्व सांसद शहाबुद्दीन सीवान के दो भाइयों के नृशंस हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा होने के बाद से लगातार जेल में रहे.
पहले सीवान जेल फिर भागलपुर जेल से रिहा होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जमानत खारिज किये जाने के बाद शहाबुद्दीन को तिहाड जेल शिफ्ट कर दिया गया था.
शहाबुद्दीन: 19 साल की उम्र में पहला मुकदमा
शहाबुद्दीन को हालांकि क्या पता था कि यही जेल उनके जीवन का अंतिम ठिकाना बन जायेगा. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में राजनीति शुरू करने वाले शहाबुद्दीन पर अपराध का खुमार ऐसा छाया था कि सिर्फ 19 साल की छोटी उम्र में उसपर पहला मुकदमा दर्ज हो गया था. 1986 में एक अपराधी के तौर पर शहाबुद्दीन का नाम रजिस्टर्ड हो गया था.
10 मई 1967 को जन्मे मो. शहाबुद्दीन पर 1986 में यानी सिर्फ 19 साल की उम्र में ही पहला केस दर्ज हो गया था. उसके बाद शहाबुद्दीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. शहाबुद्दीन ने अपराध की दुनिया में कदम भले ही सीवान में रखा लेकिन उसका खौफ धीरे धीरे पूरे बिहार में फैल गया.
पॉलिटिकल साइंस में एमए की डिग्री प्राप्त करने के साथ-साथ डॉन ने अपराध की दुनिया मे कदम बढाने और राजनीतिक गलियारे में चहलकदमी भी शुरू कर दी. उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के निर्देशन में पीएचडी की उपाधि हासिल की.
लालू यादव की छत्रछाया में शहाबुद्दीन की ऊंची उड़ान
अपराधी और दबंग छवि को देखते हुए राजद प्रमुख ने शाहबुद्दीन अपना शागिर्द बनाया, फिर लालू यादव की छत्रछाया में शहाबुद्दीन ने राजनीतिक रास्ता अख्तियार करना शुरू किया. लेकिन इसके बीच पुलिस ने इसे "ए" कैटेगरी का हिस्ट्रीशीटर भी घोषित कर दिया.
शहाबुद्दीन से पहले जरायम पेशा की दुनिया के कई बेताज बादशाहों ने राजनीति में कदम जमा लिया था. इसे देखते हुए शहाबुद्दीन ने भी यही रास्ता चुना. पहली बार लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में जनता दल की युवा इकाई से राजनीति में कदम रखा.
राजनीति में आने के बाद शहाबुद्दीन का जलवा और दिखने लगा. 1990 में शहाबुद्दीन पहली बार सीवान से विधायक चुना गया. 1995 में भी उसने विधायक का चुनाव जीतकर पार्टी को अपनी राजनीतिक ताकत का अहसास कराया. शहाबुद्दीन की बढती सियासी ताकत को देखते हुए लोकसभा का टिकट दिया गया. शहाबुद्दीन ने यहां भी बाजी मार ली.
1996 में शहाबुद्दीन पहली बार बने सांसद
पहली बार 1996 मे सीवान से शहाबुद्दीन को सांसद चुन लिया गया. लालू प्रसाद यादव के आंख के तारे शहाबुद्दीन की राजनीतिक हैसियत लगातार बढती रही. 1997 में जब लालू प्रसाद यादव ने राजद का गठन किया तो शहाबुद्दीन की ताकत सत्ता के साथ और दुगनी हो गई. मो. शहाबुद्दीन पर फिलहाल कुछ 30 मुकदमा दर्ज था.
बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन की छवि बाहुबली सांसद की रही. उन पर कई अपराधिक मामले दर्ज थे. जिनमें हत्या से लेकर विदेशी हथियार, नोट रखने और पुलिस कर्मियों, मीडियाकर्मियों की हत्या सहित अन्य मामले दर्ज है. राज्य में जब तक लालू प्रसाद यादव की सरकार रही, शहाबुद्दीन का वर्चस्व बढता गया, इसके साथ ही उनकी लालू प्रसाद यादव के नजदीकी संबंध भी मजबूत होता चला गया.
एक वक्त ऐसा भी आया था, जब यह कहा जाने लगा था कि बिहार की राजनीति को सीवान से नियंत्रित किया जाता था. प्रदेश में होनेवाले हर अपराध के लिए शहाबुद्दीन का नाम सामने आता था.
चंद्रशेखर प्रसाद से टकराव ने शहाबुद्दीन को दिखाया जेल का रास्ता
16 अगस्त 2004 को सीवान शहर के चंद्रशेखर प्रसाद के तीन बेटों का राजकुमार साह, शेख असलम और आरिफ हुसैन ने अपहरण कर लिया. उन्हें प्रतापपुर गांव ले जाया गया. तीन में दो गिरीश और सतीश के शरीर पर तेजाब डालने से मौत हो गई, जबकि तीसरा राजीव रोशन फरार हो गया.
इस मामले में मृतकों की मां कलावती ने शहाबुद्दीन पर तीनों पुत्रों के अपहरण और उनमें से दो की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए पूर्व सांसद और उनके तीनों साथियों, राजकुमार साह, शेख असलम और आरिफ हुसैन के खिलाफ स्थानीय थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी.
इसके अलावा शहाबुद्दीन सीवान के छोटेलाल गुप्ता अपहरण एवं हत्या के मामले में आजीवन कारावास, एसपी एसके सिंघल पर गोली चलाने के मामले में 10 साल की सजा और प्रतिबंधित हथियार रखने के मामले में भी 10 साल की सजा हुई थी.
डीजीपी डीपी ओझा से पंगा लेने के बाद करना पड़ा जब सरेंडर
राजनीति का लबादा धारण कर शहाबुद्दीन ने लंबे अर्से तक बिहार की सत्ता राजनीति के केंद्र में खुद को जमाए रखा. राबड़ी देवी राज में तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा से सीधा पंगा लेना इस शख्स को भारी पडा. भारी दबाव के बीच शहाबुद्दीन को सरेंडर करना पडा.
संयोग से लालू-राबडी राज के अवसान के बाद एक के बाद एक मुकदमों में सजा सुनाइ गइ एवं जेल से निकलना दुश्वार हो गया. आखिरकार जेल में ही शहाबुद्दीन जिंदगी गुजरती रही.
30 अगस्त 2017 को पटना उच्च न्यायालय ने सीवान हत्या के मामले में मोहम्मद शहाबुद्दीन की सजा को बरकरार रखा था. इसके बाद वह लगातार जेल की सलाखों के पीछे रहे. कालेज जीवन से अपराध की दुनिया में कदम रखनेवाले शहाबुद्दीन का नाम जमशेदपुर के तिहरे हत्याकांड में आया था.
दो फरवरी 1989 को युवा कांग्रेस के नेता प्रदीप मिश्रा, रेलवे ठेकेदार आनंद राव एवं जनार्दन चौबे की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में 28 साल चली सुनवाइ के बाद शहाबुद्दीन बरी हो गया. लेकिन सीवान ह्त्याकांड में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उन्हें तिहाड जेल में अंतिम सांस लेना पडा.
उनके निधन के बाद पार्टी प्रवक्ता मृत्युजंय तिवारी ने कहा कि उनकी मौत से पूरा राजद परिवार मर्माहत और स्तब्ध है. उन्होंने कहा कि मो. शहाबुद्दीन सीवान के लोकप्रिय सांसद रहे, राजद परिवार से उनका गहरा संबंध रहा है. उनका इस तरह से चले जाना पार्टी के लिए बड़ी क्षति है.