चुनावी किस्से: ..जब संसद में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मांगी थी माफी
By रोहित कुमार पोरवाल | Published: May 17, 2019 07:29 AM2019-05-17T07:29:54+5:302019-05-17T07:29:54+5:30
यह किस्सा ऐसी-वैसी पार्टियों का नहीं, बल्कि भारत की दो सबसे बड़ी पार्टियां का हैं। यह किस्सा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा मुखर्जी की संसद में हुई नोकझोंक से जुड़ा है।
नेताओं का एक दूसरे के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल अब इतना आम हो गया है कि लोगों को ऐसी चीजें पर हैरानी भी कम होने लगी है। अगर यही हाल रहा तो शायद वो दिन आज जाए कि चाय की दुकान और संसद की भाषा में ज्यादा फर्क न रहे। लोकमत न्यूज आपको एक ऐसा किस्सा बता रहा है जिसे जानकर आप समझ सकेंगे कि भारतीय राजनीति और राजनेताओं का स्तर पिछले सत्तर वर्षों में कितना गिरा है।
यह किस्सा ऐसी-वैसी पार्टियों का नहीं, बल्कि भारत की दो सबसे बड़ी पार्टियां का हैं। यह किस्सा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा मुखर्जी की संसद में हुई नोकझोंक से जुड़ा है। यह किस्सा देश के पहले आम चुनाव के बाद का है। आइये पहले इससे जुड़ी थोड़ी सी पृष्ठभूमि जान लेते हैं।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1929 बंगाल विधान परिषद में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार शामिल होकर की थी। हलांकि अगले ही वर्ष कांग्रेस द्वारा विधायिका का बहिष्कार किए जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद कांग्रेस और उनके बीच मतभेद का दौर शुरू हुआ। उसी वर्ष उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीता।
वह हिंदू महासभा, महाबोधी सोसायटी, रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों का हिस्सा रहे। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो नेहरू के नेतृत्व में आजाद भारत की पहली अंतरिम सरकार बनी। पीएम नेहरू ने महात्मा गांधी के कहने पर कुछ ऐसे नेताओं को अपने मंत्रीमंडल में जगह दी जो कांग्रेस के मुखर आलोचक थे। उनमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बीआर अंबेडकर और आरके शनमुखम चेट्टी शामिल थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाए गए थे लेकिन वह संसद के अंदर और बाहर नेहरू सरकार की आलोचना करते रहे थे। तीन साल बाद 'नेहरू-लियाकत समझौता' नेहरू मंत्रीमंडल से मुखर्जी के इस्तीफे की वजह बना।
दरअलल, 1950 में जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खां के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसमें कहा गया था कि दोनों देश अपने यहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करेंगे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस समझौते विरोध में थे। उन्होंने इस्तीफा दिया और 21 अक्टूबर 1951 में अखिल भारतीय जनसंघ की स्थापना की। 1951-52 में देश के पहले आम चुनाव हुए। कांग्रेस ने नेहरू के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत प्राप्त किया था। भारतीय जनसंघ ने तीन सीटें जीती थीं।
इसके बाद दिल्ली में नगर पालिका चुनाव की बारी आई। यहां कांग्रेस और जनसंघ के बीच कांटे की टक्कर थी। एक बार वरिष्ठ पत्रकार इंदर मल्होत्रा ने बीबीसी को बताया था कि संसद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस मतदाताओं को अपने पक्ष में लेने के लिए 'वाइन' और 'मनी' यानी शराब और पैसे का इस्तेमाल कर रही है।
इस पर जवाहर लाल नेहरू ने मुखर्जी के आरोप पर खड़े होकर जबरदस्त विरोध किया था। नेहरू को लगा कि मुखर्जी ने वाइन और 'वुमन' यानी औरत की बात की है। इस पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आधिकारिक बयान चेक करने की बात कही थी। नेहरू को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने संसद में खड़े होकर बेझिझक सबके सामने श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मांफी मांग ली थी। इस पर मुखर्जी ने कहा था, ''माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि मैं गलतबयानी नहीं करूंगा।"
जवाहर लाल नेहरू और श्याम प्रसाद मुखर्जी के बीच राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राजनीतिक सुचिता थी जो अब नेताओं में नहीं दिखाई देती हैं।