Rajasthan ki khabar: सरिस्का बाघ अभयारण्य में दिखे तीन शावक, बाघों की संख्या 20
By भाषा | Published: May 26, 2020 05:59 PM2020-05-26T17:59:17+5:302020-05-26T17:59:17+5:30
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित सरिस्का बाघ अभ्यारण्य में तीन शावक दिखे गए हैं। अल यहां बाघों सी संख्या बढ़कर 20 हो गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर बधाई दी।
जयपुरःराजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का बाघ अभ्यारण्य में तीन शावक कैमरे में देखे गये है। इन तीन शावकों के साथ ही सरिस्का बाघ अभयारण्य में बाघों की संख्या 20 हो गई है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट करके कहा है कि कोरोना वायरस चिंताओं के बीच बाघिन एसटी -12 ने अच्छी खबर दी है। सरिस्का बाघ अभयारण्य में अब 2020 में 20 बाघ हो गये हैं। उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा राज्य के इन जंगली जिंदगियों को देखने की है। एक अधिकारी ने बताया कि शावकों को सोमवार को कैमरे ने कैद किया। सरिस्का अभयारण्य में अब 16 वयस्क बाघ है।
राजाजी बाघ अभयारण्य में बनाए जाएंगे घास के मैदान
राजाजी बाघ अभयारण्य में जैव विविधता और पारिस्थितिकीय शक्ति बढ़ाने के साथ ही वन्यजीवों के संरक्षण स्तर की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए अभयारण्य की पांच रेंज में मानव निर्मित घास के मैदान विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया गया है।
अभयारण्य के निदेशक अमित वर्मा ने बताया कि अभयारण्य की चुनिन्दा रेंज में घास के मैदान विकसित करने तथा उसमें जैव विविधता बढ़ाने की योजना का प्रथम चरण शुरू कर दिया गया है । उन्होंने बताया कि इस क्रम में अभयारण्य की चीला, मोतीचूर, बेरीवाड़ा, धौलखण्ड व चिल्लावाली रेंज को उक्त योजना के लिए चयनित किया गया है और उन के फ्रंटलाइन स्टाफ को लगभग 100 हेक्टेयर के भूखंड चिन्हित करने को कहा गया है।
इस कार्य में अभयारण्य के वन अधिकारी भी फ्रंटलाइन स्टाफ के साथ जुटे हुए हैं। वर्मा ने बताया कि भूमि का चयन होने के बाद इनमें खर पतवार आदि हटाकर उनकी जगह शाकाहारी वन्यजीवों के लिए विभिन्न प्रजाति के पेड़ तथा घास लगाई जायेंगी । उन्होंने कहा कि इससे शाकाहारी वन्यजीवों के लिए इंसानों द्वारा निर्मित व विकसित घास का मैदान तैयार हो जाएंगे।
ये घास के मैदान कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के ढेला, धारा, झिरना सहित तराई पूर्वी वन प्रभाग की डॉली रेंज में बने घास के मैदानों जैसे होंगे। उन्होंने बताया कि इससे अभयारण्य में जैवविविधता अच्छे ढंग से बढ़ेगी और पारिस्थितिकीय शक्ति में भी इजाफा होगा जिससे वन्यजीवों के संरक्षण स्तर की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।