पाकिस्तान से लौटकर भारत में बसना चाहते हैं ये पाकिस्तानी, 1982 में बना था कानून
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 14, 2018 11:01 AM2018-12-14T11:01:17+5:302018-12-14T11:01:17+5:30
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि वह सक्षम प्राधिकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करके इस कानून के तहत वापस लौटने का आवेदन करने वाले विस्थापितों और उनके दस्तावेज का विवरण पेश करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि राज्य से पलायन करने वाले कितने लोगों ने पाकिस्तान से लौटने के लिए आवेदन किया है. कोर्ट ने यह जानकारी जम्मू-कश्मीर पुनर्वास कानून, 1982 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरूवार को मांगी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के.एम.जोसेफ की पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लें. इस याचिका पर अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी.
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि वह सक्षम प्राधिकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करके इस कानून के तहत वापस लौटने का आवेदन करने वाले विस्थापितों और उनके दस्तावेज का विवरण पेश करेंगे.
शीर्ष अदालत जानना चाहती थी कि कितने विस्थापितों और उनके वंशजों ने आवेदन किया है और क्या ये आवेदन स्थाई निवासियों ने दिए हैं. शीर्ष अदालत को इस कानून के प्रावधानों से अवगत कराया गया.
यह कानून 1947 में पाकिस्तान पलायन कर गए लोगों के बारे में है जो अब लौटना चाहते हैं. संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मामले में पेश वकीलों से कानून में प्रयुक्त वंशज शब्द के मायने को लेकर अनेक तरह के सवाल किए.
द्विवेदी ने कहा कि इस मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हुए एक पत्र लिखा गया है जिसमें राज्य विधान सभा को स्थाई नागरिक के तहत विशेष अधिकार देने की शक्ति प्रदान करने वाले अनुच्छेद 35-ए और राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं के बाद इस पर सुनवाई की जाए.
वाजपेयी ने मांगी थी हस्तक्षेप की अनुमति
जम्मू-कश्मीर पुनर्वास कानून, 1982 की वैधानिकता को सबसे पहले पैंथर पार्टी के तत्कालीन विधायक हर्ष देव सिंह ने 1982 में चुनौती दी थी और तत्कालीन राज्यपाल बी.के. नेहरू ने इसे मंजूरी देने से इंकार कर दिया था. इसके बाद नवगठित भाजपा के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी थी.
जम्मू-कश्मीर पुनर्वास कानून भारत के विभाजन के बाद 1947 से 1954 के दरम्यान जम्मू-कश्मीर से पलायन कर पाकिस्तान जाने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को पुनर्वास की अनुमति प्रदान करता है.