जानिए क्या है राफेल विवाद, रक्षा मंत्रालय के कथित लेटर के सामने आने से फिर गहराया विवाद
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 8, 2019 05:08 PM2019-02-08T17:08:42+5:302019-02-08T17:08:42+5:30
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फ्रांस की कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे में घोटाले का आरोप लगाते रहे हैं। पहले भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मौजूदा रक्षा मंत्री निर्लमा सीतारमण और पूर्व रक्षा मंत्री अरुण जेटली इन आरोपों को खारिज कर चुके हैं।
राफेल मुद्दे को लेकर कांग्रेस और मोदी सरकार एक बार फिर आमने-सामने है। राफेल मुद्दे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को दिल्ली में पार्टी कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पीएम मोदी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि राफेल डील में पीएम मोदी का सीधा हस्तक्षेप है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सरकारी रक्षा कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (HAL) का सौदा अनिल अंबनी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को दिला दिया।
दरअसल, राफेल डील पर जंग दोबार तब छिड़ी जब अंग्रेजी अखबार 'द हिन्दू' ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल सौदे के दौरान रक्षा मंत्रालय के समानांतर पीएमओ भी बातचीत कर रहा था। दि हिन्दू ने रक्षा मंत्रालय का एक कथित आंतरिक नोट शेयर किया है जिसमें यह आपत्ति दर्ज है। 7.8 अरब यूरो (करीब 59 हजार करोड़ रुपये) के राफेल सौदे के तहत भारतीय वायु सेना को 36 राफेल फाइटर एयरक्राफ्ट मिलेंगे। इसके बाद राफेल डील को लेकर लोकसभा मे खूब हंगामा मचा।
रक्षा मंत्री सीतारमण ने अखबार की खबर को सिरे से की खारिज
लोकसभा में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अखबार ने पूरी सच्चाई सामने नहीं रखी है। सीतारमण ने कहा कि सदन में दिए अपने जवाब में मैंने सभी बिंदुओं के बारे में बताया है। एनएसी में सोनिया गांधी की दखल के बारे में पूरा देश जानता है, इसे आप क्या कहेंगे। एक अखबार की कटिंग से क्या साबित करना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि यह मुद्दा अब खत्म हो चुका है।
बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फ्रांस की कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे में घोटाले का आरोप लगाते रहे हैं। पहले भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और मौजूदा रक्षा मंत्री निर्लमा सीतारमण और पूर्व रक्षा मंत्री अरुण जेटली इन आरोपों को खारिज कर चुके हैं। राफेल सौदे की सीबीआई जाँच से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) पहले ही राफेद सौदे से जुड़ी रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है पूरा विवाद...
क्या है राफेल?
राफेल अनेक भूमिकाएं निभाने वाला एवं दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण डसॉल्ट एविएशन ने किया है। राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है।
संप्रग सरकार का क्या सौदा था ?
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी।
इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंड का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था।
लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। डसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला। मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे।
संप्रग सरकार और डसॉल्ट के बीच कीमतों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी। अंतिम वार्ता 2014 की शुरुआत तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका।
प्रति राफेल विमान की कीमत का विवरण आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने संकेत दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा। कांग्रेस ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स और हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी।
मोदी सरकार द्वारा किया गया सौदा क्या है?
फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी। घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया।
मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए।
अंतिम सौदा?
भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9, 000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए। विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी।
आरोप?
कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है। उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया।
कांग्रेस ने विमान की कीमत और कैसे प्रति विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,670 करोड़ रुपये की गई यह भी बताने की मांग की है। सरकार ने भारत और फ्रांस के बीच 2008 समझौते के एक प्रावधान का हवाला देते हुए विवरण साझा करने से इंकार कर दिया है।
सरकार की प्रतिक्रिया?
लगभग दो साल पहले, रक्षा राज्य मंत्री ने संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि प्रत्येक राफेल विमान की लागत लगभग 670 करोड़ रुपये है, लेकिन संबंधित उपकरणों, हथियार और सेवाओं की कीमतों का विवरण नहीं दिया।
बाद में, सरकार ने कीमतों के बारे में बात करने से इनकार कर दिया। साथ ही यह कहा जा रहा है कि 36 राफेल विमानों की कीमत की "डिलिवरेबल्स" के रूप में 126 लड़ाकू विमान खरीदने के मूल प्रस्ताव के साथ "सीधे तुलना" नहीं की जा सकती है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पर सौदे के बारे में झूठ बोलने और दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राजग सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सौदा संप्रग सरकार के तहत 2007 में जिस सौदे के लिये सहमति बनी थी उससे बेहतर है।
(भाषा एजेंसी से इनपुट)