संसद ‘लोकतंत्र का मंदिर’, मतभेदों को जनसेवा में बाधक नहीं बनने दें जनप्रतिनिधि : राष्ट्रपति

By भाषा | Published: November 26, 2021 02:23 PM2021-11-26T14:23:12+5:302021-11-26T14:23:12+5:30

Parliament 'temple of democracy', don't let differences become a hindrance in public service: President | संसद ‘लोकतंत्र का मंदिर’, मतभेदों को जनसेवा में बाधक नहीं बनने दें जनप्रतिनिधि : राष्ट्रपति

संसद ‘लोकतंत्र का मंदिर’, मतभेदों को जनसेवा में बाधक नहीं बनने दें जनप्रतिनिधि : राष्ट्रपति

नयी दिल्ली, 26 नवंबर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद को ‘लोकतंत्र का मंदिर' बताते हुए शुक्रवार को कहा कि हर सांसद की यह जिम्मेदारी है कि वे संसद में उसी भावना के साथ आचरण करें, जिसके साथ वे अपने पूजा-गृहों और इबादतगाहों में करते हैं तथा मतभेद को जनसेवा के वास्तविक उद्देश्य के मार्ग में बाधा नहीं बनने दें।

संविधान दिवस पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ग्राम सभा, विधानसभा और संसद के निर्वाचित प्रतिनिधियों की केवल एक ही प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह प्राथमिकता अपने क्षेत्र के सभी लोगों के कल्याण के लिए और राष्ट्रहित में कार्य करना है।

उन्होंने कहा कि विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन कोई भी मतभेद इतना बड़ा नहीं होना चाहिए कि वह जनसेवा के वास्तविक उद्देश्य में बाधा बने।

उन्होंने कहा ,‘‘ प्रतिपक्ष वास्तव में, लोकतंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। सच तो यह है कि प्रभावी प्रतिपक्ष के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी हो जाता है।’’

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार और प्रतिपक्ष, अपने मतभेदों के बावजूद, नागरिकों के सर्वोत्तम हितों के लिए मिलकर काम करते रहें और उनसे यही अपेक्षा की जाती है।

संविधान दिवस पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम को राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी संबोधित किया । इस कार्यक्रम का कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया ।

कोविंद ने कहा कि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों में प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा बेहतर प्रतिनिधि बनने और जन-कल्याण के लिए बेहतर काम करने की होनी चाहिए और तभी इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा माना जाएगा।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ संसद में प्रतिस्पर्धा को प्रतिद्वंद्विता नहीं समझा जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ हम सब लोग यह मानते हैं कि हमारी संसद 'लोकतंत्र का मंदिर' है। अतः हर सांसद की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वे लोकतंत्र के इस मंदिर में श्रद्धा की उसी भावना के साथ आचरण करें, जिसके साथ वे अपने पूजा गृहों और इबादतगाहों में करते हैं।’’

उन्होंने कहा कि पश्चिम के कुछ विद्वान यह कहते थे कि भारत में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था विफल हो जाएगी, लेकिन यह प्रयोग न केवल सफल रहा, बल्कि समय के साथ और मजबूत हुआ है और यहां तक कि अन्य लोकतंत्रों ने भी इससे बहुत कुछ सीखा है।

कोविंद ने कहा, ‘‘हमारी आज़ादी के समय, राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को यदि ध्यान में रखा जाए, तो ‘भारतीय लोकतंत्र’ को निस्संदेह मानव इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा सकता है।’’

राष्ट्रपति ने कहा कि इसी केंद्रीय कक्ष में 72 वर्ष पहले संविधान निर्माताओं ने स्वाधीन भारत के उज्ज्वल भविष्य के दस्तावेज को यानि हमारे संविधान को अंगीकार किया था तथा भारत की जनता के लिए आत्मार्पित किया था।

उन्होंने कहा कि लगभग सात दशक की अल्प अवधि में ही भारत के लोगों ने लोकतान्त्रिक विकास की एक ऐसी अद्भुत गाथा लिख दी है, जिसने समूची दुनिया को विस्मित कर दिया है।

इस अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लोकतंत्र पर ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी के पोर्टल की शुरुआत भी की। उन्होंने संविधान सभा की चर्चाओं का डिजिटल संस्करण, भारत के मूल संविधान की सुलेखित प्रति का डिजिटल संस्करण भी जारी किया ।

गौरतलब है कि संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है, क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया था। संविधान दिवस की शुरुआत 2015 से की गई थी। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था।

राष्ट्रपति ने कहा कि डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद चाहते थे कि संसद सदस्यों में उच्च स्तर की नैतिकता होनी चाहिए।

कोविंद ने कहा, ‘‘ मैं यह मानता हूं कि भारत की यह विकास यात्रा, हमारे संविधान के बल पर ही आगे बढ़ती रही है। हमारे संविधान में वे सभी उदात्त आदर्श समाहित हैं, जिनके लिए विश्व के लोग भारत की ओर सम्मान और आशा भरी दृष्टि से देखते रहे हैं। ’’

उन्होंने कहा कि "हम भारत के लोग", इन शब्दों से आरम्भ होने वाले हमारे संविधान से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का संविधान लोगों की आकांक्षाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है।

उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सदस्यों ने जन प्रतिनिधि की हैसियत से, संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा और बहस की, जो साधारण लोग नहीं थे।

राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना को पढ़ा तथा वहां मौजूद लोगों ने इसे दोहराया ।

सभी केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों, स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों, विभिन्न निकायों एवं नागरिकों से आग्रह किया गया था कि वे कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए 26 नवंबर को राष्ट्रपति के साथ संविधान की प्रस्तावना को पढ़ें।

संविधान दिवस समारोह को जनभागीदारी से जोड़ने के लिये संसदीय कार्य मंत्रालय ने दो पोर्टल तैयार किये हैं, जिसमें से पहला ऑनलाइन माध्यम से संविधान की प्रस्तावना को पढ़ने से संबंधित हैं और दूसरा ‘संसदीय लोकतंत्र पर ऑनलाइन क्विज प्रतियोगिता’ से संबंधित हैं।

इसमें हिस्सा लेने वालों को प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा। संविधान की प्रस्तावना को ऑनलाइन माध्यम से 22 राजभाषाओं और अंग्रेजी में पढ़ने की व्यवस्था की गई है। इस पोर्टल पर कोई भी पंजीकरण करा सकता है और इन भाषाओं में से किसी में भी संविधान की प्रस्तावना को पढ़ सकता है।

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