LoC पर कुछ भी महफूज नहीं, न ही मस्जिद और न ही मुर्दे

By सुरेश एस डुग्गर | Published: February 16, 2020 06:24 AM2020-02-16T06:24:18+5:302020-02-16T06:24:18+5:30

पांव से लेकर सिरों तक पाक सैनिकों की गोलियां आम जनता को भेद्यने लगी हैं। गोद में दूध पीते बच्चे पाक गोलियों का शिकार हो रहे हैं। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पाक गोलीबारी लाचार, बूढ़े बीमारों का ही नहीं बल्कि मुर्दों का भी ख्याल नहीं रखती है जो उन्हें छलनी कर देती है।

Nothing safe on LoC, neither the mosque nor the dead | LoC पर कुछ भी महफूज नहीं, न ही मस्जिद और न ही मुर्दे

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsपाकिस्तान से सटी एलओसी पर अब कुछ भी महफूज नहीं कहा जा सकता है क्योंकि पाक सेना न ही मस्जिदों को बख्श रही है और न ही नमाजियों को। यहां तक की वह अब मुर्दों और शव यात्राओं पर भी गोले बरसाने से कतराती नहीं है।

पाकिस्तान से सटी एलओसी पर अब कुछ भी महफूज नहीं कहा जा सकता है क्योंकि पाक सेना न ही मस्जिदों को बख्श रही है और न ही नमाजियों को। यहां तक की वह अब मुर्दों और शव यात्राओं पर भी गोले बरसाने से कतराती नहीं है।

यही कारण था कि पुंछ जिले के एलओसी से सटे गांव शाहपुर के रहने वाला 65 वर्षीय बदरदीन अपने जीवन की अंतिम जुम्मे की नमाज भी अता नहीं कर पाया।

पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी के बीच बदरदीन घर से कुछ मीटर दूरी पर स्थित मस्जिद में नमाज अता करने पहुंचा था। लेकिन मस्जिद के अंदर उसने पांव रखा ही था कि पाक सेना ने गोले बरसाने आरंभ कर दिए और इस हमले की चपेट में आने से वह मस्जिद के बरामदे में गिरा, जहां उसने अंतिम सांस ली।

गांव के लोगों का कहना है कि दोपहर 12 बजे से पाकिस्तानी सेना ने शाहपुर में गोलाबारी शुरू कर दी। इसी बीच कुछ लोग गांव के वार्ड-2 में मौजूद मस्जिद में अन्य शुक्रवारों की ही तरह जुम्मे की नमाज के लिए पहुंचे थे। करीब डेढ़ बजे सामूहिक नमाज के लिए जब कई नमाजी इकट्ठा हुए तो अपने घर में पशुओं के चारे सहित अन्य कामों में जुटा बदरदीन भी काम छोड़ नमाज अता करने के लिए भागा-भाग मस्जिद के बरामदे तक ही पहुंच पाया कि एक गोला मस्जिद की छत को चीरता हुआ घुस गया।

वैसे यह कोई पहला मौका नहीं था कि पाक सेना ने मस्जिद या नमाजियों को निशाना बनाया था, बल्कि वर्ष 2017 में गांव नक्कर कोट की मस्जिद पर उसने गोले दागे।

इसी तरह वर्ष 2018 में शाहपुर की ही दो मस्जिदों को निशाना बनाया गया। जबकि वर्ष 2019 में शाहपुर की दरगाह के साथ ही दो बार गांव गुंतरियां स्थित साईं मीरा बख्श की जियारत को भी निशाना बनाया।

यही कारण था कि जम्मू कश्मीर में एलओसी रेखा से सटे गांवों में दिन के उजाले में तो क्या रात के अंधेरे में भी चहलकदमी कर पाना अब कल की बात हो गई है। खेतों में गए हुए किसानों को कई-कई दिन बीत जाते हैं। ऐसा वे सब अपनी मर्जी से नहीं करते बल्कि पाकिस्तानी सेना की गोलियों व गोलों की बौछार से घबराते हुए वे ऐसा करने पर मजबूर हैं।

पांव से लेकर सिरों तक पाक सैनिकों की गोलियां आम जनता को भेद्यने लगी हैं। गोद में दूध पीते बच्चे पाक गोलियों का शिकार हो रहे हैं। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पाक गोलीबारी लाचार, बूढ़े बीमारों का ही नहीं बल्कि मुर्दों का भी ख्याल नहीं रखती है जो उन्हें छलनी कर देती है।

कुछ दिन पहले राजौरी जिले के मेंढर कस्बे में एक मुर्दे के शरीर को गोलियां छलनी कर गईं। मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए साथ जा रहे लोग बाल-बाल बच गए थे जब उनके पास मोर्टार के दो गोले आ गिरे थे। यह सब आतंकियों द्वारा नहीं किया जा रहा था बल्कि उन पाक सैनिकों द्वारा किया जा रहा था जो पिछले 70 सालों से बंटवारे की रेखा को आग उगलने वाली रेखा में तब्दील किए हुए हैं और सीजफायर के बावजूद अपने तोपखानों के मुंह को खुला रखे हुए हैं।

नतीजतन एलओसी से सटे राजौरी तथा पुंछ के जुड़वा जिलों में किसी की शव यात्रा में शामिल होना खतरे से खाली नहीं है। शव यात्राओं में शामिल होने वालों के दिलोदिमाग में यही भय रहता है कि कहीं उनकी भी शव यात्रा साथ ही में न निकालनी पड़े। लेकिन उनकी मजबूरी है। उन्हें शव यात्राओं में सिर पर कफन बांध कर शामिल होना पड़ता है क्योंकि कब्रिस्तान तथा शमशान घाट पूरी तरह से पाक सैनिकों की गोलीबारी की रेंज में हैं।

Web Title: Nothing safe on LoC, neither the mosque nor the dead

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