कांग्रेस की मजबूती के लिए बने 'शक्ति' ने ही राहुल गांधी को दिया सबसे बड़ा धोखा!

By आदित्य द्विवेदी | Published: June 17, 2019 04:06 PM2019-06-17T16:06:45+5:302019-06-17T16:06:45+5:30

प्रोजेक्ट 'शक्ति' एक प्लेटफॉर्म है जिसे कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ सीधा संवाद स्थापित करने के लिए शुरू किया गया था। लेकिन इसके डेटा पर पूरी तरह से निर्भर रहना कांग्रेस के लिए बहुत महंगा पड़ गया। इकोनॉमिक टाइम्स और संडे गार्जियन लाइव ने इस पर रिपोर्ट प्रकाशित की हैं।

Project Shakti, Which aims to empower congress left stranded in Loksabha Elections 2019 | कांग्रेस की मजबूती के लिए बने 'शक्ति' ने ही राहुल गांधी को दिया सबसे बड़ा धोखा!

कांग्रेस की मजबूती के लिए बने 'शक्ति' ने ही राहुल गांधी को दिया सबसे बड़ा धोखा!

Highlights डेटा प्रोजेक्ट 'शक्ति', जिसे कांग्रेस की मजबूती के लिए तैयार किया गया था। उसी से कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा धोखा मिला। डेटा डिपार्टमेंट एक 'इको चैम्बर' बन गया था। वो सिर्फ वही भाषा बोलता था जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सुनना पसंद करते थे।

लोकसभा चुनाव नतीजों से पहले राहुल गांधी से उनके चुनावी सलाहकार और कांग्रेस की डेटा एनालिटिक्स टीम के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती की मुलाकात हुई। चक्रवर्ती ने राहुल को 184 संभावित विजेताओं की सूची सौंपी थी। इसमें संबंधित निर्वाचन क्षेत्र और जीत का अनुमानित मार्जिन भी शामिल था। ये बातें संडे गार्जियन लाइव ने अपने हालिया रिपोर्ट में प्रकाशित की है। 

23 मई को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद यह आंकड़ा पूरी तरह से गलत साबित हुआ। डेटा प्रोजेक्ट 'शक्ति', जिसे कांग्रेस की मजबूती के लिए तैयार किया गया था। उसी से कांग्रेस पार्टी को सबसे बड़ा धोखा मिला। इकोनॉमिक टाइम्स ने अपने रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा है कि डेटा डिपार्टमेंट एक 'इको चैम्बर' बन गया था। वो सिर्फ वही भाषा बोलता था जो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सुनना पसंद करते थे।

'शक्ति' क्या है?

आम धारणा है कि शक्ति एक मोबाइल एप्लीकेशन है। जबकि यह सच नहीं है। शक्ति एक प्लेटफॉर्म है जिसे कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ आंतरिक संवाद स्थापित करने के लिए शुरू किया गया था। इसके जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं के वोटर आईडी और उनके मोबाइल नंबर को लिंक किए जाने का उद्देश्य था। इसके जरिए बिखरे संगठन को एकजुट करने की योजना थी। इसकी जिम्मेदारी पूर्व बैंकर प्रवीण चक्रवर्ती को सौंपी गई थी। शक्ति के जरिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित कर सकता था। इसकी शुरुआत पिछले साल हुई थी जब कांग्रेस पार्टी चुनाव की तैयारी कर रही थी।

क्यों फेल हुआ शक्ति?

अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने प्रोजेक्ट शक्ति से जुड़े लोगों और कांग्रेस नेताओं से बातचीत करके रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि डेटा इकट्ठा करने के लिए जिला स्तर के पदाधिकारियों पर दबाव बनाया गया। उन्हें लगा जितने ज्यादा आवेदन करवा देंगे तो टिकट पक्का हो जाएगा। यहीं पर गलती हो गई।

प्रोजक्ट शक्ति के एक सूत्र ने बताया कि तेलंगाना के एक कांग्रेस नेता तो शक्ति के मेंबर बनाने के लिए एजेंसी हायर कर ली। कांग्रेस नेता के मुताबिक, 'उसने एक कॉल सेंटर को कॉन्ट्रैक्ट दिया। सेंटर वाले लोगों के घरों में जाते और खुद को ऐसे दिखाते जैसे चुनाव आयोग से आए हों। बेसिकली फोन लिया, नंबर पूछा और एसएसएमस किया। उसने 12 हजार से 15 हजार सदस्य बनाने का दावा किया। शीर्ष नेतृत्व भी खुश हो गया। लेकिन यह सिर्फ खुद को तसल्ली देने के लिए था। इस तरह के डेटा से पार्टी को कोई मदद नहीं मिली।'

फर्जी डेटा की भरमार

इस तरह देशभर से गलत डेटा की भरमार हो गई। सूत्रों के मुताबिक शक्ति डेटा में करीब 50-70 प्रतिशत डेटा फर्जी था। सिर्फ 30-35 प्रतिशत ही नॉर्मल कार्यकर्ता थे। इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि कांग्रेस पब्लिसिटी के लिए तैयार वीडियोज को पहले अपने कार्यकर्ताओं को दिखाना चाहती थी। इसके लिए शक्ति के सभी सदस्यों को एसएमएस के जरिए यूट्यूब का लिंक भेजा गया। लेकिन इन वीडियोज में कुल 20-25 हजार व्यूज ही मिले। जबकि शक्ति के सदस्यों का बेस इससे कई गुना ज्यादा था।

उद्देश्य से भटक गया शक्ति

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शक्ति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के आंतरिक संवाद प्लेटफॉर्म के रूप में हुई थी लेकिन फर्जी डेटा के साथ इसे ऑन-ग्राउंड सर्वे और फीडबैक के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। एक तो फर्जी डेटा और दूसरा कार्यकर्ताओं का गैर-इमानदार जवाब... कांग्रेस पार्टी के लिए ये घातक साबित हुआ।

प्रवीण चक्रवर्ती और दिव्या स्पंदना पर भरोसा

संडे गार्जियन लाइव की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद सलाहकार थे प्रवीण चक्रवर्ती। राहुल के चुनावी मैनेजमेंट, डेटा एनालिसिस और शक्ति ऐप की देखरेख उन्हीं के जिम्मे थी। चुनाव नतीजों के अगले ही दिन से उनसे संपर्क करने की सारी कोशिशें नाकाम हुई हैं और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को निराशा ही हाथ लगी है।

प्रवीण ने कांग्रेस को चुनावी डेटा की वो हार्ड डिस्क भी नहीं सौंपी है जिसके बदले उन्होंने कथित रूप से पार्टी से 24 करोड़ रुपये लिए थे। कांग्रेस की सोशल मीडिया हेड दिव्या स्पंदना का भी यही हाल है। रिपोर्ट के मुताबिक उनके आलोचक बताते हैं कि उन्होंने पार्टी से करीब आठ करोड़ रुपये लिए और अब पहुंच से बाहर हैं।

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