'दांपत्य जीवन में बलात्कार हत्या, गैरइरादतन अपराध या बलात्कार के अपराध से कम नहीं'

By भाषा | Published: July 1, 2019 06:39 PM2019-07-01T18:39:53+5:302019-07-01T18:39:53+5:30

याचिका में कहा गया था कि दांपत्य जीवन में बलात्कार हत्या, गैरइरादतन अपराध या बलात्कार के अपराध से कम नहीं है। यह स्त्री के सम्मान और गरिमा को तार तार करता है और उसे एक व्यक्ति की सुविधा और भोग के इस्तेमाल के लिये गुलाम की स्थिति में पहुंचा देता है। यह महिला को निरंतर जख्मी होने की आशंका में रहने वाली जिंदा लाश में तब्दील कर देता है।

'Rape is not less than the crime of rape, criminal offense or rape in a married life' | 'दांपत्य जीवन में बलात्कार हत्या, गैरइरादतन अपराध या बलात्कार के अपराध से कम नहीं'

हिन्दू विवाह कानून, 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन कानून और विशेष विवाह कानून, 1954 में दांपत्य जीवन मे बलात्कार तलाक का आधार नहीं है।

Highlightsदांपत्य जीवन में बलात्कार अपराध नहीं है और इसलिए पति के खिलाफ पत्नी की शिकायत पर किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है।पुलिस अधिकारी पीड़ित और पति के बीच विवाह की पवित्रता बनाये रखने के लिये समझौता कराते रहते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने दांपत्य जीवन में बलात्कार के लिये प्राथमिकी दर्ज करने तथा इसे तलाक का एक आधार बनाने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये दायर याचिका पर सोमवार को विचार करने से इंकार कर दिया।

न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अनुजा कपूर से कहा कि उन्हें राहत के लिये उच्च न्यायालय जाना चाहिए। इस पर अनुजा कपूर ने अपनी याचिका वापस ले ली। इस अधिवक्ता ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि प्रतिपादित दिशानिर्देशों और कानून में दांपत्य जीवन में बलात्कार से संबंधित मामलों के पंजीकरण के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश होना चाहिए ताकि प्राधिकारियों की जवाबदेही और जिम्मेदारी निर्धारित की जा सके।

याचिका में इस संबंध में तैयार होने वाले दिशानिर्देशों और कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर उचित दंड या जुर्माने का भी प्रावधान करने का सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

याचिका में कहा गया था कि दांपत्य जीवन में बलात्कार हत्या, गैरइरादतन अपराध या बलात्कार के अपराध से कम नहीं है। यह स्त्री के सम्मान और गरिमा को तार तार करता है और उसे एक व्यक्ति की सुविधा और भोग के इस्तेमाल के लिये गुलाम की स्थिति में पहुंचा देता है। यह महिला को निरंतर जख्मी होने की आशंका में रहने वाली जिंदा लाश में तब्दील कर देता है।

याचिका में कहा गया है कि चूंकि इस समय दांपत्य जीवन में बलात्कार अपराध नहीं है और इसलिए पति के खिलाफ पत्नी की शिकायत पर किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है। बल्कि पुलिस अधिकारी पीड़ित और पति के बीच विवाह की पवित्रता बनाये रखने के लिये समझौता कराते रहते हैं।

याचिका के अनुसार चूंकि हिन्दू विवाह कानून, 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन कानून और विशेष विवाह कानून, 1954 में दांपत्य जीवन मे बलात्कार तलाक का आधार नहीं है, इसलिए पति के खिलाफ क्रूरता के लिये इसका तलाक के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। 

Web Title: 'Rape is not less than the crime of rape, criminal offense or rape in a married life'

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