पटना: दही-चूड़ा भोज के बहाने हर साल 14-15 जनवरी को नए समीकरण बनते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की ओर से बुधवार को आयोजित दही-चूड़ा भोज कार्यक्रम में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव अपने बड़े बेटे और राजद विधायक तेजप्रताप यादव के साथ पहुंचे। लालू यादव के भाग लेने से यह स्पष्ट होने लगा है कि नई सियासी खिचड़ी पक सकती है। दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में चिराग पासवान की पार्टी का कद बढ़ने के बाद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस की पार्टी दरकिनार कर दी गई।
लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिलने और गठबंधन में अपनी पार्टी की उपेक्षा को देख पशुपति कुमार पारस ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया और नया सियासी जमीन की तलाश में जुट गए। पारस मौके की तलाश में थे और मकर संक्रांति एक उनके लिए एक अच्छा मौका बनकर सामने आई। बिहार और केंद्र की सियासत से आउट हो चुके पशुपति कुमार पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोजपा को नया ठिकाना मिलने वाला है।
मकर संक्रांति के मौके पर इसके संकेत मिल रहे हैं। राजद प्रमुख लालू यादव के दही-चूड़ा भोज में पशुपति कुमार पारस के पहुंचने के बाद से ही ऐसी चर्चा हो रही थी। इसी बीच बुधवार को पशुपति कुमार पारस की तरफ से आयोजित दही-चूड़ा के भोज में लालू यादव के पहुंचने से कयासों के बाजार गर्म हो गए हैं। लालू यादव ने मीडिया से बात करते हुए खुद कहा कि पारस हमारे साथ हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जल्द ही इसको लेकर बड़ा एलान हो सकता है।
वहीं, खुद की पार्टी को एनडीए का हिस्सा मानने के सवाल पर पशुपति कुमार पारस ने कहा कि राजनीति में कुछ भी कहना मुश्किल है। सभी को मैं समय का इंतजार करने के लिए कहता हूं। मैं पहले एनडीए में था, लेकिन एनडीए के लोगों ने मेरे साथ नाइंसाफी की। पूरे भारत के लोगों को पता है कि हमारा कहीं भी दोष नहीं था। लेकिन इसके बावजूद एनडीए ने हमारे पांच सांसदों को टिकट नहीं दिया और उन्हें वंचित किया। फिर भी मैं राष्ट्रहित में एनडीए के साथ रहा।
लोकसभा चुनाव में पूरी ईमानदारी से एनडीए का साथ दिया। उन्होंने कहा कि बिहार में अभी परिस्थिति कुछ और है, एनडीए हमारे दल को अपने घटकों में शामिल नहीं कर रहा है। बिहार में पांच ही राजनीतिक दल हैं, छठे दल में हमारी गिनती नहीं हो रही है। लोगों को भविष्य का इंतजार करना चाहिए। चुनावी साल है, जिसके कारण बिहार में नया समीकरण देखने को मिलेगा, लेकिन क्या समीकरण होगा, ये किसी को नहीं पता।
दरअसल, पशुपति पारस वर्तमान में अकेले पड़ गए हैं, ऐसे में अगर इस विधानसभा चुनाव में लालू यादव का सहारा मिलता है तो यह उनके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगी। वहीं, लालू का मिलना एनडीए को कहीं न कहीं थोड़ा नुकसान जरूर होगा, क्योंकि पशुपति पारस भी पुराने और मझे हुए नेता हैं और उनके समर्थकों की संख्या भी ठीक ठाक है। अब देखने वाली बात है कि लालू के आने से कौन सा समीकरण बनता है।