केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह क्या नवादा लोकसभा सीट से अपना भाग्य आजमा पायेंगे? लोजपा ने ठोकी दावेदारी

By एस पी सिन्हा | Published: March 9, 2019 05:44 PM2019-03-09T17:44:17+5:302019-03-09T19:16:48+5:30

नवादा को भूमिहार बहुल क्षेत्र कहा जाता है, जिनके दम पर गिरीराज सिंह ने यहां शानदार जीत दर्ज की थी, हालांकि यहां मुस्लिमों और यादवों की संख्या पर्याप्त है, जिनके दम पर राजद यहां दांव खेलने की जुगत मे है.

Nawada seat is tough for Giriraj Singh this time Ljp is seeking for this seat and | केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह क्या नवादा लोकसभा सीट से अपना भाग्य आजमा पायेंगे? लोजपा ने ठोकी दावेदारी

केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह क्या नवादा लोकसभा सीट से अपना भाग्य आजमा पायेंगे? लोजपा ने ठोकी दावेदारी

Highlightsबिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए में सीटों का बंटवारा तो हो गया है लेकिन सीटों के नाम की घोषणा अब तक नहीं हुई है.नवादा को भूमिहार बहुल क्षेत्र कहा जाता है.नवादा सीट कथित रूप से लोजपा के खाते में जाने से गिरिराज सिंह लेकर नाराज चल रहे हैं. उन्हें बेगूसराय सीट की पेशकश की गई है.

लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार की जिन सीटों पर सबकी नजरें हैं, उनमें भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह का संसदीय क्षेत्र नवादा भी शामिल है. 2014 में सांसद बनने के बाद गिरिराज केन्द्र में मंत्री बने. मंत्री बनने के बाद भी गिरिराज सिंह के तेवर कोई कमी नहीं आई और उन्होंने ज्वलंत और विवादित मुद्दों पर जमकर बयान दिया. बयानों के कारण गिरिराज सिंह हमेशा विरोधियों के निशाने पर रहे और मीडिया में भी उन्होंने सुर्खियां बटोरी, लेकिन इतिहास को मानें तो इस बार इस सीट से गिरिराज का जीतना आसान नहीं होगा. 

भूमिहार बहुल है नवादा सीट 

बिहार की नवादा लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद सिंह ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद के राज बल्लभ प्रसाद को हराकर जीत हासिल की. साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर दो पर राजद, नंबर तीन पर जदयू और नंबर चार पर आईएनडी थी. नवादा को भूमिहार बहुल क्षेत्र कहा जाता है, जिनके दम पर गिरीराज सिंह ने यहां शानदार जीत दर्ज की थी, हालांकि यहां मुस्लिमों और यादवों की संख्या पर्याप्त है, जिनके दम पर राजद यहां दांव खेलने की जुगत मे है, हालांकि गिरीराज सिंह की जीत में मोदी लहर का भी योगदान था. जहां राजद इस सीट को पाने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगाएगी, वहीं दूसरी ओर भाजपा की जीत में गिरीराज सिंह के वह कार्य भी शामिल होगा, जो विकास के नाम पर उन्होंने यहां पिछले 5 सालों के दौरान किया है. 

बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए में सीटों का बंटवारा तो हो गया है लेकिन सीटों के नाम की घोषणा अब तक नहीं हुई है. लेकिन इससे पहले ही नवादा सीट पर मामला दिलचस्प हो गया है. लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि यह सीट लोजपा के खाते में जा सकती है. अब तो मुंगेर से लोजपा की सांसद वीणा देवी ने भी खुद कहा है कि इस बार वे नवादा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी.

गिरिराज सिंह की नाराजगी 

चर्चा है कि नवादा सीट कथित रूप से लोजपा के खाते में जाने से गिरिराज सिंह लेकर नाराज चल रहे हैं. उन्हें बेगूसराय सीट की पेशकश की गई है. वहीं मुंगेर सीट से नीतीश कुमार के करीबी और बिहार सरकार में मंत्री ललन सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा है. बेगूसराय सीट फिलहाल खाली है, वहां से भाजपा के सांसद रहे भोला सिंह का निधन हो चुका है. वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नेतृत्व को भी साफ कर दिया है कि चुनाव लड़ना  होगा तो वे नवादा से ही लड़ेंगे.

पिछले दिनों पटना के गांधी मैदान की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्प रैली में उनकी अनुपस्थिति को भी इसी नाराजगी से जोड़ा जा रहा रहा है. हालांकि उनका कहना रहा कि वे अभी बीमार चल रहे हैं. अब 2019 के लोकसभा चुनाव में देखना दिलचस्प होगा कि नवादा में इतिहास बनता है या इतिहास एक बार फिर दोहराया जाता है क्योंकि 30 सालों से यहां कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार चुनाव नहीं जीता है.

कुंवर राम ही दो बार जीते चुनाव 

नवादा लोकसभा सीट से अब तक कुल 16 चुनावों में यहां से सिर्फ कुंवर राम को ही दोबारा मौका मिल पाया है. 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर कुंवर दो बार लगातार चुने गए थे बाकी सांसदों को नवादा के मतदाताओं ने आया राम गया राम टाइप से निपटाया है. इसे महज संयोग कह सकते हैं कि अब तक यहां के ज्यादातर सांसद बाहरी ही हुए हैं. कभी ये सीट सुरक्षित हुई तो कभी सामान्य.

2009 से नवादा लोकसभा सीट सामान्य है. नवादा लोकसभा क्षेत्र में नवादा जिले के 5 और शेखपुरा जिले का बरबीघा विधानसभा सीटें शामिल हैं. नवादा लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख 29 मतदाता हैं. जिसमें 10 लाख 19 हजार पुरुष और 9 लाख 10 हजार महिला वोटर हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में 2-2 सीटों पर भाजपा-राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे. 2009 से नवादा सीट पर भाजपा का कब्जा है.

नवादा की पौराणिक महता 

नवादा का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि इसी इलाके में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था जहां मां सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था. महाभारत काल में जरासंध और पांडवों के बीच इस इलाके में युद्ध हुआ था. जानकारों की माने तो इतिहास से जुडे कई साक्ष्य यहां मौजूद हैं. नवादा जिले में कई मंदिर और धार्मिक स्थल हैं. ककोलत जलप्रपात और यहां की मनोरम वादियां पर्यटकों को लुभाती हैं. सालो भर नवादा में पर्यटक आते हैं. यह क्षेत्र बिहार के दक्षिणी हिस्‍से में है. प्रकृति की गोद में बसा यह जिला अपने खूबसूरत पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है. प्राचीन समय में यह शक्तिशाली मगध साम्राज्य का अंग रहा है.

बौद्ध भिक्षों और जैन मुनियों की तपस्थली 

इस जगह पर वृहद्रथ, मौर्य, गुप्त एवं कण्व शासकों ने शासन किया है. यह क्षेत्र महा भारत कालीन राजा जरासंध के शासन का हिस्सा था. बोधगया एवं पारसनाथ से निकटता के चलते यह क्षेत्र बौद्ध भिक्षुओं एवं जैन मुनियों की तपस्या स्थली रहा है. ककोलत जलप्रपात, प्रजातंत्र द्वार, नारद संग्रहालय, सेखोदेवरा और गुनियाजी तीर्थ आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं. इस क्षेत्र की सीमा झारखंड के कोडरमा जिले से जुडती है.

समृद्ध इतिहास और सशक्त भौगोलिक बनावट के बाद भी नवादा जिला विकास की दौड़ में पिछड़ गया है. जिले का दक्षिणी इलाका वनों से घिरा है. पहाड़ और वादियां यहां की खूबसूरती में चार-चांद लगाती हैं. 23 लाख आबादी वाले नवादा जिले की 75 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है.

नवादा जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर कादिरगंज में रेशम के नाई होती है. कादिरगंज में ऐसे कई घर मिल जाएंगे जहां पावरलूम हैं. रेशम यहां कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. यहां के कारीगर कच्चा माल झारखंड से लाते हैं फिर अपने तैयार माल को भागलपुर ले जाकर बेचते हैं. कारीगरों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर उन्हें बाज़ार मिले तो आर्थिक स्थिति सुधरने में देर नहीं लगेगी.

बेरोज़गारी महत्त्वपूर्ण मुद्दा 

नवादा में बेरोजगारी का आलम ये है कि रोजगार की तलाश में दर-दर भटकते लोग आपको हर जगह मिल जाएंगे. खेती के बाद निर्माण कार्य में गरीब लोगों को मजदूरी का काम मिलता है लेकिन जब काम नहीं मिलता है तो दूसरे राज्यों में पलायन इनकी मजबूरी है. जिले में उच्च शिक्षा के लिए कोई संस्थान नहीं है. ऐसे तो यहां 4 कॉलेज हैं लेकिन किसी कॉलेज में पीजी की पढ़ाई नहीं होती. इसके लिए छात्रों को गया या पटना का रूख करना पडता है. कृषि प्रधान इस इलाके में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है. फसल पूरी तरह से बरसात पर निर्भर है.
 

Web Title: Nawada seat is tough for Giriraj Singh this time Ljp is seeking for this seat and