कई प्रदेशों से बिहार लौट रहे लोगों से महामारी बढ़ने का खतरा, लोगों ने कहा- कोरोना क्या मारेगा, हम तो पहले ही मर चुके हैं
By एस पी सिन्हा | Published: March 30, 2020 03:59 PM2020-03-30T15:59:49+5:302020-03-30T15:59:49+5:30
बाहर से आनेवाली इस भीड़ ने बिहार की चिंता बढ़ा दी है. दूसरे प्रदेशों में कामकाज के लिए गये लोग अपने कदमों से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश को नाप दे रहे हैं.
पटना:कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लागू किये गये लॉकडाउन के बाद दिल्ली, हरियाणा, पंजाब सहित देश के अन्य हिसों से बिहार वापस लौट रहे लोगों के चलते बिहार में नया संकट उत्पन्न हो गया है. बाहर से आनेवाली इस भीड़ ने बिहार की चिंता बढ़ा दी है. दूसरे प्रदेशों में कामकाज के लिए गये लोग अपने कदमों से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश को नाप दे रहे हैं.
लॉकडाउन में समस्या केवल खाने की ही नहीं, अपनों तक पहुंच पाने की भी है. ये बात उन बिहारियों से पूछें जो पिछले आठ-आठ दिनों तक पैदल चलकर हरियाणा से पटना आए हैं. ये सफर कई दिनों से जारी है. आज भी बिहार के कई जिलों में सर पर गठरी लादे बडी संख्या में लोग अपने घर की दहलीज तक पहुंचने की उम्मीद से पहुंच रहे हैं. इनकी यात्रा की कहानी रूह कंपा देती है.
आज दोपहर तक सिवान बॉर्डर पर पिछले 30 घंटे में चार हजार से अधिक लोग आ चुके हैं. रविवार को करीब दो हजार लोगों का जिले में आना हुआ था. बॉर्डर पर जमे लोगों का नाम पता नोट कराने के बाद निजी वाहनों से उनके जिले में भेजा जा रहा है. कुछ इसी तरह का हाल गोपालगंज, बिहारशरीफ, आरा, बक्सर और पटना आदि शहरों का है. पटना में तो बडी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.
बिहार के बाहर रह रहे लोगों के लिए पटना पहुंच जाना भी किसी बडी मनोकामना से कम नहीं. कई लोग दूसरे जिलों में जाना चाहते हैं, लेकिन कोई व्यवस्था नही है. ऐसे में अब उनलोगों के मन में कई सवाल हैं, अभी और कितनी यात्रा? कोई साधन मिलगा या नहीं? घर पहुंचेगे या नहीं? नहीं पहुंचे तो कहां रहेंगे? बच्चों का क्या होगा? और कितने दिन बाहर?
हरियाणा स्थित फैक्ट्री में काम करने वाले दर्जनभर श्रमिक रविवार को पैदल चलते हुए आठ दिनों बाद पटना पहुंचे. मुजफ्फरपुर के रहने वाले सूरज ने बताया कि लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हो गई. फैक्ट्री मालिक ने पांच-पांच सौ रुपये देकर घर जाने की बात कही. सूरज ने बताया कि इतने पैसे नहीं थे कि वहां रहकर गुजारा किया जा सकता था. दरअसल, जो मजदूर खासकर दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा से बसों में लदकर बिहार के चारों ओर पहुंच रहे हैं, वे भी मजबूर थे.
उनके मकान मालिकों ने उनके घर का पानी और बिजली का कनेक्शन काट दिया था. पानी के बिना एक दिन भी काटना मुश्किल था. ऐसे में उनका मकान खाली करना स्वाभाविक था. इन लोगों का कहना है कि कोरोना हमें क्या मारेगा साहब? हम मर ही चुके हैं साहब. शरीर में जान नहीं है. तीन-चार दिनों से भूखा -प्यासा हूं. पैर में छाले पड गए हैं साहब, अब एक कदम भी नहीं चला जा रहा है. सांसें उखड रही हैं. कब गिर जाऊंगा पता नहीं.
लेकिन अब बिहार में नया संकट पैदा हो गया है. लोगों र्की चिंता यह है कि उस भीड में अगर दो-चार भी कोरोना वायरस से संक्रमित होंगे तो संकट का दायरा अप्रत्याशित हो जाएगा. इस स्थिति में कोरोना बिहार के लिए अभिशाप बन सकता है. ताजा उदाहरण अमेरिका और इटली जैसे विकसित देश हैं. वहां पर परिवहन सेवा को संक्रमण के फैलने के बाद भी कई दिनों तक बंद नहीं किया गया और कोरोना ने कहर बरपा दिया.
हजारों जिंदगियां काल के गाल में समा गईं. ऐसे में बसों में लोगों को भेजने का फैसला लोगों की जान से खिलवाड है. उनमें आपस में भी कोरोना वायरस के फैलने का खतरा है. वह भी तब, जब आने वाली भीड में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.
राज्य सरकार के निर्देश के बाद यूपी सीमा तक पहुंचे लोगों को बसों से लाकर जिले में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों व आश्रय गृहों में रखा जा रहा है. लेकिन, सैकडों मजदूर प्रशासन से बच कर खेतों के पगडंडियों व गंडक नदी के तट के सहारे अपने घर तक पहुंचने की आस में आगे की ओर बढ रहे हैं. ये रास्ते उन्हें कहां ले जाएंगे, उन्हें खुद पता नहीं है. वे दिशा के अंदाज से सिर्फ आगे बढ रहे हैं.