सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, महिलाओं और लड़कियों के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर कोई बातचीत नहीं हो सकती

By भाषा | Published: November 15, 2019 04:11 AM2019-11-15T04:11:12+5:302019-11-15T04:11:12+5:30

सबरीमला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है। चूंकि, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलायें मंदिर में जाने की पात्र हैं।

No discussion on entry of women and girls in Sabarimala temple says sc | सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, महिलाओं और लड़कियों के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर कोई बातचीत नहीं हो सकती

सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, महिलाओं और लड़कियों के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर कोई बातचीत नहीं हो सकती

Highlightsफैसले में केरल सरकार को उच्चतम न्यायालय के सितंबर 2018के आदेश का अनुपालन करने का आदेश दिया गया। सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया: न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड

सबरीमला मंदिर में ‘निहत्थी महिलाओं’ को प्रवेश से रोके जाने को ‘शोचनीय स्थिति’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है। इस मामले में अपनी ओर से और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड की ओर से अल्पमत फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन ने कहा कि अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। और सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी।

हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया जिसमें सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की समीक्षा की मांग की गयी थी।

सबरीमला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है। चूंकि, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलायें मंदिर में जाने की पात्र हैं।

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि दस वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बीच की निहत्थी महिलाओं को मंदिर में पूजा करने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की दुखद स्थिति के आलोक में यह संवैधानिक कर्त्तव्य को फिर से परिभाषित कर रहा है । इसने आगे कहा कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों के अनुपालन में कार्य नहीं करता है, ‘‘वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है ।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘जहां तक केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों का सवाल है तो वह संविधान को बनाए रखने, उसकी संरक्षा करने और उसे बचाने के लिए अपनी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन करेंगे ।’’

इसमें यह भी कहा गया, ‘‘जहां तक भारत के नागरिकों का संबंध है, हम संविधान के अनुच्छेद 51 ए में निर्धारित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को याद दिलाने के लिए बेहतर करेंगे।’’ फैसले में केरल सरकार को उच्चतम न्यायालय के सितंबर 2018के आदेश का अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जो समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित हुआ था । न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने इस पर असहमति व्यक्त करते हुये अलग से अपना दृष्टिकोण रखा और कहा कि हमारे सामने 2018 के फैसले पर पुनर्विचार और उसे चुनौती देने वाली नयी याचिकायें थीं। 

Web Title: No discussion on entry of women and girls in Sabarimala temple says sc

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