पीएसएलवी-सी44 मिशन की 16 घंटे की उल्टी गिनती शुरू
By भाषा | Published: January 24, 2019 01:14 AM2019-01-24T01:14:39+5:302019-01-24T01:14:39+5:30
यह इसरो के पीएसएलवी वाहन की 46वीं उड़ान है।
श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केन्द्र से गुरुवार को होने वाले पीएसएलवी-सी44 के प्रक्षेपण के लिए 16 घंटे की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। भारतीय ध्रुवीय रॉकेट पीएसएलवी-सी44 छात्रों द्वारा विकसित कलामसैट और पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम माइक्रासैट-आर को लेकर उड़ान भरेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ओर से जारी मिशन अपडेट के अनुसार, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से शाम सात बजकर सैंतीस मिनट पर पीएसएलवी-सी44 वाहन के प्रक्षेपण की उल्टी गिनती शुरू हो गई। यह इसरो के पीएसएलवी वाहन की 46वीं उड़ान है।
भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन से किसी भी तरह से पीछे नहीं: इसरो
इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने शुक्रवार को कहा कि भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन से किसी भी तरह से पीछे नहीं है और मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन परियोजना ‘‘गगनयान’’ की सफलता के बाद इस क्षेत्र से जुड़े सभी पहलुओं में वह अपने पड़ोसी देश के बराबर होगा।
पृथ्वी की सीध में नहीं आने वाले चंद्रमा के दूर दराज के हिस्से की भूगर्भीय संरचना का अन्वेषण करने के लिए कई उपकरणों के साथ इस महीने चीन का प्रथम मिशन ‘‘चांग‘इ- 4’’ चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला है।
शिवन ने कहा कि भारत की भी ‘‘चंद्रयान - 2’’ नाम से एक महत्वाकांक्षी अभियान है। चंद्रयान - 2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जिस क्षेत्र का अब तक किसी भी देश ने अन्वेषण नहीं किया है।
यह अभियान शुरूआत में पिछले साल अप्रैल में भेजने की योजना थी लेकिन इसे अब इस साल की प्रथम तिमाही के लिए टाल दिया गया है। शिवन ने दोनों देशों के अंतरिक्ष अभियानों के समानांतर होने से जुड़े़ एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हम चीन से किसी भी तरह से पीछे नहीं हैं।’’
उन्होंने कहा कि भारत प्रक्षेपण यान और अंतरिक्ष यान के क्षेत्र में चीन के बराबर है। भारत ने घोषणा की है कि गगनयान 2022 तक अपने अभियान पर जाएगा, जबकि चीन ने अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान 2003 में भेजा था।
शिवन ने कहा कि उनके पास अंतरिक्ष में मानव भेजने की क्षमता थी, जो हमारे पास नहीं थी। लेकिन 2022 तक गगनयान परियोजना के सफल हो जाने के बाद हम हर तरह से उनकी बराबरी में होंगे।
चंद्रयान - 2 के प्रक्षेपण में देर के कारणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले साल फरवरी में राष्ट्रीय विशेषज्ञ समीक्षा के दौरान यह पाया गया था कि इसे मजबूती के संदर्भ में और बेहतर करने की जरूरत है।
शिवन ने बताया कि उपग्रह के आकार के चलते आने वाले परेशानियों को लेकर उन्होंने कई प्रणालियों को कम कर दिया। विशेषज्ञों ने महसूस किया कि यह एक बहुत अहम अभियान है और हमें इसकी मजबूती बढ़ानी है। इसलिए कार्यक्रम दिसंबर 2018 से जनवरी 2019 किया गया।
जीपीसी की तर्ज पर भारत में विकसित ‘नाविक’ के बारे में एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों ने इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया है।