"अलग धर्म के लड़का-लड़की के बीच संबंध का मतलब 'लव जिहाद' नहीं"- बॉम्बे हाईकोर्ट
By अंजली चौहान | Published: March 2, 2023 03:28 PM2023-03-02T15:28:54+5:302023-03-02T16:35:01+5:30
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और अभय वाघवासे की पीठ ने मामले में एक मुस्लिम महिला और उसके परिवार को अग्रिम जमानत दे दी।

फाइल फोटो
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'लव जिहाद' के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की है। औरंगाबाद के चार निवासियों की गिरफ्तारी से संरक्षण देते हुए अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि रिश्ते में लड़का और लड़की का धर्म अलग है तो इसे धार्मिक एंगल नहीं दिया जा सकता और इसे 'लव जिहाद' का रंग नहीं दे सकते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ के न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और अभय वाघवासे की पीठ ने मामले में एक मुस्लिम महिला और उसके परिवार को अग्रिम जमानत दे दी। इन लोगों पर एक व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने और उससे शादी करने के लिए मजबूर करने का आरोप था। इससे पहले एक स्थानीय अदालत ने आरोपियों को राहत देने से इनकार कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।
दरअसल, अदालत में महिला के पूर्व प्रेमी ने आरोप लगाया था कि उसके और मुस्लिम महिला के बीच प्रेम संबंध थे। महिला एक छात्रा भी है और वह और उसके परिवार के लोगों ने उसे इस्लाम कबूल करने के लिए बाधित किया था। यहां तक की शख्स ने परिवार और प्रेमिका पर जबरन खतना करने का भी आरोप लगाया।
उसने कहा कि सब कुछ दबाव में और शारीरिक बल लगाकर किया गया है। यहां तक कि मुझसे जबरदस्ती एक बड़ी रकम भी वसूली गई। पीड़ित शख्स ने वकील ने आरोपियों की गिरफ्तारी पूर्व जमानत अर्जी का विरोध करते हुए दलील दी थी कि यह 'लव जिहाद' का मामला है।
पीड़ित पक्ष के वकील की इस दलील पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए आरोपों से इनकार किया और कहा कि व्यक्ति ने प्राथमिकी में स्वीकार किया है कि वह महिला के साथ संबंध में था। पीठ ने कहा कि प्राथमिकी के अनुसार शख्स के पास महिला के साथ संबंध खत्म करने के कई मौके थे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब इस मामले को लव जिहाद का रंग देने की कोशिश की जा रही है लेकिन जब प्यार को स्वीकार कर लिया जाता है तो किसी व्यक्ति को सिर्फ दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के लिए फंसाए जाने की संभावना कम होती है।
अदालत में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि केवल इसलिए कि लड़का और लड़की अलग-अलग धर्मों से हैं, इसका मतलब ये नहीं की इसका कोई धार्मिक एंगल हो। ये एक-दूसरे के लिए शुद्ध प्रेम का मामला हो सकता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 23 पन्नों के आदेश में कहा कि महिला ने शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कई ममाले दर्ज किए थे। जिनमें से कुछ उसके दर्ज किए गए मामलों से भी पहले के थे। पीठ ने यह भी कहा कि मामले की जांच लगभग पूरी हो चुकी है और इसलिए आरोपी व्यक्तियों की हिरासत जरूरी नहीं होगी।
महिला-पुरुष में था संबंध
गौरतलब है कि पुरुष और महिला मार्च 2018 से रिलेशनशिप में थे। पुरुष अनुसूचित जाति समुदाय का था, लेकिन उसने महिला को इस बारे में नहीं बताया। बाद में महिला ने पुरुष को जोर दिया कि वह उससे धर्म परिवर्तन करके शादी कर लें। इसके बाद शख्स ने महिला और उसके परिवार को अपनी जाति की हकीकत बताई।
उन्होंने उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई और बेटी को भी इसे स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया। हालांकि, बाद में रिश्ते में खटास आ गई, जिसके बाद शख्स ने दिसंबर 2022 को महिला और उसके परिवार के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया।