देखिए भारत में प्रतिबंधित किताबों की लिस्ट, विश्व क्लासिक है लेव तोलस्तोय की 'वार एंड पीस'

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 29, 2019 07:25 PM2019-08-29T19:25:34+5:302019-08-29T19:25:34+5:30

भारत ही नहीं दुनिया भर में किताब को प्रतिबंध करने का चलन है। किताब को प्रतिबंध करते समय उसे धर्म, संस्कृति, सेक्स से जोड़ा जाता है। बेहतरीन लेखन के लिए पुलिट्जर पुरस्कार से सम्मानित लेखक जोसेफ़ लेलिवेल्ड की किताब 'ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया' भी है।

See the list of banned books in India, the world classic is Lev Tolstoy's 'War and Peace' | देखिए भारत में प्रतिबंधित किताबों की लिस्ट, विश्व क्लासिक है लेव तोलस्तोय की 'वार एंड पीस'

रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय द्वारा रचित उपन्यास ‘वार एण्ड पीस’ को लेकर हंगामा जारी है।

Highlightsजसवंत सिंह द्वारा लिखित मोहम्मद अली जिन्ना की जीवनी 'जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेन्डेन्स' पर रोक लगाई थी।महाराष्ट्र सरकार ने अमरीकी लेखक जेम्स लेन की किताब, 'शिवाजी: हिन्दू किंग इन इस्लामिक इंडिया', पर रोक लगाई थी।

रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय द्वारा रचित उपन्यास ‘वार एण्ड पीस’ को लेकर हंगामा जारी है। बुधवार को बंबई हाई कोर्ट ने एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वर्नोन गोन्जाल्विस से बताने को कहा कि उन्होंने अपने घर पर लियो टॉल्सटाय की किताब ‘‘वार एंड पीस’’ और कुछ सीडी जैसी ‘‘आपत्तिजनक सामग्री’’ क्यों रखी थी।

इस बीच वकील ने अदालत को बताया कि ‘वार एंड पीस’ जिसका बुधवार को अदालत ने जिक्र किया था, वह विश्वजीत रॉय द्वारा संपादित निबंधों का संग्रह है और उसका शीर्षक ‘वार एंड पीस इन जंगलमहल: पीपुल, स्टेट एंड माओइस्ट’ है।

भारत ही नहीं दुनिया भर में किताब को प्रतिबंध करने का चलन है। किताब को प्रतिबंध करते समय उसे धर्म, संस्कृति, सेक्स से जोड़ा जाता है। बेहतरीन लेखन के लिए पुलिट्जर पुरस्कार से सम्मानित लेखक जोसेफ़ लेलिवेल्ड की किताब 'ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया' भी है। इस किताब को गुजरात सरकार ने विकृत मानसिकता को बढ़ावा देने वाली बताकर उस पर रोक लगाई थी। 

गुजरात सरकार ने भारतीय जनता पार्टी के नेता जसवंत सिंह द्वारा लिखित मोहम्मद अली जिन्ना की जीवनी 'जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेन्डेन्स' पर रोक लगाई थी, लेकिन कुछ ही महीनों में इसे गुजरात हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया। महाराष्ट्र सरकार ने अमरीकी लेखक जेम्स लेन की किताब, 'शिवाजी: हिन्दू किंग इन इस्लामिक इंडिया', पर रोक लगाई थी, लेकिन इसे चुनौती दी गई और पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने ये रोक हटा दी।

पश्चिम बंगाल सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की किताब, 'द्विखंडितो', पर रोक लगाई थी। उनका आरोप था कि ये किताब लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है। कालजयी मानी जाने वाली लेखक डीएच लॉरेन्स की किताब, 'लेडी चैटरलीज़ लवर' में कामोत्तेजक भाषा के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए भारत सरकार ने इस पर रोक लगाई थी। भारत में इसका इतिहास पुराना है। कोर्ट की टिप्पणी पर सत्ता और विपक्ष में भी कमेंट हो रहे है। 

कटाक्ष करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘‘ यह वाकई अजीबो-गरीब है कि बंबई उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पूछ रहे हैं कि उनके पास टॉल्सटाय की ‘वार एंड पीस’ की प्रति क्यों है। यह सही मायनो में क्लासिक है। सोचिए कि टॉल्सटाय से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित थे। न्यू इंडिया में स्वागत है।’’

सोजे वतनः अंग्रेजों ने भारत के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद को भी प्रतिबंधित कर दिया था। महान साहित्यकार और लेखक मुंशी प्रेमचंद का उर्दू में प्रकाशित पहला कहना संग्रह सोजे वतन को प्रतिबंध कर दिया। प्रतिबंध के साथ-साथ उसकी सारी प्रतियां जलवा दिया। साथ ही प्रेमचंद को लिखने पर रोक लगा दी। अंग्रेज शासकों ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा था कि खैर मनाओ, मुगलों के शासन में नहीं हो, वरना तुम्हारे हाथ काट डाले जाते।

द सैटेनिक वर्सेसः 90 के दशक में बुकर विनर और प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेस' को लेकर हंगामा हुआ था। भारत, ईरान सहित कई खाड़ी देशों में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सलमान पर फतवा जारी किया गया। सैटेनिक वर्सेस उपन्यास को इस्लाम के विरुद्ध माना गया। वेनेजुएला, जापान और अमेरिका में इस पर आंशिक पाबंदी लगाई गई।

लज्जाः बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन के उपन्यासों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बांग्लादेश सहित पश्चिम बंगाल में भी प्रतिबंधित किया गया। नसरीन को कोलकाता से निर्वासित होना पड़ा। आज भा वह निर्वासित जीवन बिता रही हैं।

द हिंदूजः एन अल्टरनेटिव हिस्ट्रीः धार्मिक संगठनों के विरोध के बाद पिछले साल पेंगुइन इंडिया ने वेंडी डोंनिगर की किताब 'द हिंदूजः एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' को वापस ले लिया। भारत में किताबों के प्रतिबंधित होने का लंबा इतिहास रहा है। डोनिंगर की किताब को प्रतिबंधित करने के लिए दीनानाथ बत्रा ने अभियान छेड़ रखा था. 'द हिंदूजः एन अल्टरनेटिव' के साथ ही बीते हुए समय में कई किताबें प्रतिबंधित हुई।

एन एरिया ऑफ डार्कनेसः महान लेखक और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वीएस नायपॉल की किताब एन एरिया ऑफ डार्कनेस को 1964 में भारत सरकार ने प्रतिबंध कर दिया। वीएस नायपॉल ने इस किताब के माध्यम से भारत के सामजिक और आर्थिक प्रगति पर सवाल खड़े किए थे। भारतीय मूल के लेखक ने कहा कि भारत विकास में मामले पीछे हो रहा है।

नेहरूः अ पॉलिटिकल बॉयोग्राफीः देश के पहले प्रधानमंत्री पर लिखी गई माइकल ब्रीचर की इस किताब को 1975 में बैन कर दिया गया।

नाइन ऑवर्स टू रामाः अमेरिकी लेखक स्टैनले वोलपर्ट की फिक्शन रचना 'नाइन ऑवर्स टू रामा' को 1962 में प्रतिबंधित कर दिया गया। इस किताब में स्टैनले ने गोडसे के हाथों गांधी की हत्या के आखिरी नौ घंटों का विवरण रचा था। इसी किताब पर बनी फिल्म भी प्रतिबंधित कर दी गई। स्टैनले ने अपनी किताब में गांधी की हत्या के लिए सुरक्षा कारणों के साथ साजिश को रेखांकित किया था।

द फेस ऑफ मदर इंडियाः अमेरिकी इतिहासकार कैथरीन मायो 1927 में अपनी किताब 'द फेस ऑफ मदर इंडिया' के प्रकाशित होने के बाद राजनीतिक विवादों के घेरे में आ गई। इस किताब में कैथरीन ने कहा था कि भारत स्वराज के काबिल नहीं है. महात्मा गांधी ने इस किताब को ‘रिपोर्ट ऑफ अ ड्रेन इंस्पेक्टर’ कहा था।

द लोटस एंड द रोबोटः आर्थर कोस्टलर की किताब 'द लोटस एंड द रोबोट' को 1960 में प्रकाशित होते ही बैन कर दिया गया। कोस्टलर ने अपनी किताब में भारत और जापान की यात्रा के बाद बने विचारों को उकेरा था. दोनों देशों को कोस्टलर ने पश्चिम के मुकाबले धार्मिक रूप से बीमार देश बताया था।

द ट्रू फुरकानः 1999 में दो लेखक छद्म नाम अल सफी और अल महदी नाम से लिखी किताब 'द ट्रू फुरकान' लेकर आए. पूरे विश्व में इस किताब पर विवाद खड़ा हो गया. मुस्लिमों ने इसे ईसाइयों का दुष्प्रचार करार दिया. 2005 से यह किताब भारत में प्रतिबंधित है.

जानिए ‘वार एण्ड पीस’ के बारे में

रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय ने ‘वार एण्ड पीस’ की  रचना की। यह पहली बार 1869 में प्रकाशित हुआ। यह विशाल रचना है। इसका लेखन 1863 से 1869 के बीच हुआ। चार खंडों में प्रकाशित यह उपन्यास की पृष्ठ संख्या डेढ़ हजार थी। इस महाकाय उपन्यास में राजनीतिक, कूटनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, मानसिक-भावनात्मक तथा मनोवैज्ञानिक आदि जीवन का कोई पक्ष या अंग अछूता नहीं रहा है। इस उपन्यास में तोलस्तोय ने रूसी इतिहास के उस काल को केंद्र-बिंदु बनाते हुए यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि साधारण रूसी लोगों की देशभक्ति, साहस, वीरता और दृढ़ता ने कैसे नेपोलियन और उसकी सर्वत्र जीत का डंका बजाने वाली सेना के छक्के छुड़ा दिये। 

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