Qutub Minar: कुतुब मीनार मामले में साकेत कोर्ट 9 जून को सुनाएगा अपना फैसला, अदालत ने सुरक्षित रखा आदेश
By रुस्तम राणा | Published: May 24, 2022 02:42 PM2022-05-24T14:42:43+5:302022-05-24T14:43:06+5:30
मामले में सुनवाई के खत्म होने बाद दिल्ली की अदालत ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए 9 जून को अपना आदेश सुनाने का फैसला किया है।
नई दिल्ली: साकेत कोर्ट में दिल्ली स्थित कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार के संबंध में दायर एक अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए 9 जून को अपना आदेश सुनाने का फैसला किया है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद मंदिर परिसर के स्थान पर बनाई गई थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा- आपको क्या लगता है कि यह एक स्मारक या पूजा स्थल है? कौन सा कानूनी अधिकार आपको किसी स्मारक को पूजा स्थल में बदलने का अधिकार देता है?
याचिकाकर्ता ने जैन धारा 16 का AMASR अधिनियम 1958 को पढ़ा, "इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित एक संरक्षित स्मारक जो पूजा स्थल या मंदिर है, उसका उपयोग उसके चरित्र के साथ असंगत किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा।" साकेत कोर्ट ने कहा- दिल्ली के महरौली स्थित कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार के संबंध में अपील पर आदेश के लिए 9 जून की तारीख तय की जाती है।
आपको बता दें कि हिंदू पक्ष की इस याचिका के विरोध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी साकेत कोर्ट में हलफनाम दायर किया है। एएसआई का पक्ष है कि कुतुब मीनार एक स्मारक है और इस तरह की संरचना पर कोई भी मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता है और इस जगह पर पूजा करने का कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता है।
एएसआई ने कहा है कि AMASR अधिनियम 1958 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत किसी भी लिविंग मॉन्यूमेंट पर पूजा शुरू की जा सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश दिनांक 27/01/1999 में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया है।
इस मामले में हिंदू पक्ष की ओर से यह दावा किया गया है कि एएसआई द्वारा प्रदर्शित एक संक्षिप्त इतिहास में यह उल्लेखित है कि कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनवाया गया था।