संसदीय क्षेत्र कश्मीर में, प्रचार और मतदान हो रहा जम्मू

By सुरेश डुग्गर | Published: March 20, 2019 07:14 AM2019-03-20T07:14:54+5:302019-03-20T07:14:54+5:30

देखा जाए तो कश्मीरी पंडितों के साथ यह राजनीतिक नाइंसाफी है। कानून के मुताबिक, अभी तक उन्हें उन क्षेत्रों के मतदाताओं के रूप में पंजीकृत हो जाना चाहिए जहां वे रह रहे हैं लेकिन सरकार ऐसा करने को इसलिए तैयार नहीं है क्योंकि वह समझती है कि ऐसा करने से कश्मीरी विस्थापितों के दिलों से वापसी की आस समाप्त हो जाएगी।

Parliamentary constituency in Jammu, publicity and voting in Jammu | संसदीय क्षेत्र कश्मीर में, प्रचार और मतदान हो रहा जम्मू

संसदीय क्षेत्र कश्मीर में, प्रचार और मतदान हो रहा जम्मू

है तो बड़ी अजीब बात लेकिन जम्मू कश्मीर में यह पूरी तरह से सच है। कभी आपने ऐसे मतदाता नहीं देखें होंगें जो बिना लोकसभा क्षेत्र के हों। यहां पर हैं। वे भी एक दो सौ-पांच सौ नहीं बल्कि पूरे सवा लाख। और ये मतदाता जिन्हें कश्मीरी विस्थापित कहा जाता है पिछले 30 सालों में होने वाले उन लोकसभा तथा विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान करते आ रहे हैं जहां से पलायन किए हुए उन्हें 30 साल का अरसा बीत गया है।

देखा जाए तो कश्मीरी पंडितों के साथ यह राजनीतिक नाइंसाफी है। कानून के मुताबिक, अभी तक उन्हें उन क्षेत्रों के मतदाताओं के रूप में पंजीकृत हो जाना चाहिए जहां वे रह रहे हैं लेकिन सरकार ऐसा करने को इसलिए तैयार नहीं है क्योंकि वह समझती है कि ऐसा करने से कश्मीरी विस्थापितों के दिलों से वापसी की आस समाप्त हो जाएगी।

नतीजतन कश्मीर के करीब 6 जिलों के 46 विधानसभा क्षेत्रों के मतदाता आज जम्मू में रह रहे हैं। इनमें से श्रीनगर जिले के सबसे अधिक मतदाता हैं। तभी तो कहा जाता रहा है कि श्रीनगर जिले की 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले मतदाताओं का भविष्य इन्हीं विस्थापितों के हाथों मंे होता है जिन्हें हर बार उन विधानसभा तथा लोकसभा क्षेत्रों के लिए मतदान करना पड़ा है जहां अब लौटने की कोई उम्मीद उन्हें नहीं है। और अब एक बार फिर उन्हें इन्हीं लोकसभा क्षेत्रों से खड़े होने जा रहे उम्मीदवारों को जम्मू या फिर देश के अन्य भागों में बैठ कर चुनना है।

उनकी पीड़ा का एक दुखद पहलू यह है कि जम्मू में आकर होश संभालने वाले युवा मतदाताओं को भी जम्मू के मतदाता के रूप में पंजीकृत करने की बजाए कश्मीर घाटी के मतदाता के रूप में स्वीकार किया गया है। अर्थात उन युवाओं को उन लोकसभा तथा विधानसभा क्षेत्रों के लिए इस बार मतदान करना पड़ेगा जिनकी सूरत भी अब उन्हें याद नहीं है।

हालांकि चुनावों में हमेशा स्थानीय मुद्दों को नजर में रख कर मतदाता वोट डालते रहे हैं तथा नेता भी उन्हीं मुद्दों के आधार पर वोट मांगते रहे हैं। लेकिन कश्मीरी विस्थापित मतदाताओं के साथ ऐसा नहीं है। न ही उनसे वोट मांगने वालों के साथ ऐसा है। असल में इन विस्थापितों के जो मुद्दे हैं वे जम्मू से जुड़े हुए हैं जिन्हें सुलझाने का वायदा कश्मीर के लोकसभा क्षेत्रों के उम्मीदवार कर नहीं सकते। लेकिन इतना जरूर है कि उनसे वोट मांगने वाले प्रत्याशी उनकी वापसी के प्रति अवश्य वायदे करते रहे हैं।

परंतु कश्मीरी विस्थापितों को अपनी वापसी के प्रति किए जाने वाले वायदों से कुछ लेना देना नहीं है। कारण पिछले 30 सालों में हुए अलग अलग चुनावों में यही वायदे उनसे कई बार किए जा चुके हैं। जबकि वायदे करने वाले इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि आखिरी बंदूक के शांत होने से पहले तक कश्मीरी विस्थापित कश्मीर वापस नहीं लौटना चाहेंगे और बंदूकें कब शांत होंगी कोई कह नहीं सकता।

Web Title: Parliamentary constituency in Jammu, publicity and voting in Jammu

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