एक मजदूर की कहानी- पत्नी की कैंसर से मौत, इलाज की खातिर उधार लिए पैसों को चुकाने के लिए दिल्ली पहुंचा और फिर लगा लॉकडाउन

By भाषा | Published: June 5, 2020 12:51 PM2020-06-05T12:51:41+5:302020-06-05T12:51:41+5:30

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के रामचरन पेशे से मजदूर है। वे इसी साल कमाने के लिए दिल्ली गये थे और अपनी पांच साल की बच्ची आरती और 12 साल के बेटे दयाशंकर को बूढ़ी मां के पास छोड़ गये थे।

Ramcharan, a migrant laborer UP wants to keep the rickshaw as a sign of lockdown | एक मजदूर की कहानी- पत्नी की कैंसर से मौत, इलाज की खातिर उधार लिए पैसों को चुकाने के लिए दिल्ली पहुंचा और फिर लगा लॉकडाउन

लॉकडाउन की निशानी रिक्शे को सहेज कर रखेगा प्रवासी मजदूर रामचरन (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsयूपी के महोबा जिले के कबरई विकास खण्ड के एक प्रवासी मजदूर ने बताई अपनी दर्दनाक कहानीकैंसर से हुई थी पत्नी की मौत, उसके इलाज की खातिर पैसे लिए थे उधार, उसी को चुकाने के लिए दिल्ली गया था ये शख्स

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए राष्ट्रव्यापी 'लॉकडाउन' के दौरान अपने घरों को लौटने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों में यूपी के महोबा जिले के बरा गांव का रामचरन भी शामिल है, जो अपने नौ रिश्तेदारों को रिक्शे में दिल्ली से बरा गांव तक लाया। अब वह इस 'रिक्शे' को लॉकडाउन की निशानी के तौर पर सहेज कर जीवन भर रखना चाहता है।

महोबा जिले के कबरई विकास खण्ड के बरा गांव का रामचरन पेशे से मजदूर है। जनवरी के प्रथम सप्ताह में कैंसर से पत्नी चंदा की मौत के बाद उसके इलाज की खातिर लिए कर्ज के करीब एक लाख रुपये चुकाने की खातिर वह अपने छह साल के बच्चे को लेकर साढू व भतीजे के परिवारों के साथ बेलदारी की मजदूरी करने दिल्ली चला गया था। लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद उसे गांव वापस आने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी।

दिल्ली जाने से पहले वह अपनी पांच साल की बच्ची आरती और 12 साल के बेटे दयाशंकर को 65 वर्षीय मां रज्जी के पास घर छोड़ गया था। रामचरन बताता है, "पत्नी चंदा काफी समय से कैंसर की बीमारी से ग्रस्त थी और इसी साल जनवरी के प्रथम सप्ताह में इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गयी।"

उसने बताया, "गांव में साहूकारों से पांच रुपए प्रति सैकड़े ब्याज की दर से एक लाख रुपये कर्ज लेकर उसका (पत्नी) इलाज भी करवाया, लेकिन बाद में पैसे के अभाव में इलाज बंद हो गया और उसकी मौत हो गयी।’’ यही कर्ज भरने के लिए मकर संक्रांति के बाद वह अपने छह साल के बेटे रमाशंकर को लेकर मजदूरी करने दिल्ली चला गया और वहां मकान निर्माण में बेलदारी की मजदूरी करने लगा था।

रामचरन ने बताया, "कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए अचानक 25 मार्च से लागू लॉकडाउन से मजदूरी बंद हो गयी। एक हफ्ते तक तो किसी तरह समय गुजर गया, लेकिन इसके बाद बच्चे तक को भी तीन दिन रोटी नहीं नसीब हुई।" बकौल रामचरन, "लॉकडाउन घोषित होने पर सभी प्रकार के वाहन बंद हो गए थे और साथी मजदूर पैदल अपने घरों को वापस होने लगे थे। ऐसी स्थिति में मैंने अपने भवन निर्माण के ठेकेदार से मदद मांगी। ठेकेदार ने गांव लौटने के लिए बालू-सीमेंट ढोने वाला एक ठेला रिक्शा मुफ्त में दे दिया।"

वह बताता है कि इसी रिक्शे में वह अपने साढ़ू और भतीजे के परिवार को लेकर तथा गृहस्थी का कुछ सामान लादकर सात मई को दिल्ली से चला और 14 मई को घर पहुंचा। उसने कहा, ‘‘करीब छह सौ किलोमीटर के सफर में कई जगह पुलिस ने हम पर डंडे भी बरसाए, लेकिन कोसीकलां की पुलिस ने इंसानियत दिखाई। वहां की पुलिस ने सभी नौ लोगों को खाना खिलाने के बाद रिक्शा सहित एक ट्रक में बैठाकर आगरा तक भेजा। फिर आगरा से गांव तक हम रिक्शे से ही घर आये।"

वह बताता है, "बारी-बारी से तीनों पुरुष रिक्शा खींचते थे, कई बार परिवार की दो महिलाओं ने भी रिक्शा खींचा था।" रामचरन कहता है कि "यह रिक्शा लॉकडाउन की 'निशानी' है। यदि यह रिक्शा न होता तो वह परिवार के साथ अपने घर न आ पाता। इसीलिए इसे जीवन भर सहेज कर रखूंगा।"

Web Title: Ramcharan, a migrant laborer UP wants to keep the rickshaw as a sign of lockdown

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