#KuchhPositiveKarteHain: सत्यानंद, एक ऐसे अमेरिकन जिनका भारत की स्वतंत्रता में था बड़ा योगदान
By जोयिता भट्टाचार्या | Published: August 3, 2018 05:21 PM2018-08-03T17:21:18+5:302018-08-03T17:21:18+5:30
महज 22 साल की उम्र में सैम्यूल ने अमेरिका में अपने आरामदायक जीवन को छोड़ने का मन बनाया और अमेरिका से दूर भारत भ्रमण का सोचा। उन्होंने भारत आकर हिमाचल के शिमला में कुष्ठ रोगियों की सेवा करने का फैसला किया।
करीब 114 साल पहले अमेरिका के एक परिवार में जन्में सैम्युल इवांस स्टोक्स अपना देश छोड़ भारत में आए थे। जिन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर सत्यानंद रख लिया था। सत्यानंद को एक और नाम से भी जाना जाता था वो है स्वतंत्रता सेनानी और गरीबों के बचावकर्ता के रूप में। स्टोक का जन्म अमेरिका के एक बड़े बिजनेस फैमिली में हुआ था। उनके पिता, स्टोक्स सीनियर, स्टोक्स और पैरिश मशीन्स कंपनी के नाम से लिफ्ट विनिर्माण कंपनी के संस्थापक थे। लेकिन परिवार के छोटे बेटे सैम्यूल को बिजनेस में कोई रुची नहीं थी। लेकिन स्टोक्स के पहले बेटे को व्यवसाय में कभी दिलचस्पी नहीं थी। उनका मन जरूरतमंदों की मदद करना था।
साल 1904 में, महज 22 साल की उम्र में सैम्यूल ने अमेरिका में अपने आरामदायक जीवन को छोड़ने का मन बनाया और अमेरिका से दूर भारत भ्रमण का सोचा। उन्होंने भारत आकर हिमाचल के शिमला में कुष्ठ रोगियों की सेवा करने का फैसला किया। स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए, सैम्यूल ने हिंदी की पहाड़ी भाषा सीखी। उन्होंने अपने पश्चिमी संगठनों को भी छोड़ दिया और इसके बजाय स्थानीय पोशाक पहनना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि सत्यानंद स्टोक्स ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। स्वतंत्रता संग्राम में स्टोक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी रहें। वे खादी पहनते थे।
यहां उन्होंने शिमला में लोगों को बीमारी और रोज-रोटी के लिए परेशान होते देखा तो उन्होंने यहां बसने का इरादा कर लिया। कुछ सालों बाद सैम्यूल ने हिमाचल की ही एक युवती से शादी कर ली और आर्य समाजी बन गए। सैम्यूल ने भारत में आकर अपना नाम बदल लिया और सत्यानंद नाम से पहचाने जाने लगे। हिमाचल में नकदी फसलें नहीं होने से लोग काफी गरीब थे। इसी बीच, सैम्यूल ने ने साल 1916 में अमेरिका से पौध लाकर कोटगढ़ की थानाधार पंचायत के बारूबाग में सेब का पहला बगीचा तैयार किया।
सैम्यूल ने यहां के स्थानीय लोगों को सेब की खेती करना सिखाया। साथ ही उन्हें प्रेरित भी किया। सौ साल बाद आज हिमाचल सेब की खेती के लिए जाना जाता है। सेब की खेती करने वाले शिमला के स्थानीय लोग अब करोड़पति बन चुके हैं। प्रदेश के लाखों परिवार दूसरा काम धंधा छोड़कर सेब बागवानी करने में लग गए हैं और मोटी कमाई कर रहे हैं। यह शुरुआत में उनके लिए एक लड़ाई थी, लेकिन वह सफल रहा, और धीरे-धीरे लोगों ने सेब के पेड़ उगाने लगे। यही कारण है कि उन्हें 'हिमालय के जॉनी एप्लासेड' कहा जाता है। और लोग अभी भी उसके लिए उसे याद करते हैं।