सुप्रीम कोर्ट की सरकारों को सख्त हिदायत- ऑक्सीजन, बिस्तर और डॉक्टरों की कमी संबंधी पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो

By भाषा | Published: April 30, 2021 02:38 PM2021-04-30T14:38:00+5:302021-04-30T15:49:24+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और सभी पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया है कि ऐसे किसी शख्स पर कार्रवाई नहीं की जाए जो ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड और डॉक्टरों की कमी पर कोई पोस्ट सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं।

No ban should be imposed on citizens seeking help on internet: Supreme Court | सुप्रीम कोर्ट की सरकारों को सख्त हिदायत- ऑक्सीजन, बिस्तर और डॉक्टरों की कमी संबंधी पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो

सोशल मीडिया पोस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की सरकारों को हिदायत (फाइल फोटो)

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोरोना की दूसरी लहर राष्ट्रीय संकट है, इंटरनेट पर मदद मांग रहे लोगों पर कार्रवाई नहीं होपेरशान नागरिकों के ऐसे किसी भी पोस्ट पर कार्रवाई अदालत की अवमानना मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इंटरनेट पर मदद की गुहार लगा रहे नागरिकों पर रोक इस आधार पर नहीं लगाई जानी चाहिए कि वे गलत शिकायत कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर राष्ट्रीय संकट है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘सूचना का निर्बाध प्रवाह होना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने केंद्र, राज्यों और सभी पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया कि वे ऐसे किसी भी व्यक्ति पर अफवाह फैलाने के आरोप पर कोई कार्रवाई नहीं करे जो इंटरनेट पर ऑक्सीजन, बिस्तर और डॉक्टरों की कमी संबंधी पोस्ट कर रहे हैं।

पीठ ने साफ तौर पर कहा कि पेरशान नागरिकों के ऐसे किसी भी पोस्ट पर कार्रवाई होने पर हम उसे अदालत की अवमानना मानेंगे।

न्यायालय ने टिप्पणी की कि अग्रिम मोर्चे पर कार्य कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी इलाज के लिए अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं। पीठ ने कहा कि हमें 70 साल में स्वास्थ्य अवसंरचना की, जो विरासत मिली है, वह अपर्याप्त है और स्थिति खराब है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि छात्रावास, मंदिर, गिरिजाघरों और अन्य स्थानों को कोविड-19 मरीज देखभाल केंद्र बनाने के लिए खोलना चाहिए।

पीठ ने कहा कि केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीका के लिए भुगतान करने में सक्षम नहीं होगा। न्यायालय ने पूछा, ‘‘हाशिये पर रह रहे लोगों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?’’

न्यायालय ने कहा कि सरकार विभिन्न टीकों के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम पर विचार करे और उसे सभी नागरिकों को मुफ्त में टीका देने पर विचार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र चरमराने के कगार पर है और इस संकट में सेवानिवृत्त डॉक्टरों और अधिकारियों को दोबारा काम पर रखा जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि निजी टीका उत्पादकों को यह फैसला करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि किस राज्य को कितनी खुराक मिलेगी। पीठ ने केंद्र को कोविड-19 की तैयारियों पर पावर प्वाइंट प्रस्तुति की अनुमति दे दी।

Web Title: No ban should be imposed on citizens seeking help on internet: Supreme Court

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