अब सियाचिन से भी महंगा साबित होगा लद्दाख का मोर्चा, सर्दियों में भी टिके रहने की सेना की तैयारी पूरी
By सुरेश एस डुग्गर | Published: September 17, 2020 06:03 PM2020-09-17T18:03:12+5:302020-09-17T21:56:01+5:30
रक्षा सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है कि लेह स्थित 14 कोर ने वहां तीन गुणा ज्यादा सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जून महीने से ही माल-असबाब जुटाना शुरू कर दिया था।
जम्मू: लद्दाख का मोर्चा अब सियाचिन से भी महंगा साबित होगा क्योंकि सर्दियों में भी टिके रहने की तैयारी हो चुकी है। यह तैयारी ठीक सियाचिन हिमखंड की ही तरह की है जहां 36 सालों से भारतीय फौज पाक सेना के कुत्सित इरादों को दबाने की खातिर तैनात है। सियाचिन हिमखंड पर प्रतिदिन सेना व वायुसेना 10 करोड़ की राशि खर्चा करती है। और अब ठीक इसी प्रकार का नया अािर्थक बोझा लद्दाख के मोेर्चे पर उठाना पडे़गा क्योंकि चीन के बढ़ते कदमों को रोकना लाजिमी है।
रक्षा सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है कि लेह स्थित 14 कोर ने वहां तीन गुणा ज्यादा सैनिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जून महीने से ही माल-असबाब जुटाना शुरू कर दिया था। ठंड के लिए सामग्री जुटाने का काम जून में शुरू हो जाता है और चार महीनों में यानी ठंड की दस्तक होने से ठीक पहले सितंबर तक पूरा होता है। पेट्रोल केरोसिन, अनाज और दालें ट्रकों से लेह पहुंचाई जा चुकी हैं ताकि ठंड में जब कश्मीर और लद्दाख जाने वाले प्रमुख दर्रे और रास्ते बर्फबारी की वजह से बंद हो जाते हैं तब इनका इस्तेमाल किया जा सके। एक सैनिक के लिए इतनी ऊंचाई पर ठंड के दौरान करीब 800 किलो सामग्री की जरूरत पड़ती है।
लद्दाख पहुंचाई जा रही हैं ताजे फल और सब्जियां
ताजे फल और सब्जियां वायुसेना के बड़े मालवाहक विमानों के जरिये चंडीगढ़ से यहां पहुंचाई जा रही हैं। भोजन के अलावा वहां तैनात सैनिकों को ऊंचाई की क्रूर और जानलेवा ठंड से बचाने की भी जरूरत होगी। वहां तापमान शून्य से 40 से 50 डिग्री तक नीचे चला जाएगा। पैंगांग झील की तरह सिंधु, श्योक जैसी नदियां भी जम जाती हैं। पाइपों में भी पानी जम जाता है और पानी गरम करने से लेकर खाना बनाने तक हर काम के लिए केरोसिन की जरूरत होती है।
इसी के मद्दनजर पिछले जून महीने में चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना ने आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से अत्यंत ठंडे मौसम (ईसीसी) में पहने जाने वाले कपड़ों की डिलिवरी तेज कर दी थी। सेना चाहती है कि ओएफबी कानपुर में बने तीन परतों वाले ईसीसी 80,000 जोड़ी कपड़ों की और डिलिवरी जल्द से जल्द करे। हरेक वस्त्र शून्य से 50 डिग्री नीचे के तापमान और 40 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं के बीच सैनिकों को बचाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि सेना लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर लंबे समय तक रहेगी।
सेना का कहना है कि सप्लाई लाइन सीमित होने पर भी उसे ठंड का मौसम भी गुजार लेने की उम्मीद है। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बीते वर्षों में हमने लद्दाख में बहुत सारी सुविधाएं तैयार कर ली हैं। इसलिए हमें यहां बस काम शुरू करने की जरूरत थी। हमारे सैनिक बहुत साहसी और किसी भी माहौल में ढल जाने वाले हैं। एलएसी के इलाकों में बोरवेल की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं ताकि पीने के पानी की कमी को भी दूर किया जा सके।
1984 से ही की जा चुकी है सियाचिन में तैनाती
जानकारी के लिए भारत को छोड़कर किसी भी देश की सेना इतनी ऊंचाई पर सेना तैनात नहीं करती। ये सब ज्यादातर 1999 के करगिल युद्ध के बाद से शुरू हुआ जब करगिल में भारतीय सेना की ओर से खाली छोड़ी गई चौकियों पर पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ कर कब्जा कर लिया। तब से सेना ने 150 किमी लंबी एलओसी पर सर्दी में भी निगरानी शुरू कर दी। एलओसी पर 12 हजार से 20 हजार फुट की ऊंचाई पर 200 चौकियां स्थापित की गई हैं। जबकि 1984 से ही सियाचिन में तैनाती की जा चुकी है।
सेना ने जून में लेह में तैनात 14 कोर के तहत तैनात मौजूदा दो डिविजनों के अलावा दो और इन्फेंट्री डिविजन (करीब 30,000 सैनिक) लद्दाख सेक्टर में सुरक्षा बढ़ाने के लिहाज से तैनात की थी। अब इनकी संख्या बढ़ कर 50 हजार को पार कर चुकी है। इनमें से एक डिविजन दूसरे चीन यानी पाकिस्तान से भी मुकाबले को तैनात है। एलएसी को बदलने की चीनी सेना की सबसे बड़ी कोशिश से निपटने में सेना की तीन से ज्यादा तैनात डिविजनों को एयरफोर्स के हथियारों से लैस अपाचे लड़ाकू हेलीकाप्टरों, एसयू-30-जेट और सी-17 हैवी लिफ्टर्स का साथ मिल रहा है।