क्या सच में कश्मीर में खत्म हो गया आईएसआईएस का अध्याय?
By सुरेश एस डुग्गर | Published: May 13, 2020 06:31 PM2020-05-13T18:31:00+5:302020-05-13T18:31:00+5:30
कश्मीर में आईएसआईएस की दस्तक का इंतजार कर रहे सुरक्षा बलों के रवैये के प्रति सच्चाई यह है कि उन्होंने इस खतरे को बहुत ही हल्के से लिया है। आईएसआईएस के नाम की दहशत भी उसी समय कश्मीर में फैली जब आईएसआईएस के आतंकियों ने पेरिस में वहशियाना तरीके से आतंकी हमले किए।
जम्मू: छह साल पहले कश्मीर में आईएसआईएस अर्थात इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के कदमों की आहट सुनाई दी थी और अब पुलिस के दावानुसार, उन्होंने आईएस के कश्मीर में सक्रिय अंतिम आतंकी कमांडर अब्दुल्ला भाई को भी मार गिराया जा चुका है। पर इस सबके बावजूद कश्मीर में से आईएस का खतरा टला नहीं है। पुलिस खुद मानती है कि आईएस आतंकियों के हमलों से कश्मीर को किसी भी समय जूझना पड़ सकता है। यह भी सच है कि अब्दुल्ला भाई की मौत के बाद भी कश्मीरमें आईएस के आतंकियों का मारा जाना जारी है।
दरअसल उसकी चेतावनी और दावा उस समय सामने आया जब पिछले साल के दावों के बावजूद पिठले साल अप्रैल में आईएस के आतंकी कमांडर को मार गिराया गया था। पिछले साल चार आईएस आतंकियों की मौत के साथ ही यह दावा किया गया था कि कश्मीर में आईएस का पूरी से खात्मा हो गया है।
उससे पहले करीब दर्जनभर युवकों को आईएस के साथ संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन उनके खिलाफ कोई अपराध का रिकार्ड न होने के बाद चेतावनी देकर रिहा कर दिया गया था। पर इतना जरूर था कि ये युवा प्रत्येक जुमे के दिन श्रीनगर की जामिया मस्जिद और उसके आसपास के इलाकों में आईएस जम्मू कश्मीर के झंडे लहराते थे और अक्सर आईएस क पक्ष में नारेबाजी भी करते थे।
कश्मीर में आईएस की आहट पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शासनाकाल से आरंभ हुई थी। करीब चार हमलों की जिम्मेदारी आईएस के आतंकी ले भी चुके हैं और हैरान कर देने वाली बात यह है कि इतना सब होने के बावजूद कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी कश्मीर में आईएस की मौजूदगी को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
दरअसल वे कहते थे कि उनकी नजर में आतंकी, आतंकी ही होता है वह चाहे किसी भी गुट से संबंधित हो। पर श्रीलंका में आईएस के हमलावरों द्वारा किए हमलों के बाद श्रीलंका के सेना के अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले उन दावों ने स्थिति को और जटिल बना दिया था जिसमें वे कहते थे कि आईएस के आतंकियों ने कश्मीर में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। यह बात अलग है कि तब कश्मीर पुलिस के महानिदेशक यह कह कर अपना बचाव करने में जुटे थे कि मात्र 6 श्रीलंकाई नागरिक पिछले साल आधिकारिक तौर पर कश्मीर आए थे जबकि वे इस सच्चाई से मुख मोड़ने की कोशिश में थे कि मानव बमों के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला क्या अपने सही नाम और सही पासपोर्ट का इस्तेमाल करेेगा।
और अब कश्मीर में आईएसआईएस की दस्तक का इंतजार कर रहे सुरक्षा बलों के रवैये के प्रति सच्चाई यह है कि उन्होंने इस खतरे को बहुत ही हल्के से लिया है। आईएसआईएस के नाम की दहशत भी उसी समय कश्मीर में फैली जब आईएसआईएस के आतंकियों ने पेरिस में वहशियाना तरीके से आतंकी हमले किए। इन हमलों के बाद ही कश्मीर में आनन-फानन में आईएसआईएस के समर्थकों की पहचान, उन पर निगरानी रखने और उनकी गतिविधियों को जांचने की प्रक्रिया में बिजली-सी तेजी लाई गई। साथ ही दावा भी हो गया कि कश्मीर में ऐसा कोई खतरा नहीं है। रोचक बात पुलिस द्वारा किए गए इस दावे की यह थी कि इसके दो ही दिन बाद प्रदेश में तैनात सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी दावा कर दिया कि आईएसआईएस कश्मीर में हमले कर सकता है। यह बात अलग है कि उन्होंने यह जरूर कहा कि वह लश्कर के साथ मिल कर या उसके नाम पर ऐसी कार्रवाई कर सकता है।
फिलहाल किसी को उम्मीद नहीं है कि आईएसआईएस के खतरे से कश्मीर को मुक्ति मिलेगी क्योंकि कश्मीर में तालिबानियों और अफगान मुजाहिदीनों के पर्दापण से पहले भी सेना और पुलिस ने ऐसे दावों की झड़ी लगाई थी और अंततः उसके बाद के परिणाम को कश्मीर आज भी भुगत रहा है। याद रहे कश्मीर में फिदायीन हमले, कार बम हमले और आत्मघाती हमले इन्हीं तालिबानियों तथा मुजाहिदीनों की देन थी।