राजस्थानः ब्राह्मण तो साथ हैं ही, जाट साथ आएं इसलिए सतीश पूनिया बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए हैं?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: September 15, 2019 05:54 AM2019-09-15T05:54:40+5:302019-09-15T05:54:40+5:30
जाट समुदाय में कमजोर पकड़ के कारण ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी से समझौता किया गया था और एक सीट बेनीवाल को दी गई थी, जहां से अभी वे सांसद हैं. किन्तु, जरूरी नहीं है कि भविष्य के विभिन्न चुनाव भी बेनीवाल, बीजेपी के साथ ही लड़ें
लंबे समय से चल रही सियासी चर्चाओं पर विराम लगाते हुए बीजेपी ने आमेर विधायक सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है. ऐसा पहली बार है, जब बीजेपी ने किसी जाट नेता को यह पद प्रदान किया है. यही नहीं, ऐसा भी पहली बार है कि बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने कोई चौंकाने वाला निर्णय नहीं किया है और जिस नेता का नाम सियासी चर्चाओं में सबसे आगे था, उन्हें ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी गई है. वैसे पूनिया के नाम की पहल संघ की थी, लिहाजा इसमें ज्यादा बदलाव की संभावना भी नहीं थी.
यह निर्णय प्रदेश की सोशल इंजीनियरिंग के मद्देनजर भी है, क्योंकि राजपूत समाज के गजेंद्र सिंह, अर्जुनराम मेघवाल आदि को केंद्र में मंत्री बनाने के बाद जाति समीकरण के लिहाज से ब्राह्मण या जाट समाज से प्रदेशाध्यक्ष बनाने पर जोर था. ब्राह्मण तो कई वर्षों से बीजेपी के साथ हैं, लेकिन जाट समुदाय का जुड़ाव कांग्रेस के साथ ज्यादा रहा है, इसलिए जाट प्रभाव वाले क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाने के लिए पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है.
याद रहे, जाट समुदाय में कमजोर पकड़ के कारण ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी से समझौता किया गया था और एक सीट बेनीवाल को दी गई थी, जहां से अभी वे सांसद हैं. किन्तु, जरूरी नहीं है कि भविष्य के विभिन्न चुनाव भी बेनीवाल, बीजेपी के साथ ही लड़ें, लिहाजा इस नियुक्ति के साथ ही समय रहते बीजेपी ने जाट समुदाय के लोगों को अपनी ओर खींचने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है.
उल्लेखनीय है कि बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी के निधन के बाद 24 जून 2019 से ही यह पद रिक्त था. स्थानीय निकाय और पंचायत राज चुनाव से ठीक पहले पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने अपनी सियासी रणनीति को मजबूत बनाने की कोशिश की है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मदन लाल सैनी ओबीसी वर्ग से थे और पूनिया भी ओबीसी वर्ग से हैं, जिससे जाति समीकरण का संतुलन बनाना बीजेपी के लिए आसान होगा. संघ पृष्ठभूमि के सतीश पूनिया लगातार चार बार से बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रहे हैं. संगठन पर उनकी अच्छी पकड़ है और अभी उन पर बीजेपी सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी थी, जिसमें वे अपेक्षा से अधिक कामयाब भी रहे हैं.
हालांकि, आनेवाले स्थानीय निकाय और पंचायत राज चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं हैं, इसलिए सतीश पूनिया की राजनीतिक राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं!