पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग:.....तब याद आएंगी सुषमा स्वराज

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: November 27, 2018 02:51 AM2018-11-27T02:51:07+5:302018-11-27T02:51:07+5:30

सुषमा स्वराज को भी इसका एहसास है।अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उसमें सभी की नजर भाजपा शासित तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ पर ही है।  अगर इन राज्यों को भाजपा गंवा देती है तो फिर कल्पना कीजिए 12 दिसंबर के बाद क्या होगा? सवाल कांग्रेस का नहीं सवाल यह है कि भाजपा  के भीतर क्या होगा? संघ क्या करवट

Prasun Vajpayee's blog: Sushma Swaraj will remember | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग:.....तब याद आएंगी सुषमा स्वराज

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग:.....तब याद आएंगी सुषमा स्वराज

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज न तो  नरेंद्र मोदी की तरह आरएसएस से निकली हैं और न ही योगी आदित्यनाथ की तरह हिंदू महासभा से हैं।  सुषमा स्वराज ने राजनीति में कदम जयप्रकाश नारायण के कहने पर रखा था और राजनीतिक तौर पर संयोग से पहला केस भी अपने पति स्वराज के साथ मिलकर बड़ौदा डायनामाइट कांड का लड़ा था।

 इसमें जॉर्ज फर्नाडीस अभियुक्त बनाए गए थे।  करीब पंद्रह बरस पहले इस लेखक को दिए एक इंटरव्यू में सुषमा स्वराज ने राजनीति में हो रहे बदलाव को लेकर टिप्पणी की थी- ‘जेपी ने मेरी साड़ी के पल्लू के छोर में गांठ बांध कर कहा कि राजनीति ईमानदारी से होती है।  तभी मैंने मन में गांठ बांध ली कि ईमानदारी नहीं छोड़ंगी। ’ 

मौजूदा वक्त में जब राजनीति ईमानदारी की पटरी से उतर चुकी है, छल-कपट और जुमले की सियासत तले सत्ता की लगाम थामने की बेचैनी हर दिल में समाई हुई है तब सुषमा स्वराज का पांच महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को न लड़ने का ऐलान उनकी ईमानदारी को परोसता है या फिर आने वाले वक्त से पहले की आहट को समझने की काबिलियत को दर्शाता है।  

सवाल कई हो सकते हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ में जिस दिन वोटिंग हो रही थी उसी दिन सुषमा स्वराज ने चुनाव न लड़ने का ऐलान क्यों किया? जब मध्य प्रदेश में हफ्ते भर बाद ही वोटिंग होनी हो, तो क्या तब तक सुषमा रुक नहीं सकती थीं।  जिस रास्ते मोदी सत्ता या भाजपा निकल पड़ी है उसमें भाजपा में किसी भी कद्दावर नेता की जरूरत किसे है? या उसकी उपयोगिता ही कितनी है।  यानी सिर्फ आडवाणी या जोशी ही नहीं बल्कि सुषमा और राजनाथ सरीखे मंत्रियों को भी लग सकता है कि उनकी उपयोगिता है कहां? 

 ऐसे हर कोई सोच सकता है कि जब भाजपा का मतलब अमित शाह-नरेंद्र मोदी हैं और सरकार का मतलब नरेंद्र मोदी-अरु ण जेटली हैं तो फिर वाकई  सुषमा स्वराज चुनाव किसलिए चुनाव लडं़े।  डिजिटल इंडिया के दौर में कहें तो सुषमा स्वराज को हिंदूवादी ट्रोल कराने लगते हैं।  एक झटके में भक्त मंत्री से ज्यादा ताकतवर कैसे हो जाते हैं देश यह भी देख चुका है।

सुषमा स्वराज को भी इसका एहसास है।अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उसमें सभी की नजर भाजपा शासित तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ पर ही है।  अगर इन राज्यों को भाजपा गंवा देती है तो फिर कल्पना कीजिए 12 दिसंबर के बाद क्या होगा? सवाल कांग्रेस का नहीं सवाल यह है कि भाजपा  के भीतर क्या होगा? संघ क्या करवट लेगा।  

ये सारे सवाल हैं, लेकिन 12 दिसंबर के बाद भाजपा के भीतर की कोई भी हलचल फूंक-फूंक कर कदम उठाने वाली मानी जाएगी।  तब हर किसी को याद सुषमा स्वराज ही आएंगी क्योंकि ईमानदारी की राजनीति के आगे बाकी सब बेमानी है।  छल-कपट या जुमले ज्यादा दिन नहीं टिकते। 
 

Web Title: Prasun Vajpayee's blog: Sushma Swaraj will remember

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