पुण्यतिथि विशेष: जब पूछा गया-कौन मूर्ख कहेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र है? हेडगेवार ने दिया ऐसा जवाब कि बहस ही हो गई खत्म

By पल्लवी कुमारी | Published: June 21, 2018 08:28 AM2018-06-21T08:28:42+5:302018-06-21T08:28:42+5:30

हमारे घर अतिथि बन कर आते हैं और हमारे ही गले पर छुरी फेरने पर उतारू हो जाते हैं उनके लिए यहां रत्ती भर भी स्थान नहीं। संघ की इस विचारधारा को पहले आप ठीक ठाक समझ लीजिए.

RSS Founder Dr. Keshav Baliram Hedgewar Death Anniversary know about unknown fact and his legacy | पुण्यतिथि विशेष: जब पूछा गया-कौन मूर्ख कहेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र है? हेडगेवार ने दिया ऐसा जवाब कि बहस ही हो गई खत्म

Keshav Baliram Hedgewar

नई दिल्ली, 21 जून: 'हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान की धड़कन है। इसलिए ये साफ है कि अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति को संवारना होगा। ये याद रखा जाना जरूरी है कि ताकत संगठन के जरिए आती है। इसलिए ये हर हिंदू का कर्तव्य है कि वो हिंदू समाज को मजबूत बनाने के लिए हरसंभव कोशिश करे'। उपर लिखी गई ये लाइन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की वेबसाइट पर जब आप उनका विजन और मिशन देखें तो वहां लिखा हुआ पाएंगे। ये बात जिसके हवाले से कही जा रही है वह हैं आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार की। 21 जून को यानी आज इनका पुण्यतिथि है। डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार यानी डॉक्टर जी ने 27 सितंबर,1925 को जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।

21 जून 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है। हेडगेवार एख दृष्टि से अपने समकालिन प्रमूख राजनीतिज्ञों में इस दृष्टि से विश्लेषण है कि उन्होंने अपने जीवन, गतिविधियों या चिंतन का कोई लिखित प्रमाण अपने पीछे नहीं छोड़ा है। हेडगेवार का ऐसा कोई आलेख नहीं मिला, जिससे उनके विचारों और तर्कों के बारे में बहस की जा सके। 

डॉ केशव बलिराम हेडगेवार कौन थे, उन्होंने संघ को कैसे खड़ा किया, उनके अनुसार इसकी क्या जरूरत थी, इन सभी सवालों के जवाब बहुत जरूरी है। इस पूरे कहानी की शुरुआत 22 जून 1897 से होती है। इस तारीख को रानी विक्टोरिया की ताजपोशी की 60वीं सालगिरह थी। जहां सब लोग खुशियां और जश्न और मना रहें थे वहीं एक आठ साल का एक बच्चा शांत और दुखी था। उस आठ साल के बच्चे ने ताजपोशी में हिस्सा नहीं लिया और घर आ गया। घर पहुंचकर मिठाई फेंकी और एक कोने में जाकर बैठ गया। घर के लोगों ने पूछा ''केशव, क्या तुम्हें मिठाई नहीं मिली'' केशव ने कहा- मिली थी लेकिन इन अंग्रेजों ने हमारे भोंसले खानदान को खत्म कर दिया और हम इनके समारोह में कैसे हिस्सा ले सकते हैं?'' इस पूरे घटना क्रम का जिक्र किताब डॉ हेडगेवार, द एपक मेकर में किया गया है। ये एक बायोग्राफी है।  

इसी किताब में एक और किस्से का जिक्र है, जो 1901 का है। इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण का विरोध करते हुए हेडगेवार ने कहा था, 'विदेशी राजा का राज्यारोहण मनाना हमारे लिए शर्म की बात है।' नागपुर के सीताबर्डी किले के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक यूनियन जैक, उन्हें मन ही मन कचोटता था। 

हेडगेवार परिवार मूल रूप से तेलंगाना के कांडकुर्ती गांव का रहने वाला था लेकिन 1 अप्रैल, 1889 को जब केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ तो वो नागपुर में बसा था। हेडगेवार जब 13 साल के थे तभी उनके पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवतीबाई का प्लेग से निधन हो गया था। उसके बाद उनकी परवरिश दोनों बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने की।

हेडगेवार की शुरुआती पढ़ाई नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में हुई। लेकिन एक दिन स्कूल में वंदेमातरम गाने की वजह से उन्हें निष्कासित भी कर दिया गया था, क्योंकि अंग्रेजी शासन में वंदे मातरम गाना अपराध था। उसके बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए यवतमाल और फिर पुणे भेजा। मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी एस मूंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता भेज दिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1915 में वह नागपुर लौट आए। 

देश में आजादी की भूमिका में हेडगेवार का भी बड़ा योगदान रहा है। हेडगेवार शुरुआती दिनों में कांग्रेस में शामिल हो गए। 1921 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और एक साल जेल में बंद रहे। लेकिन मिस्र के घटनाक्रम के बाद भारत में शुरू हुए धार्मिक-राजनीतिक खिलाफत आंदोलन के बाद उनका कांग्रेस से मन उठ सा गया। उसके बाद 1923 में सांप्रदायिक दंगों ने उन्हें पूरी तरह उग्र हिंदुत्व की ओर ढकेल दिया। वह हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी एस मुंजे के संपर्क में शुरू से ही थे। मुंजे के अलावा हेडगेवार के व्यक्तित्व पर आपको बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर का बड़ा प्रभाव देखने को मिलता था। सावरकर ने ही हिंदुत्व को नए सिरे से परिभाषित किया था। वह मानते थे कि सिंधु नदी से पूर्व की ओर लोगों की विका़स यात्रा के दौरान सनातनी, आर्यसमाजी, बौद्ध, जैन और सिख धर्म समेत जितने भी धर्मों और धार्मिक धाराओं का जन्म हुआ वह सभी हिंदुत्व के दायरे में ही आते हैं। 

हेडगेवार ने सावरकर के इसी परिभाषा के आधार पर हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की और उस परिकल्पना को सच करने के लिए उन्होंने 1925 में विजय दशमी के दिन संघ की नींव रखी। वह संघ के पहले सरसंघचालक बने। संघ की स्थापना के बाद उन्होंने उसके विस्तार की योजना बनाई और नागपुर में शाखा चलाने लगे। हेडगेवार ने शुरू से ही संघ को सक्रिय राजनीति से दूर सिर्फ सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों तक सीमित रखा था। हेडगेवार का मानना था कि संगठन का प्राथमिक काम हिंदुओं को एक धागे में पिरो कर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है। 

आरएसएस के लोग बताते हैं कि हेडगेवार लोगों को तर्कशीलता से नहीं बल्कि अपने व्यकित्तव से प्रभावित करने की कोशिश करते थे। आरएसएस की स्थापना के प्रारमंभिक दिनों में एक सभा में एक बात पर गरमा-गरम बहस हो रही थी कि हेडगेवार द्वारा कल्पित हिंदू राष्ट्र का क्या मतलब है। इसी बीच एक नौवजवान ने चिड़चिड़ाकर पूछा- कौन मूर्ख कहेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र है? इस पर हेडगेवार ने यह कह कर बहस खत्म कर दी कि 'मैं केशव बलिराम हेडगेवार कहता हूं कि यह एक हिंदू राष्ट्र है।' हेडगेवार के इन शब्दों ने सबमें एक विश्वास पैदा कर दिया। उस सभा में उपस्थित सभी लोगों ने प्रतिज्ञा ली और स्वयंसेवक बन गए। 

हेडगेवार की एक बॉयोपिक किताब लिखा है कि जब उनसे पूछा गया कि भारत में कौन लोग रहे तो उन्होंने कहा- ''एक विचार-एक आचार-एक सभ्यता एवं परम्परा में जो लोग पुरातन काल से रहते चले आए हैं उन्हीं लोगों की संस्कृति से राष्ट्र बनता है। इस देश को हमारे ही कारण हिंदुस्तान नाम दिया गया है। दूसरे लोग यदि इस देश में बसना चाहते हैं तो अवश्य बस सकते हैं। हमने उन्हें न कभी मना किया है न करेंगे। किंतु जो हमारे घर अतिथि बन कर आते हैं और हमारे ही गले पर छुरी फेरने पर उतारू हो जाते हैं उनके लिए यहां रत्ती भर भी स्थान नहीं। संघ की इस विचारधारा को पहले आप ठीक ठाक समझ लीजिए।'' हेडगेवार का निधन 21 जून, 1940 को हुआ। जिसके बाद सरसंघचालक की जिम्मेदारी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को सौंप दी गई। वर्तमान में डॉ मोहनराव मधुकर भागवत यानी मोहन भागवत यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

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