अयोध्या भूमि विवाद मामले में पीस पार्टी ने SC में सुधारात्मक याचिका दायर की

By भाषा | Published: January 22, 2020 07:17 AM2020-01-22T07:17:45+5:302020-01-22T07:17:45+5:30

किसी राजनीतिक दल की तरफ से यह पहली सुधारात्मक याचिका है जो दशकों पुराने मालिकाना हक विवाद में मूल वादी नहीं रहा था। सुधारात्मक याचिका उच्चतम न्यायालय में अंतिम कानूनी रास्ता है और सामान्य तौर से इसकी सुनवाई बंद कमरे में होती है जब तक कि प्रथम दृष्ट्या फैसले पर पुनर्विचार का मामला नहीं बनता हो।

Peace Party filed corrective petition in Supreme Court in Ayodhya land dispute case | अयोध्या भूमि विवाद मामले में पीस पार्टी ने SC में सुधारात्मक याचिका दायर की

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsराजनीतिक रूप से संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार को एक सुधारात्मक याचिका दायर की गई, जिसमें नौ नवम्बर के फैसले को चुनौती दी गई है। उस फैसले ने अयोध्या में विवादित स्थान पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया था।

राजनीतिक रूप से संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार को एक सुधारात्मक याचिका दायर की गई, जिसमें नौ नवम्बर के फैसले को चुनौती दी गई है। उस फैसले ने अयोध्या में विवादित स्थान पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया था। शीर्ष अदालत ने पिछले वर्ष नौ नवम्बर को ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में सरकारी न्यास द्वारा राम मंदिर निर्माण का आदेश दिया था और कहा था कि हिंदुओं के पवित्र शहर में मस्जिद बनाने के लिए वैकल्पिक पांच एकड़ भूमि की पहचान की जाए।

इसने 12 दिसम्बर को मुस्लिम और हिंदू पक्षों द्वारा दायर 19 समीक्षा याचिकाएं खारिज कर दी थीं और कहा था कि इन पर सुनवाई का कोई आधार नहीं है। पीस पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मोहम्मद अयूब द्वारा दायर सुधारात्मक याचिका में कहा गया है कि नौ नवम्बर का फैसला त्रुटिपूर्ण है और कहा कि मुस्लिमों के पक्ष में कब्जा दिया जाना चाहिए था क्योंकि ‘‘परिसर को कब्जे में लिए जाने से पहले वह उनके पास वैधानिक रूप से था।’’

किसी राजनीतिक दल की तरफ से यह पहली सुधारात्मक याचिका है जो दशकों पुराने मालिकाना हक विवाद में मूल वादी नहीं रहा था। सुधारात्मक याचिका उच्चतम न्यायालय में अंतिम कानूनी रास्ता है और सामान्य तौर से इसकी सुनवाई बंद कमरे में होती है जब तक कि प्रथम दृष्ट्या फैसले पर पुनर्विचार का मामला नहीं बनता हो।

याचिका में कहा गया कि मालिकाना हक विशेष कब्जे पर आधारित होना चाहिए लेकिन हिंदुओं के पास विवादित संपत्ति के भीतरी या बाहरी हिस्से में कभी निर्बाध कब्जा नहीं रहा। याचिका में कहा गया है कि जमीन के नीचे महज ढांचा होने से विवादित संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं हो जाता है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अलावा कोई और तर्क नहीं रखा गया। इसमें यह भी कहा गया कि मुगल साम्राज्य के शासनकाल में किसी समय विवादित जमीन पर मस्जिद बनाई गई।

इसमें कहा गया है, ‘‘हिंदुओं की आस्था और विश्वास के सिलसिले में कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ। विवाद यह है कि क्या बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे भगवान राम का जन्म हुआ।’’

याचिकाकर्ता ने कहा कि मुगल बादशाह बाबर के शासनकाल में निर्माण के समय से ही ढांचे का इस्तेमाल मस्जिद के तौर पर हो रहा था और यात्रियों ने भी इसे संज्ञान में लिया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वहां 1860 से पहले मुस्लिमों द्वारा इबादत करने के सबूत नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 12 दिसम्बर को जिन मूल 10 याचिकाकर्ताओं की समीक्षा याचिकाएं खारिज की थीं उनमें आठ मुस्लिम पक्ष थे जिसमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थक पक्ष भी शामिल थे।

मुख्य मुस्लिम पक्षकार उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नौ नवम्बर के सर्वसम्मति के फैसले पर समीक्षा याचिका दायर नहीं करने का निर्णय किया था। निर्मोही अखाड़ा और अखिल भारत हिंदू महासभा दो हिंदू निकाय हैं, जिनकी समीक्षा याचिका को पीठ ने खारिज कर दिया था। नौ ‘‘तीसरे पक्षों’’ में 40 अधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्होंने फैसले की समीक्षा के लिए संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय पीठ ने नौ नवम्बर को सर्वसम्मति से दिए गए फैसले में पूरे 2.77 एकड़ विवादित भूमि को ‘राम लला’ को सौंपने का निर्देश दिया था और केंद्र को निर्देश दिया था कि पांच एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपे ताकि अयोध्या में मस्जिद बनाई जा सके। 

Web Title: Peace Party filed corrective petition in Supreme Court in Ayodhya land dispute case

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