मोदी राज में कम हुई अल्पसंख्यकों को मिलने वाली स्कॉलरशिप, RTI से हुआ खुलासा
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 6, 2018 08:40 PM2018-07-06T20:40:00+5:302018-07-07T10:50:45+5:30
हाईस्कूल से ऊपर के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की बात की जाए तो साल 2013-14 के दौरान यह आंकडा 548 करोड़ रूपए था और साल 2014-15 में बढ़ कर 598 करोड़ हो गया। इसके बाद साल 2015-16 के दौरान यह 580 करोड़ रहा। लेकिन आगामी दो सालों में 2016-17 और 2017-18 में यह आंकड़ा कम हो कर 550 करोड़ रहा।
- विभव देव शुक्ल
इस्लामिक हेरिटेज: प्रमोटिंग अंडरस्टैंडिंग एंड मोडरेशन, दिल्ली में हुई एक बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार मुस्लिम युवाओं के सशक्तीकरण के लिए हर संभव कदम उठा रही है। मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान तो दूसरे हाथ में कंप्यूटर होगा। लेकिन शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर अल्पसंख्यक मामलों से जुड़े तथ्य प्रधानमंत्री की बात से मेल नहीं खाते।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार एक आरटीआई से मिली जानकारी में पता चला है कि साल 2013-14 के दौरान हाईस्कूल से नीचे के 75 लाख अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई थी। वहीं साल 2014-15 यानी मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान यह आंकड़ा 44 लाख तक सीमित रह गया था। 2017-18 के दौरान छात्रवृत्ति के लिए कुल 9650248 छात्रों का पंजीयन हुआ था जिसमें से 4474452 छात्रों को छात्रवृत्ति मिल पायी थी। इतना ही नहीं हाईस्कूल से ऊपर के अल्पसंख्यक छात्रों की छात्रवृत्ति में भी 31 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
थोड़े और आंकड़ों को समझा जाए तो साल 2013-14 में हाईस्कूल से नीचे के अल्पसंख्यक छात्रों को 950 करोड़ रूपए दिए गए थे। 2014-15 में छात्रवृत्ति का यह आंकड़ा 1100 करोड़ रूपए हुआ और 2015-16 में थोड़ी गिरावट के बाद 1040 करोड़ रूपए हो गया। लेकिन साल 2016-17 में एक बार फिर गिरावट के बाद यह आंकड़ा 931 करोड़ था। अंत में साल 2017-18 में छात्रवृत्ति का आंकड़ा मामूली बढ़त के बाद 950 करोड़ रूपए हो गया। यानी मोदी सरकार के कार्यकाल में अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति में कमी आई है।
हाईस्कूल से ऊपर के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की बात की जाए तो साल 2013-14 के दौरान यह आंकडा 548 करोड़ रूपए था और साल 2014-15 में बढ़ कर 598 करोड़ हो गया। इसके बाद साल 2015-16 के दौरान यह 580 करोड़ रहा। लेकिन आगामी दो सालों में 2016-17 और 2017-18 में यह आंकड़ा कम हो कर 550 करोड़ रहा।
मेरिट के आधार पर मिलने वाली छात्रवृत्ति साल 2013-14 में 270 करोड़ थी और आगामी तीन सालों में यह आंकड़ा 335 था। बीते साल 2017-18 में थोड़ी बढ़ोतरी के बाद छात्रवृत्ति 393 करोड़ हो गई।
अल्पसंख्यक छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की सबसे बड़ी वजह थी आर्थिक कारणों के चलते पढ़ाई ना पूरी कर पाने वालों की संख्या कम करना। छात्रवृत्ति देने का दूसरा कारण था कि अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को समुचित शिक्षा मिले। जबकि बीते कुछ सालों से बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी ही हुई है। मोदी सरकार का चुनावी नारा था ‘सबका साथ सबका विकास’ लेकिन इन आंकड़ों के आधार पर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सबका विकास सुनिश्चित हो पा रहा है।
(विभव लोकमत न्यूज में इंटर्न कर रहे हैं)
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