महाराष्ट्र के इस गांव में होती है रावण की पूजा, नहीं जलाते हैं पुतले, जानें वजह?
By भाषा | Published: October 25, 2020 03:51 PM2020-10-25T15:51:14+5:302020-10-25T15:51:14+5:30
स्थानीय निवासी मुकुंद पोहरे ने कहा कि गांव के कुछ बुजुर्ग लोग रावण को ‘विद्वान’ बताते हैं और उनका विश्वास है कि रावण ने सीता का अपहरण ‘राजनीतिक कारणों से किया था और उनकी पवित्रता को बनाए रखा।’
अकोला: देश के अलग-अलग हिस्सों में दशहरा के अवसर पर रावण के पुतलों का दहन किया जाता है लेकिन महाराष्ट्र के अकोला जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां राक्षसों के राजा रावण की पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों का दावा है कि पिछले 200 वर्षों से संगोला गांव में रावण की पूजा उसकी ‘विद्वता और तपस्वी गुणों’ के लिए की जाती है। गांव के मध्य में काले पत्थर की रावण की लंबी प्रतिमा बनी हुई है जिसके 10 सिर और 20 हाथ हैं। स्थानीय लोग यहीं राक्षसों के राजा की पूजा करते हैं।
स्थानीय मंदिर के पुजारी हरिभाउ लखाड़े ने रविवार को बताया कि दशहरा के अवसर पर देश के बाकी हिस्सों में बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, वहीं संगोला के निवासी रावण की पूजा उसकी ‘विद्वता और तपस्वी गुणों’ के लिए करते हैं। लखाड़े ने कहा कि उनका परिवार लंबे समय से रावण की पूजा करता आया है । उन्होंने दावा किया कि लंका के राजा की वजह से ही गांव में समृद्धि और शांति बनी हुई है।
स्थानीय निवासी मुकुंद पोहरे ने कहा कि गांव के कुछ बुजुर्ग लोग रावण को ‘विद्वान’ बताते हैं और उनका विश्वास है कि रावण ने सीता का अपहरण ‘राजनीतिक कारणों से किया था और उनकी पवित्रता को बनाए रखा।’ उन्होंने कहा कि गांव के लोगों का विश्वास राम में भी है और रावण में भी है। वे रावण के पुतले नहीं जलाते हैं। देश के कई हिस्सों से लोग दशहरा के मौके पर रावण की प्रतिमा को देखने यहां आते हैं और कुछ पूजा भी करते हैं। हालांकि, कोविड-19 महामारी की वजह से यहां भी सादे तरीके से उत्सव मनाया जा रहा है।