प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया मुश्किल से सीमा लांघते हैं, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
By भाषा | Published: September 21, 2020 09:53 PM2020-09-21T21:53:05+5:302020-09-21T22:03:30+5:30
सरकार ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत मुख्य धारा की इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लिये दिशा निर्देश प्रतिपादित करना जरूरी समझती है तो ‘समय की दरकार है’ कि यह कवायद पहले वेब आधारित डिजिटल मीडिया से शुरू की जानी चाहिए।
नई दिल्लीः केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने काम के तरीके की वजह से ‘बहुत ही कम सीमा लांघते’ हैं लेकिन डिजिटल मीडिया ‘पूरी तरह अनियंत्रित’ है।
सरकार ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत मुख्य धारा की इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लिये दिशा निर्देश प्रतिपादित करना जरूरी समझती है तो ‘समय की दरकार है’ कि यह कवायद पहले वेब आधारित डिजिटल मीडिया से शुरू की जानी चाहिए।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपने नये हलफनामे में कहा है कि शीर्ष अदालत को व्यापक मुद्दे केन्द्र सरकार और सक्षम विधायिका के निर्णय के लिये छोड़ देने चाहिए या फिर डिजिटल मीडिया से यह कवायद शुरू करनी चाहिए। मंत्रालय ने यह हलफनामा सुदर्शन टीवी के ‘बिन्दास बोल’ कार्यकम के खिलाफ दायर याचिका में दाखिल किया गया है। सुदर्शन टीवी के प्रोमो में दावा किया गया था कि चैनल सरकारी सेवाओं में मुसलमानों की घुसपैठ की कथित साजिश का पर्दाफाश करेगा।
केन्द्र ने पिछले सप्ताह इस मामले में एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल किया था
केन्द्र ने पिछले सप्ताह इस मामले में एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि अगर शीर्ष अदालत मीडिया को नियंत्रित करने के लिये निर्देश जारी करने का फैसला करता है तो पहले यह कवायद डिजिटल मीडिया के साथ करनी चाहिए क्योंकि इसकी पहुंच ज्यादा तेज है और व्हाट्सऐप, ट्विटर और फेसबुक जैसे ऐप की वजह से इससे खबरों तेजी से वायरल होती हैं। नये हलफनामें में कहा गया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की संरचना को देखते हुये इनके द्वारा अपनी सीमा लांघने की घटनायें बहुत ही कम होती हैं जिसमें इस न्यायालय के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती हो।
इसकी तुलना में वेब आधारित डिजिटल मीडिया मोटे तौर पर अनियंत्रित है। हलफनामे में कहा गया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की सीमा की तुलना में एक छोटे फोन के अलावा डिजिटल मीडिया के लिये और किसी चीज की जरूरत नहीं होती है। हलफनामे के अनुसार वेब आधारित डिजिटल मीडिया पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। डिजिटल मीडिया नफरत फैलाने के साथ ही जानबूझ कर हिंसा ही नहीं बल्कि आतंकवाद के लिये उकसा कर किसी व्यक्ति या संस्थान की छवि खराब करने में सक्षम है।
वास्तव में यह सिलसिला बहुत ज्यादा है
वास्तव में यह सिलसिला बहुत ज्यादा है। हलफनामे में कहा गया है कि इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया पर अदालत द्वारा दिशानिर्देशों के माध्यम से या शिकायत समाधान व्यवस्था के माध्यम से कोई भी नया नियंत्रण इलेक्ट्रानिक मीडिया को प्रसारण की बजाये उसी जानकारी को डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रसारित या प्रकाशित करने के लिये प्रेरित करेगा। हलफनामे में इस बात को दोहराया गया कि इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया के लिये पहले से ही कानून और न्यायिक व्यवस्थाएं हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि न्यायालय इस मामले में दिशानिर्देशों के दायरे को अधिक व्यापक नहीं करना चाहिए और इसे सक्षम विधायिका के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। हलफनामे के अनुसार भारत में करीब 385 नियमित समाचार चैनल हैं जिनके पास केन्द्र सरकार की अपलिंकिंग डाउनलिंकिंग नीति दिशा निर्देशों के तहत लाइसेंस हैं या पंजीकृत हैं।
सुदर्शन टीवी के मामले में आदेश को लेकर न्यायालय उहापोह की स्थिति में
उच्चतम न्यायालय ने नौकरशाही में मुस्लिमों की कथित घुसपैठ के बारे में सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिन्दास बोल’ को नियंत्रित करने के स्वरूप को लेकर सोमवार को काफी माथापच्ची की और कहा कि वह बोलने की आजादी में कटौती नहीं करना चाहता है क्योंकि यह ‘विदेशी फण्डिंग’ और ‘आरक्षण’ से जुड़े मुद्दों का जनहित का कार्यक्रम है। शीर्ष अदालत इस बात से नाराज था कि सुदर्शन चैनल ने अपने हलफनामे में हिन्दु टेरर पर पहले दो कार्यक्रम करने के बारे में एक अंग्रेजी चैनल का नाम लिया है। न्यायालय नफरत वाले बोल के आधार पर सुदर्शन टीवी के ‘बिन्दास बोल’ कार्यक्रक का हिस्सा ‘यूपीएससी जिहाद’ की कडियों के प्रसारण पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है।
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने सुदर्शन न्यूज चैनल से सवाल किया कि , ‘‘आपने अंग्रेजी न्यूज चैनल के कार्यक्रमों के बारे में क्यों कहा। आपसे किसने कार्यक्रम के बारे में राय मांगी थी।’’ चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि उनके हलफनामे में हिन्दू टेरर पर अंग्रेजी चैनल उसके कार्यक्रम का जिक्र है क्योंकि उनसे पहले पूछा गया था कि ‘यूपीएससी जिहाद’ कड़ियों में क्यों मुस्लिम व्यक्तियों को टोपी और हरा रंग धारण किये दिखाया गया है।
पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या इसका मतलब यह है कि हर बार जब न्यायाधीश सवाल पूछेगे तो आप अपना दृष्टिकोण बतायेंगे? अगर यही मामला है तो न्यायाधीश सवाल पूछना बंद कर देंगे। आपसे उन सभी सवालों का जवाब दाखिल करने की अपेक्षा नहीं की जाती है जो न्यायाधीश पूछते हैं। न्यायाधीश तो बेहतर जानकारी प्राप्त करने लिये सवाल करते हैं।’’ याचिकाकर्ताओं द्वारा यह कहे जाने पर कि इन कड़ियों ने केबल टीवी निययमों के तहत कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन किया है, शीर्ष अदालत ने मंत्रणा की कि उसके आदेश के माध्यम से किस सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है।
पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘इस कार्यक्रम (बिन्दास बोल) में विदेश से धन प्राप्त करने या आरक्षण जैसे मुद्दों पर जनहित शामिल है। अगर हम निषोधाज्ञा जारी करते हैं तो यह किस तरह का होगा, क्या यह मुकम्मल रोक होनी चाहिए। इसमें जनहित भी जुड़ा है।’’ वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई समाप्त करते समय पीठ ने कहा, ‘न्यायालय क्या कहता है कि किस तरह की रोक लगायी जानी चाहिए, मतलब किस चीज की अनुमति दी जानी चाहिए और किस की नहीं क्योंकि हम अनुच्छेद 19 (1)(ए) में प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश नहीं लगाना चाहते।’’