लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे शंका के घेरे में, रिटायर्ड IAS अफसरों, सेना अधिकारयों और शिक्षाविदों ने लिखा खुला पत्र

By रजनीश | Published: July 3, 2019 12:31 PM2019-07-03T12:31:14+5:302019-07-03T12:31:14+5:30

साल 2019 का लोकसभा चुनाव इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था। इस पूरे चुनाव ने चुनाव आयोग पर सत्ता पक्ष का खुलकर पक्ष लेने का संदेह पैदा किया। इसके अलावा यह अब तक का सबसे महंगा चुनाव भी है...

Retired officials, veterans and academics remind Election Commission of transgressions | लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे शंका के घेरे में, रिटायर्ड IAS अफसरों, सेना अधिकारयों और शिक्षाविदों ने लिखा खुला पत्र

प्रतीकात्मक फोटो

देश के 145 रिटायर्ड सिविल सर्विस ऑफीसर्स, सेना से जुड़े लोग और कई नामी शिक्षाविद एक साथ आए हैं। इन्होंने हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव 2109 में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली, चुप्पी, ढीले रवैये और टालमटोल पर सवाल खड़े किए हैं।

इनका कहना है कि 2019 में होने वाला जनरल इलेक्शन बीते तीन दशकों में अब तक का सबसे कम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है। ये बात 64 पूर्व आईएएस, आईएफएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारियों ने चुनाव आयोग को दिए एक ओपन लेटर में लिखा। इस लेटर को 83 रिटायर्ड सैनिकों और विद्वानों ने समर्थन दिया है।

लेटर में चुनाव प्रक्रिया के दौरान पिछले कुछ महीनों में होने वाली सभी घटनाओं का जिक्र है। यह लेटर विपक्ष द्वारा राज्य सभा में चुनावी सुधारों पर होने वाली अल्पकालिक चर्चा के एक दिन पहले आया है।

इसमें कहा गया है कि 2019 की चुनावी प्रक्रिया को समग्रता से देखा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसने जनादेश को गंभीर संदेह में डाल दिया है। चुनाव आयोग का इस पूरे मामले में कोई जवाब न आना हमारे लोकतंत्र की भलाई के लिए सही नहीं है। यह स्थिति चिंता जनक है।

इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (चुनाव आयोगा) को इस पूरे मामले में, पूरे चुनाव प्रक्रिया के दौरान घटित होने वाली सभी तरह की अनियमितताओं के बारे में सार्वजनिक स्पष्टीकरण देने की जरूरत है। इसके अलावा भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जाएं। चुनाव प्रक्रिया के प्रति लोगों के विश्वास को बहाल करने के लिए यह बहुत आवश्यक है।

लेटर में लिखा गया है कि एक नागरिक के तौर पर इतने बड़े संस्थान में होने वाले गलत कामों को प्रूफ करना हमारा काम नहीं है जब संस्थान इतने अपारदर्शी तरीके से काम करे। हमारा काम सामने दिख रही विसंगतियों पर सवाल उठाना है। इन विसंगतियों पर सफाई देना चुनाव आयोग का काम है।  

चुनावी प्रक्रिया के दौरान घटित होने वाली कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं जिनके बारे में लेटर में बताया गया है। उनमें चुनाव आयोग द्वारा चुनावी तारीखों की घोषणा का समय, राज्यवार तय चुनावी तारीख, पहले के चुनावों में अपने मत का प्रयोग कर चुके कई मतदाताओं का मतदाता सूची से नाम गायब होना,  उम्मीदवारों द्वारा आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाना, अंधराष्ट्रवाद, पीएम मोदी चॉपर जांच मामले में जांच अधिकारी को निशाना बनाया जाना, चुनावी प्रक्रिया में नीति आयोग की संलिप्तता, नमो टीवी, चुनावी बांड, ईवीएम मुद्दा सहित अन्य घटनाएं शामिल हैं।

चुनावी अधिसूचना
चुनावी तारीखों में 10 मार्च तक की देरी एक पार्टी विशेष के प्रति चुनाव आयोग का झुकाव दिखाती है। इससे यह संदेह पैदा होता है कि चुनाव आयोग ने जानबूझकर चुनाव के तारीखों की घोषणा देर से की क्योंकि प्रधानमंत्री को कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन करना था जिनकी तारीख 8 फरवरी और 9 मार्च निर्धारित थी।

पिछले चुनाव 2014 में 5 मार्च को अधिसूचना जारी हुई थी। अधिसूचना जारी होती ही आचार संहिता लागू हो जाती है जिसके बाद सरकार कोई घोषणा या उद्घाटन कार्य नहीं कर सकती। ऐसे ही आरोप गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले भी लगे थे।

समय सीमा
साल 2019 का लोकसभा चुनाव इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था। इसने चुनाव आयोग पर सत्ता पक्ष का खुलकर पक्ष लेने का संदेह पैदा किया। अलग-अलग राज्यों में मतदान के लिए तय की गई तारीखों को लेकर चुनाव आयोग के पास कोई स्पष्ट तर्क नहीं था। तमिलनाडु (39 सीटें), केरल (20 सीटें), आंध्र प्रदेश (25 सीटें) और तेलंगाना (17 सीटें) जहां बीजेपी कमजोर है और उसके जीतने की कोई संभावना नहीं थी वहां मतदान एक ही दिन में कराया गया। 

वहीं इनसे कम या बराबर सीटों वाले राज्यों कर्नाटक (28सीट), मध्य प्रदेश (29सीट), राजस्थान (25सीट) और ओडिशा (21सीट) जहां से बीजेपी कड़े मुकाबले में थी या फिर मजबूती से उभरने की स्थिति में थी वहां कई चरणों में चुनाव कराए गए जिससे प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार के लिए अधिक मौका और समय दिया जा सके।

मतदाता बहिष्कार
पहले के चुनावों में मतदान कर चुके कई मतदाताओं के इस चुनाव में मतदाता सूची से नाम गायब मिले। इसमें कुछ अल्पसंख्यक समूह के मतदाता सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। लेकिन इस मामले में भी चुनाव आयोग ने तुरंत जांच कर प्रतिक्रिया देने में देरी किया।

आचार संहिता
कई उम्मीदवारों ने आदर्श आचार संहिता की अनदेखी किया। इस मामले में मुख्य रूप से बीजेपी के नेताओं द्वारा आचार संहिता की धज्जियां उड़ाई गई जिन पर चुनाव आयोग ने अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं किया और न ही कोई कार्रवाई किया। इस मामले में सबसे मजूबत कर्रवाई हुई वह भी इस तरीके से लागू की गई जिससे कि प्रतिबंध लागू होने से पहले पीएम का अभियान पूरा हो सके।

चुनाव आयोग के इस कदम से इस बात की पुष्टि होती है कि चुनाव आयोग के दृष्टिकोण ने प्रधानमंत्री और तत्तकालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के अन्य प्रतिनिधियों को आगे बढ़ाने में मदद किया।

अंधराष्ट्रीयता(जिंगोइजम)
पुलवामा, बालाकोट मामले पर प्रधानमंत्री के राष्ट्रवादी और जुमलेबाजी के गलत इस्तेमाल ने इस मुद्दे को बीजेपी के पक्ष में प्रचारित करने और इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताया गया।

बार-बार नियमों के उल्लंघन मामले में इस पूरे चुनाव में आयोग ने एक बार भी पीएम को कारण बताओ नोटिस भी नहीं जारी किया। जबकि राज्य के चुनाव आयुक्तों द्वारा इन घटनाओं की सूचना दी गई थी।

पीएम हेलीकॉप्टर
इस मामले में मोहम्मद मोहसिन द्वारा पीएम के हेलीकॉप्टर की जांच करने पर उन्हें निलंबित किया जाना चुनाव आयोग के पूर्वाग्रह को स्पष्ट करता है।

नीति आयोग का रोल
यह सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का गंभीर मामला था। इस मामले में नीति आयोग ने आधिकारिक तौर पर देश विभिन्न केंद्रशासित प्रदेशों और कुछ जिलों को वहां से जुड़ी स्थानीय जानकारी प्रदान करने को कहा था क्योंकि इन स्थानों पर पीएम के जाने की संभावना थी। ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार और अभियानों में उन जानकारियों का उपयोग किया जा सके। यह आदर्श चुनाव संहिता का जबरदस्त उल्लंघन था लेकिन चुनाव आयोग ने शिकायत को ही खारिज कर दिया।

नमो टीवी
इस मामले में भी चुनाव आयोग ने मीडिया नियमों के उल्लंघन पर ध्यान नहीं दिया खासकर तब जब सत्तारूढ़ दल द्वारा ऐसा किया जा रहा हो। इसमें सबसे बड़ा मामला नमों टीवी नाम से एक चैनल की शुरुआता किए जाने का मामला है जिस चैनल में लगातार पीएम मोदी के भाषणों और उनसे जुड़े समारोहों का प्रसारण किया जाता रहा। इस मामले में भले ही चुनाव आयोग ने चैनल को बंद करने का आदेश दिया लेकिन नमो टीवी चुनाव खत्म होने तक लगभग टेलीकास्ट होता रहा।

चुनावी बांड- (पोल बांड)
चुनावी फंडिंग की पारदर्शिता के मामले में यह चुनाव अब तक का सबसे अधिक अपारदर्शी था। चुनावी बांड के बारे में पहले से भी सवाल उठाए जाते रहे हैं।

ईवीएम
मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग बहुत ही ज्यादा विवादित विषय रहा। चुनाव आयोग के दिए गए बयानों के बावजूद इससे छेड़छाड़ पर संदेह बना हुआ है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक आरटीआई के जवाब से पता चला है कि मैन्युफैक्चर कंपनी द्वारा चुनाव आयोग को दिए जाने वाले 20 लाख ईवीएम चुनाव आयोग के पास नहीं थे। इस बारे में भी चुनाव आयोग का जवाब न देना भी समझदारी नहीं है। ईवीएम-वीवीपैट पर लगातार कई सवाल खड़े हुए हैं।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्ला, हर्ष मंडेर, अरुणा रॉय, जवाहर सरकार, एन.सी.सक्सेना और अभिजीत सेनगुप्ता और पूर्व आईएफएस ऑफीसर देब मुखर्जी औऱ शिव शंकर मुखर्जी हैं।

इनके अलावा एडमिरल एल.रामदास, एडमिरल विष्णु भागवत, निवेदिता मेनन, प्रबल दासगुप्ता, परंजॉय गुहा ठाकुरता और लीला सैमसन शामिल हैं। 

Web Title: Retired officials, veterans and academics remind Election Commission of transgressions