राजस्थान चुनावः मुख्यमंत्री पद ने जोशी-माथुर सियासी समय की दिलाई याद!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 15, 2018 08:25 AM2018-12-15T08:25:08+5:302018-12-15T11:25:28+5:30
आपातकाल के बाद कांग्रेस के विभाजन के कारण राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी देवराज अर्स की कांग्रेस में चले गए थे, जबकि शिवचरण माथुर इंदिरा कांग्रेस में रहे. जनता पार्टी के बिखराव के बाद जब केंद्र की सत्ता में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वापसी की तो सियासी तस्वीर बदल गई थी.
राजस्थान में कांग्रेस जीती, लेकिन किनारे की जीत ने उस समय की याद दिला जब ऐसा ही राजनीतिक घटनाक्रम राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के बीच चला था. अस्सी के दशक में सीएम पद की राजनीतिक रस्साकशी जोशी और माथुर के बीच चलती रही.
आपातकाल के बाद कांग्रेस के विभाजन के कारण राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी देवराज अर्स की कांग्रेस में चले गए थे, जबकि शिवचरण माथुर इंदिरा कांग्रेस में रहे. जनता पार्टी के बिखराव के बाद जब केंद्र की सत्ता में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वापसी की तो सियासी तस्वीर बदल गई थी.
पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी भी तब तक इंदिरा कांग्रेस में तो वापस आ गए, लेकिन शिवचरण माथुर को इंदिरा कांग्रेस से वफादारी का फायदा मिला और राजस्थान में विस चुनाव के बाद 1981 में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए. यह बात अलग हैं कि जोड़तोड़ के सियासी खिलाड़ी हरिदेव जोशी ने उन्हें निर्विघ्न सरकार नहीं चलाने दी.
वर्ष 1985 में एक बार फिर हरिदेव जोशी ने सीएम की कुर्सी पर कब्जा जमा लिया, लेकिन 1988 में हवाई यात्र के दौरान ही हरिदेव जोशी से त्यागपत्र ले लिया गया और अगले ही दिन जोशी के प्रस्ताव पर माथुर को पुन: मुख्यमंत्री बना दिया गया. जोशी असम के राज्यपाल बना दिए गए, परंतु जोशी की सियासी क्षमता के कारण माथुर को सालभर के अंदर ही सीएम की गद्दी फिर से हरिदेव जोशी को सौप देनी पड़ी. अस्सी का सियासी दशक खत्म हुआ तो जोशी-माथुर की रस्साकशी भी थम गई.
90 के दशक में भैरोसिंह का दबदबा रहा
राजनीतिक मैदान खाली होने के बाद 90 के दशक में भाजपा के दिग्गज नेता भैरोसिंह शेखावत का दबदबा बना रहा, बीसवीं सदी की विदाई होते-होते अशोक गहलोत ने पहली बार सीएम की गद्दी पर कब्जा किया.एक्कीसवीं सदी शुरू होते ही वसुंधरा राजे का राजनीतिक उदय हुआ और तब से अब तक एक बार राजे तो दूसरी बार गहलोत मुख्यमंत्री बनते आए हैं. देखना दिलचस्प होगा की दो दशक की राजनीति क्या कोई नई करवट लेती है?