Happy Birthday Narendra Modi: मिलिए कवि नरेंद्र मोदी से, पढ़िए उनकी 5 चुनिंदा कविताओं के अंश
By रंगनाथ सिंह | Published: September 17, 2018 07:22 AM2018-09-17T07:22:25+5:302018-09-17T13:08:34+5:30
Narendra Modi Birthday Special: पीएम नरेंद्र मोदी का जन्म गुजरात के वडनगर में 17 सितंबर 1950 को हुआ था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कवि भी हैं। पिछले साल उन्होंने एक ट्वीट करके अपने फॉलोवर्स को अपने हिन्दी कविता संग्रह और गुजराती कविता संग्रह के बारे में जानकारी दी थी। 17 सितंबर 1950 को गुजरात में जन्मे नरेंद्र मोदी मई 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने। साल 2015 में "साक्षी भाव" नाम से उनका हिन्दी कविता संग्रह आया।
कविता-संग्रह की भूमिका में पीएम मोदी ने स्वीकार किया है कि उन्होंने ये कविताएँ आत्म-सुख के लिए लिखी थीं। इस संग्रह में कुल 16 कविताएं हैं। सभी कविताएँ "जगज्जननी माँ के श्रीचरणों में" समर्पित हैं। कविता संग्रह की भूमिका गुजराती साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक सुरेश दलाल ने लिखी है। अपनी भूमिका में सुरेश दलाल ने नरेंद्र मोदी को "गुजराती भाषा विशेषकर कविता प्रेमी" के रूप में याद किया है।
इस संग्रह में पीएम मोदी की 1986 से लेकर 1989 के बीच लिखी गई कविताएं हैं। हालाँकि कुछ कविताओं पर लिखने की तिथि का उल्लेख नहीं है।
आउटलुक पत्रिका के संपादक विनोद मेहता ने अपने एक संस्मरण में अटल बिहारी वाजपेयी के कविताओं से जुड़ा एक रोचक संस्मरण साझा किया है। विनोद मेहता ने अटल बिहारी वाजपेयी का कविता-संग्रह मशहूर हिन्दी लेखक निर्मल वर्मा के पास समीक्षा के लिए भिजवाया। लम्बे समय तक जब निर्मल वर्मा ने समीक्षा करके नहीं दी तो मेहता ने उन्हें इसकी याद दिलायी। इसपर वर्मा ने उन्हें टका सा जवाब देते हुए कह दिया, "यह कविताएँ समीक्षा योग्य नहीं हैं। ये कविताएँ एक नेकनीयत वाले नौसिखिए का प्रयास हैं। अगर मैं समीक्षा करूँगा तो इसकी जमकर खिंचाई करूँगा, जो मैं करना नहीं चाहता।"
प्रधानमंत्री मोदी की कविताओं की समीक्षा का काम हम साहित्य के मर्मज्ञों पर छोड़ रहे हैं। पीएम मोदी ने अपने कविता-संग्रह की भूमिका भी लिखी है। इस कविता-संग्रह की उनकी लिखी भूमिका का एक समीचीन अंश और पाँच चुनिंदा कविताओं के अंश नीचे पढ़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखी गयी भूमिका का अंश-
"ये कविताएँ लिखी तो स्वांतः सुखाय थीं। पर बदलते वक्त के साथ अब ये स्वांतः सुखाय नहीं रह गईं। समूची पुस्तक एक भक्त की अपनी आराध्य माँ के समक्ष आर्द्र पुकार है। यह पुकार हृदय की किसी रहस्यमयी गुफा से निकलती है और मानस-पटल पर चक्रवर्ती मेघ की तरह छा जाती है। लेखक इस तूफान का वाहक, भोक्ता और दर्शक है। हृदय की सरिता से निसृत हुईं ये पंक्तियाँ संवेदनाओं के निए द्वार खोलती हैं। यही इनके होने की सार्थकता है।"
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नीचे पढ़ें नरेंद्र मोदी की 5 अलग-अलग कविताओं के अंश
1. एक ओर तो मैं भावना और
उसकी अभिव्यक्ति के व्यसन में फँसा हूँ
जबकि मेरे चारों ओर उत्साह और
उमंग के नाद गूँज रहे हैं
जगह-जगह से स्वयंसेवक शिविर में आ रहे हैं।
माँ...व्यवस्था के लिए पूरी शक्ति से प्रयास किया है।
उन सबके स्वागत के लिए छोटे-बड़े सैकड़ों
स्वयंसेवकों ने अपने पसीने की चादर बिछाई है
कितनी अधिक उमंग थी-
काम करनेवाले सबके व्यवहार में!
हाँ, आनेवाले स्वयंसेवक भी उतने ही
उमंग-उत्साह से भरे आए हैं।
मातृभूमि के कल्याण के लिए
स्वयं को अधिक तेजस्वी बनाने के लिए
आत्मविश्वास में वृद्धि करने के लिए
हृदय में प्रेरणा का पीयूष भरने के लिए
वे थिरक रहे हैं
उनकी आँखों में से समाज-शक्ति, राष्ट्र-भक्ति,
संघ-भक्ति की भावना की धार झर रही है।
मेरे अंतर्मन को यह सब कितनी सहजता से स्पर्ष कर जाता है।
(06-12-1986)
I have occasionally penned my thoughts through poetry. The book ‘Sakshibhav’ is a collection of some of the works. https://t.co/5viOHLGkvp
— Narendra Modi (@narendramodi) March 21, 2017
2. माँ, तेरी कैसी अजब कृपा है
देख न, चार दिन हो गए
भोजन और नींद दोनों ही उपलब्ध नहीं
किसी परिस्थिति के कारण
फिर भी थकावट जैसा कुछ लगता नहीं है।
अरे, कल की रात तो
निपट नींद के बिना ही बिताई
फिर भी प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ
सच में, यह सब तेरी कृपा के बिना संभव है क्या?
3. कविता सृष्टि की वृष्टि
सारे गुजरात के समान अकाल में डूबी है।
हाँ, कभी-कभी उत्पादन हो जाता है,
परंतु सर्जन तो है ही नहीं।
उत्पादन का तो ऐसा है कि उसमें जरूरी कच्चा माल बरो
और ठूँस-ठूँसकर भरो...
फिर यंत्र का बटन दबाओ
पेन-पेंसिल जैसे यंत्र को जोड़ो।
बस फिर क्या?
अक्षरों के समूह कभी शब्द बन
कभी शब्द समूह के रूप में
क्षमता के अनुसार लंबाई के साथ उत्पादित होते रहते हैं।
भरा हुआ कच्चा माल समाप्त हो जाए तो
उत्पादन बंद।
उत्पादन तो ऐसा है कि उत्पादित होता रहे।
हाँ, लोग उसे सृजन कहकर
स्वीकार कर लेते हैं, यह बात अलग है
कारण-
वैसे ही पाउडर के दूध से
बालकों को पालने की आदत से
हमें सृजन की समझ है क्या?
(22-12-86)
4. कितनी असह्य वेदना!
शायद अंतर्मन को हिला देनेवाली अवस्था!
लोग कहते हैं- प्रत्येक सृजन के मूल में
सर्जक के वेदना अस्तित्व रखती है।
मेरी इतनी-इतनी वेदना के बाद भी
सृजन का नामोनिशान तक नहीं?
मुझे सदा ही लगता रहता है
सृजन का कारण वेदना की बजाय करुणा ही होती होगी।
वेदना तो क्रिया होने के बाद की प्रतिक्रिया का परिणाम है।
(28-12-86)
5. और फिर भी तत्वज्ञान का कितना सुंदर मुखौटा है।
फिर अंतिम अपेक्षा तो है ही-
वह भी ब्यूटीफूल शब्द से सम्मानित कर
उसका मूल्य बढ़ाने का प्रयास भी होता है।
यही तो जीवन के ढंग को अनोखा कर देता है।
अथवा 'स्व' का विचार करनेवाले के लिए,
यह वाक्य समर्पित लगता है।
I do my thing
and you do
Your thing
I am not in
this world
to live up
to your
expectation
and
you are
not in this
world to live
up to mine.
You are you
and I am I
and if by chance
we find each other
it is beautiful.
(इस कविता के अंत में रचनाकाल नहीं दिया गया है।)