राजस्थानः जयपुर मेयर का चुनाव हारी बीजेपी, दल के अनुशासन पर भारी पड़ रहे हैं नेता!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 24, 2019 07:19 AM2019-01-24T07:19:58+5:302019-01-24T07:19:58+5:30
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी में शुरू हुई गुटबाजी इतनी आसानी से नियंत्रण में आने वाली नहीं है और इसका असर लोस चुनाव में भी नजर आएगा!
क्या सियासी दलों में अनुशासन खत्म होता जा रहा है? खासकर, बीजेपी जैसी अनुशासित कही जाने वाली पार्टी के सामने यह बड़ा प्रश्न है!
दरअसल, जब-जब भी जोड़तोड़ की राजनीति कामयाब होने लगती है तब-तब पार्टियों का दबदबा कम होता जाता है और नेताओं का सियासी कद बढ़ता जाता है.
केन्द्र में पीएम मोदी सरकार बनने के बाद से ही विभिन्न चुनावों में मोदी-शाह टीम ने विभिन्न चुनावों में सिद्धान्त एक तरफ करके, सत्ता के लिए जोड़तोड़ की जो राजनीति चलाई उसका असर अब छोटे चुनावों में भी नजर आने लगा है.
राजस्थान विस चुनाव के दौरान भी राजनीतिक जोड़तोड़ के चलते ही नेताओं का अपनी-अपनी पार्टी की नीति और नीयत पर से भरोसा उठता गया, जिसके नतीजे में कई नेता पार्टी अनुशासन को तोड़ते हुए या तो विरोधी दलों में चले गए या फिर बागी हो कर चुनावी मैदान में उतर गए. जिस तरह से रातोंरात पार्टी बदलने वालों को दूसरे दलों ने भी हाथोंहाथ लिया और तत्काल टिकट थमा दिया, उसे देखते हुए नेताओं को भरोसा हो गया कि सिद्धान्त और समर्पण केवल दिखावा है, जो जीता वही सियासी सिकंदर होगा!
राजस्थान के विस चुनाव में हार के बाद अब बीजेपी को जयपुर मेयर के चुनाव में हार देखनी पड़ी. जयपुर मेयर के लिए हुए चुनाव में 91 में से 63 पार्टी पार्षद होते हुए भी बीजेपी के अधिकृत उम्मीदवार उप महापौर मनोज भारद्वाज जीत नहीं पाए और बागी विष्णु लाटा 45 वोट हांसिल करके चुनाव जीत गए.
जयपुर नगर निगम के मेयर पद के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी ने उप महापौर मनोज भारद्वाज को अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन भारद्वाज के सामने पार्टी के ही पार्षद विष्णु लाटा ने बगावत करते हुए चुनाव लड़ा. बीजेपी के बोर्ड वाले जयपुर नगर निगम में पहले अशोक लाहोटी मेयर थे. लाहोटी विस चुनाव के दौरान सांगानेर से चुनाव लड़े थे और चर्चित उम्मीदवार भावापा के घनश्याम तिवाड़ी को हरा कर एमएलए बने थे. उनके इस्तीफे के बाद बीजेपी ने मेयर पद के लिए उप महापौर मनोज भारद्वाज के नाम का एलान किया था, लेकिन मेयर पद के लिए बीजेपी पार्षदों में पहले से चल रही गुटबाजी के नतीजे में बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा.
इस चुनावी हार के बाद बीजेपी के सामने भविष्य को लेकर बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है कि वह बागी को साथ रखेगी या हारे हुए उम्मीदवार के साथ खड़ी रहेगी?
राजस्थान में जयपुर क्षेत्र बीजेपी का गढ़ माना जाता है, विस चुनाव के दौरान यहां का सियासी समीकरण गड़बड़ा गया था और बीजेपी को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली थी.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी में शुरू हुई गुटबाजी इतनी आसानी से नियंत्रण में आने वाली नहीं है और इसका असर लोस चुनाव में भी नजर आएगा!