प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः ई-कचरे के विरुद्ध सार्थक अभियान
By प्रमोद भार्गव | Published: January 24, 2019 07:25 AM2019-01-24T07:25:51+5:302019-01-24T07:25:51+5:30
अमेरिका एवं यूरोप के कई देशों के पर्यावरण मंत्री विनिर्माण कंपनियों को इस मकसद के प्रस्ताव भेज चुके हैं कि उपकरणों के निर्माता ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाएं, जो लंबे समय तक चलें और खराब होने पर उनकी मरम्मत की जा सके.
दुनियाभर में वस्तुओं के ‘उपयोग करो और फेंको’ कचरा संस्कृति के विरुद्ध शंखनाद हो गया है. दरअसल पूरी दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) बड़ी एवं घातक समस्या बनकर पेश आ रहा है. पृथ्वी, जल और वायु के लिए यह कचरा प्रदूषण का बड़ा सबब बन रहा है. नतीजतन इससे निजात के लिए यूरोपीय संघ और अमेरिका के पर्यावरण संगठनों ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उत्पाद कंपनियों की मनमानी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. वे राइट टू रिपेयर यानी ‘मरम्मत करने का अधिकार’ की मांग कर रहे हैं. कालांतर में इस मांग के भारत समेत पूरी दुनिया में फैलने की उम्मीद है. भारत को तो विकसित देशों ने ई-कचरा नष्ट करने का डंपिंग ग्राउंड माना हुआ है. इस कचरे को नष्ट करने के जैविक उपाय भी तलाशें जा रहे हैं, लेकिन इसमें अभी बड़ी सफलता नहीं मिली है.
अमेरिका एवं यूरोप के कई देशों के पर्यावरण मंत्री विनिर्माण कंपनियों को इस मकसद के प्रस्ताव भेज चुके हैं कि उपकरणों के निर्माता ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाएं, जो लंबे समय तक चलें और खराब होने पर उनकी मरम्मत की जा सके. भारत में भी कई गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों ने इस आवाज में अपनी आवाज मिलाना शुरू कर दी है. साफ है,समस्या बने ई-कचरे को यदि पुनर्चक्रित करने के संयंत्र बड़ी संख्या में लगाए जाते हैं तो बड़े पैमाने पर युवा तकनीकियों को रोजगार तो मिलेगा ही,देश बड़े स्तर पर इस कचरे को नष्ट करने के झंझट से भी मुक्त होगा. इसलिए इस कचरे को एक रोजगार उपलब्ध कराने वाले संसाधन के रूप में देखने की जरूरत है.
औसतन एक टन ई-कचरे के टुकड़े करके उसे यांत्रिक तरीके से पुनर्चक्रित किया जाए तो लगभग 40 किलो धूल या राख जैसा पदार्थ तैयार होता है. इसमें अनेक कीमती धातुएं समाहित रहती हैं.
पुनर्चक्रित प्रक्रिया के लिए भौतिक-रासायनिक और उष्मा आधारित तकनीकें भी उपलब्ध हैं, किंतु जैविक तकनीक की तुलना में इनकी सफलता कम आंकी गई है. हालांकि भारत में ई-कचरे के पुनर्चक्रण के संयंत्र दिल्ली, मेरठ, बेंगलुरु, मुबंई, चैन्नई और फिरोजाबाद में लगे हुए हैं. लेकिन जिस अनुपात में ई-कचरा निकलकर पर्यावरणीय संकट बना हुआ है,उस अनुपात में ये संयंत्र ऊंट के मुंह में जीरे के समान है इसलिए ई-कचरे की पुनर्चक्रण संयंत्र लगाने की जबावदेही ई-कचरा उत्पादन कंपनियों को भी सौंपने की जरूरत है. यदि पुनर्चक्रण के ये संयंत्र स्थान-स्थान पर स्थापित कर दिए जाते हैं तो कचरे का निपटारा तो होगा ही, कच्चे माल की कीमत कम होने से वस्तुओं के दाम भी कमोबेश सस्ते होंगे. साथ ही पृथ्वी, जल और वायु प्रदूषण
मुक्त रहेंगे.