पदोन्नति में आरक्षणः सुप्रीम कोर्ट ने मात्रात्मक डेटा संग्रह को समाप्त करने की याचिका खारिज की, पीठ ने कहा- डेटा एकत्र करने के लिए सरकारें बाध्य
By अनिल शर्मा | Published: January 28, 2022 12:48 PM2022-01-28T12:48:14+5:302022-01-28T12:57:41+5:30
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एम नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) में अदालत के फैसले के अनुसार राज्य मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है।
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दाखिय याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि राज्य सरकारें मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं।
यह याचिका पदोन्नति में आरक्षण लागू करते समय अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों के प्रतिनिधित्व का निर्धारण करने के लिए केंद्र और राज्यों द्वारा मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता को दूर करने के लिए डाली गई थी।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “एम नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) में अदालत के फैसले के अनुसार राज्य मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है। पीठ ने माना कि संपूर्ण सेवा के लिए प्रत्येक श्रेणी के पदों के लिए डेटा का संग्रह होना चाहिए।
एल नागेश्वर राव की पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल थे। उन्होंने भी कहा कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के पदों के प्रतिशत का पता लगाने के बाद आरक्षण नीति पर फिर से विचार करने के लिए एक समय अवधि निर्धारित करनी चाहिए।
अदालत ने कहा, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए समीक्षा की जानी चाहिए। समीक्षा की अवधि एक उचित अवधि होनी चाहिए और यह अवधि सरकार तय करे। इसमें यह भी कहा गया कि प्रमोशनल पदों पर आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व की कमी का आकलन राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए।