राजस्थानः लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 20, 2018 05:41 AM2018-12-20T05:41:42+5:302018-12-20T05:41:42+5:30

पिछली बार भाजपा ने राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीत लीं थीं, जब प्रदेश में 163 एमएलए के साथ वसुंधरा राजे की सरकार थी.

Rajasthan: Loksabha Election victory key is on Vasundhara Raje's hand? | राजस्थानः लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

राजस्थानः लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

Highlights2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीत लीं थींउस वक्त 163 विधानसभा सीटों के साथ प्रदेश में वसुंधरा राजे की सरकार थी।

राजस्थान में विधान सभा चुनाव के बाद जहां सीएम अशोक गहलोत ने सत्ता की कमान संभाल ली है और विभिन्न निर्णय लेना प्रारंभ कर दिया है, तो उधर भाजपा ने सड़कों पर संघर्ष शुरू कर दिया है, दोनों की सक्रियता आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर है.

पांच वर्षों के बाद बड़ा सियासी बदलाव आया है, कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों की भूमिकाएं बदल गई हैं. विस का फैसला हो चुका है, लेकिन लोकसभा की चुनौती बरकरार है. पिछली बार भाजपा ने राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीत लीं थीं, जब प्रदेश में 163 एमएलए के साथ वसुंधरा राजे की सरकार थी. नई सियासी तस्वीर में जहां भाजपा को 25 सीटें बचानी हैं, वहीं कांग्रेस को अधिकाधिक सीटें हांसिल करनी हैं. वर्तमान विस चुनाव परिणाम पर भरोसा करें तो वोट प्रतिशत के हिसाब से इस वक्त कांग्रेस और भाजपा, दोनों बराबरी पर खड़ी हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब अगले लोस चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पास हैं. उनकी सक्रियता भाजपा की सीटें बढ़ा सकती है, तो उदासीनता सीटें घटा सकती है.

वर्ष 2013 में विस चुनाव जीतने के बाद राजे ने 2014 के लोस चुनाव में पूरी ताकत लगाई थी और भाजपा को 25 में से 25 सीटें मिली थी, लेकिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही देश और प्रदेश के नेतृत्व के बीच नया सियासी अध्याय शुरू हो गया. राजे की टीम को केन्द्र में पीएम मोदी टीम ने कुछ खास महत्व नहीं दिया. इसके बाद केन्द्र और प्रदेश नेतृत्व के बीच कैसे सियासी संबंध रहे हैं, यह सबके सामने है. 

राजस्थान का उपचुनाव हारने के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने राजे के राज पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था, इसके परिणाम में राजे के प्रमुख सहयोगी तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी की कुर्सी गई. केन्द्रीय नेतृत्व यहां अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहता था, लेकिन राजे ने इसका विरोध किया. कई दिनों तक प्रदेशाध्यक्ष का निर्णय अटका रहा, लेकिन जहां कर्नाटक की हार ने केन्द्र को कमजोर कर दिया, वहीं विस चुनाव की आहट ने राजे को भी रोक दिया, जिसके परिणाम में दोनों पक्षों की सहमति से नए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति हो गई. विस चुनाव के दौरान टिकट के बंटवारे में एक बार फिर पीएम मोदी टीम और सीएम राजे टीम के बीच सहमति-असहमति का दौर चला. 

राजे मंत्रिमंडल के कई सदस्यों सहित अनेक एमएलए के टिकट कट गए. विस चुनाव नतीजे आने के बाद राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि टिकट वितरण में ध्यान रखा जाता तो शायद इतने बागी खड़े नहीं होते और नतीजों की सियासी तस्वीर कुछ और होती.

बहरहाल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का सियासी इम्तिहान समाप्त हो चुका है और आगे आम चुनाव में पीएम मोदी की राजनीतिक परीक्षा है. यदि राजे लोकसभा चुनाव के दौरान सक्रिय सहयोग जारी रखती हैं तो भाजपा की आधे से अधिक सीटें बच सकती हैं और यदि उदासीनता दिखातीं हैं तो भाजपा को सीटों का बड़ा नुकसान होगा. लोस चुनावी नतीजों से ही साफ हो पाएगा कि केन्द्र और प्रदेश के सियासी संबंधों की राजनीतिक कहानियों में कितनी सच्चाई थी!

Web Title: Rajasthan: Loksabha Election victory key is on Vasundhara Raje's hand?

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे