चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नई पारी, कहा-समय लोगों के पास जाने का, शुरुआत बिहार की धरती से, जानें जदयू और राजद ने क्या कहा...
By एस पी सिन्हा | Published: May 2, 2022 04:31 PM2022-05-02T16:31:32+5:302022-05-02T16:32:57+5:30
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सोमवार को अपने गृह राज्य बिहार में सक्रिय राजनीति में हाथ आजमाने का संकेत देते हुए घोषणा की कि यह लोगों के मुद्दों और “जन सूराज” के मार्ग को बेहतर ढंग से समझने के लिए उनके पास जाने का समय है.
पटनाः बिहार की सियासत में जारी उथल-पुथल जैसी स्थिति के बीच चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) अब सूबे में सियासी पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं. कारण कि उनका अब कांग्रेस से भी मोहभंग हो चुका है.
उन्होंने अब खुद लोगों के बीच जाने का फैसला कर लिया है. इसकी शुरुआत बिहार से करने जा रहे है. उन्होंने कहा है कि वे जनता के बीच जाकर जन सुराज लाने की मुहिम छेड़ेंगे. प्रशांत किशोर ने आज ट्विटर पर इसका एलान किया है. ट्विटर पर उन्होंने लिखा है कि “लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनने और जन-समर्थक नीति बनाने में मदद करने की मेरी जिद के कारण मैंने दस सालों तक रोलरकोस्टर की सवारी की. अब मैंने अपनी भूमिका बदली है इसलिए अब समय आ गया है कि असली मालिक यानि कि आम लोगों के पास जाया जाये.
My quest to be a meaningful participant in democracy & help shape pro-people policy led to a 10yr rollercoaster ride!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 2, 2022
As I turn the page, time to go to the Real Masters, THE PEOPLE,to better understand the issues & the path to “जन सुराज”-Peoples Good Governance
शुरुआत #बिहार से
जन सुराज यानि जनता का बेहतर शासन
ताकि उनके मुद्दों को सही से समझा जा सके और जन सुराज यानि जनता का बेहतर शासन का रास्ता तलाशा जा सके. इसकी शुरुआत बिहार से होगी.” सूत्रों का कहना है कि पीके जल्द ही राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करेंगे और लोगों से मिलेंगे. उनकी मूलभूत समस्याओं को सुनेंगे. निदान के उपाय बताकर अगला कदम उठाएंगे.
राजनीतिक दल के गठन या चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं
फिलहाल प्रशांत किशोर का किसी राजनीतिक दल के साथ मिलकर राजनीति करने का विचार नहीं है. सूत्रों के अनुसार वह बिहार के युवाओं से वन- टू- वन मिलने जाएंगे और आगे राजनीतिक रणनीति बनाने में युवाओं को भी प्रमुख भूमिका में रखेंगे. सूत्रों की मानें तो पीके तुरंत किसी राजनीतिक दल के गठन या चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं करेंगे.
भ्रमण के दौरान अगर लोक लुभावन मुद्दे की पहचान हो गई तो वे संभावना देखेंगे कि उस पर आम लोगों को गोलबंद किया जा सकता है या नहीं. विधानसभा के बीते चुनाव में रोजगार मुद्दा बना था. राजद ने 10 लाख लोगों को नौकरी देने की घोषणा की तो जवाब में एनडीए ने 20 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा कर दिया.
युवाओं को आकर्षित करेंगे
लेकिन, विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल गुजर जाने के बाद भी रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं कराए गए. समझा जाता है कि पीके इसी को मुद्दा बनाएंगे क्योंकि जाति और धर्म पर बंटी बिहार की राजनीति में यही एक मुद्दा है, जिस पर समाज के बडे़ हिस्से, खास कर युवाओं को आकर्षित किया जा सकता है.
जाहिर है पीके ये संकेत दे रहे हैं कि वे अपने बूते राजनीति करेंगे यानि अब कांग्रेस से भी उनका मोहभंग हो चुका है. पीके चार मई को पत्रकार वार्ता कर अपने नए अभियान की जानकारी देंगे और मीडिया के समक्ष अपनी बात रखेंगे. फिलहाल वह गैर राजनीतिक लोगों से दो दिनों तक मुलाकात करेंगे. पीके अभी पटना में ही हैं.
ऑफर से कांग्रेस के नेता संतुष्ट नहीं
उल्लेखनीय है कि पिछले एक महीने में पीके ने कांग्रेस आलाकमान और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ ताबड़तोड़ बैठकें की. उन्होंने कांग्रेस को बदलने के लिए लंबा चौड़ा प्लान भी सामने रखा. लेकिन कांग्रेस उनकी शर्तों को मानने को तैयार नहीं हुई. वैसे कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल होने का ऑफर दिया था. लेकिन उनके उस ऑफर से कांग्रेस के नेता संतुष्ट नहीं हुए.
हालांकि कांग्रेस ने भी पहले ही संकेत दे दिये थे कि वह पीके को किसी निर्णायक भूमिका में पार्टी में शामिल नहीं कराने जा रही है. तृणमूल कांग्रेस से भी पहले ही उनका मोहभंग हो चुका है. उन्होंने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी की पार्टी को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देश में खड़ा करने की कोशिश की थी.
पीके के संबंध तृणमूल कांग्रेस से बिगड़ने की चर्चा
उनकी रणनीति के तहत तृणमूल कांग्रेस ने गोवा समेत देश के कई दूसरे राज्यों में आक्रामक राजनीति की थी, लेकिन जब विधानसभा चुनाव हुए तो टीएमसी और प्रशांत किशोर की रणनीति औंधे मुंह गिर गई. उसके बाद से ही पीके के संबंध तृणमूल कांग्रेस से बिगड़ने की चर्चा थी.
वैसे पीके बिहार में अपने बूते राजनीति करने का पहले भी असफल प्रयोग कर चुके हैं. 2020 की शुरुआत में उन्होंने बिहार में अपनी मुहिम "बात बिहार की" शुरू की थी. अब उनकी कही गई बातों की चर्चा शुरू हो गई है. जिसमें उन्होंने कई बड़ी-बड़ी बातें कही थी. नीतीश कुमार से अलग होने के बाद पूरे बिहार में लोगों को जोड़ने का अभियान चालू किया था.
अब फिर से अभियान शुरू
बजाप्ता पटना में पत्रकार वार्ता कर इसकी शुरुआत की थी. एक महीना तक पटना में डेरा जमाए थे. पटना के एग्जीबिशन रोड में बड़ा दफ्तर, सैकड़ों कर्मी तैनात किय गये थे, लेकिन कुछ महीने बाद ही हवा निकल गई थी. दफ्तर में ताला लटक गया था और खुद भी बिहार से चले गए. सालों तक अता पता नही चला, अब फिर से अभियान शुरू कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर ने कहा था कि उनकी मुहिम शुरू हो गई है और एक माह में 10 लाख लोगों को जोड़ना है. बिहार के हर गांव, हर पंचायत में जाकर जागरूक लोगों से पूछना भी है और बताना भी कि आखिर बिहार कैसे तरक्की कर सकता है. बिहार आखिर कैसे आने वाले कुछ समय में देश के 10 सबसे अग्रणी राज्यों में शामिल हो सकता है.
पीके ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी जमकर निशाना साधा था
बिहार की 8800 पंचायतों में लोगों को उनकी बात सुनने के लिए चिन्हित करना है. उन्होंने कहा था कि हमारा मकसद बिहार को देश के अच्छे राज्यों में शामिल करना है. लेकिन उनकी यह मुहिम फ्लॉप हो गई और कुछ ही महीनों में इसका नामो निशान मिट गया था. वहीं, नीतीश कुमार से दूर होने के बाद पीके ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी जमकर निशाना साधा था.
उन्होंने नीतीश कुमार को लेकर कहा था कि कब तक पिछड़ेपन के लिए कब लालू यादव पर निशाना साधते रहेंगे? आखिर कब तक तुलना करते रहेंगे? आखिर कब बताएंगे कि 15 सालों में सरकार चलाने के दौरान क्या किया? मैं ये मानने को तैयार नहीं हूं कि अगर नीतीश कुमार जैसा शख्स बिहार की तरक्की का ब्लू प्रिंट तैयार करके बिहार के लोगों के सामने रखेंगे तो ऐसा नहीं हो सकता कि बिहार के लोग उनकी बात न मानें. अगर हम गरीब राज्य हैं तो इसे आगे कौन करेगा? नीतीश कुमार 15 साल से शासन चला रहे हैं तो ये काम कौन करेगा?
जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था
बता दें कि पीके जदयू से जुडे़ थे और वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये थे. लेकिन उन्हें बडे़ बेआबरू होकर नीतीश कुमार की पार्टी से निकलना पड़ा था. उन्होंने नीतीश कुमार को सार्वजनिक तौर पर भाजपा का पिछलग्गू करार दिया था. इसके बाद उन्हें जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. हालांकि इन दिनों वे फिर से नीतीश कुमार से मिले थे.
चर्चा ये हुई थी कि वे नीतीश कुमार को विपक्षी पार्टियों की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने का ऑफर दे रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने इस चर्चा को सिरे से खारिज कर दिया था.
ऐसे में देखना होगा कि प्रशांत किशोर की नया जन सुराज अभियान किस हद तक सफल हो पाता है?
इसबीच पीके की बिहार में राजनीतिक पारी शुरू करने को बिहार के प्रमुख दलों ने अपनी अलग अलग प्रतिक्रिया दी है. जहां भाजपा ने कहा है कि प्रशांत किशोर अब बेरोजगार हो गए हैं और उन्हें कोई भी पार्टी अपने साथ नहीं रखना चाहती है. वहीं राजद ने भी कहा कि प्रशांत किशोर के आने से राजद पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
राजद का कहना है कि प्रशांत किशोर की सारी रणनीति फेल हो चुकी है. जबकि जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा कि पीके ने बिहार में बहुत पहले बिहार में अपनी गतिविधियां शुरू की थी. लेकिन फिर उन्होंने बिहार में कोई काम नहीं किया. वह क्या करेंगे? यह नहीं पता. लेकिन, वह जो भी करेंगें. उसका बिहार में नीतीश सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा. नीतीश सरकार 2025 तक अपना कार्यकाल पूरा करेगी.